Thursday, December 9, 2010

भाजपा में बदल रहे हैं समीकरण

कल का विरोधी आज खेमे में आया, बड़ों-बड़ों का सिर चकराया
2012 में होने वाले नगर निगम चुनावों पर नज़र नहीं
लड़ाई : कौन बनेगा मुख्यमन्त्री का दावेदार
दिल्ली विधानसभा के चुनाव हैं 2013 में
रासविहारी
नई दिल्ली। दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पाटीo में तेजी से समीकरण बदल रहे हैं। कल के विरोधी आज दोस्त बन गए हैं। कल जो समर्थक थे, आज राजनीतिक फायदे के लिए पाला बदल रहे हैं। बदलते समीकरणों में बुजुर्ग नेताओं को हाशिये पर डाल दिया गया है। ऐसे में प्रदेश पदाधिकारियों से लेकर मण्डल स्तर तक खेमेबाजी जोर पकड़ रही है।
प्रदेश भाजपा में विजेन्द्र गु¹ाा के अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश पदाधिकारी, जिला अध्यक्ष और मोर्चे के अध्यक्ष तथा महामन्त्री की घोषणा के साथ राजनीतिक समीकरण बदलने शुरू हो गए थे। मोर्चे के पदाधिकारियों की घोषणा के बाद इसमें ज्यादा तेजी आई। जिलों के पदाधिकारियों की घोषणा के बाद खेमेबाजी खुलकर होने लगी। यह सब आगामी दिल्ली नगर निगम के चुनाव को लेकर नहीं, बल्कि 2013 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर हो रहा है। राजनीतिक बिसात पर गोटियां 2012 में होने वाले दिल्ली नगर निगम के चुनाव को लेकर नहीं बिछ रही हैं। गोटियां िफट हो रही है, उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर। यानी खेल शुरू हो गया है कि कौन बनेगा मुख्यमन्त्री पद का दावेदार।
दिल्ली भाजपा में नेतृत्व का चेहरा बदला तो राजनीतिक समीकरण भी बदल गए। पुराने खेमेबाजी की जगह नए-नए समीकरण बन रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा राजनीति नई दिल्ली सीट को लेकर हुई। नई दिल्ली से चुनाव लड़ने वाले विजय गोयल ने अब भी भाजपा की अन्दरूनी राजनीति को गरमा रखा है। गांवों में हाउस टैक्स लगाने के सवाल पर पाटीo से अलग होकर उन्होंने लड़ाई लड़ी। गांवों में जाकर मोर्चा खोला। यह लड़ाई भाजपा नेताओं को पच नहीं पा रही है। पूर्व महापौर और अब भाजपा की राष्ट्रीय मन्त्री आरती मेहरा विजय गोयल के साथ हैं। नेता हैरान हैं कि नई दिल्ली लोकसभा सीट से टिकट को लेकर गोयल और आरती में खूब बजी थी। आरती के पलटी मारने से समर्थक नेता हैरान हैं और मायूस भी। प्रदेश भाजपा के महामन्त्री रमेश बिधूड़ी, उपाध्यक्ष सरदार आरपी सिंह और सतीश उपाध्याय भी विजय गोयल के साथ हैं। पिछले दिनों पहलवान सुशील कुमार के सम्मान समारोह में ये नेता भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामन्त्री रामलाल और महामन्त्री जगत प्रकाश नÈा के साथ एक मंच पर थे। इन सब राजनीतिक समीकरणों के बीच कभी विजय गोयल के नजदीकी रहे विजेन्द्र गु¹ाा की आज सबसे ज्यादा दूरी उनसे ही बनी है।
पश्चिम दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में भी हालात बदल रहे हैं। लोकसभा चुनाव लड़े जगदीश मुखी और प्रदेश महामन्त्री प्रवेश वर्मा की लड़ाई तो पुरानी है। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा से मुखी की बनी दूरी आज भी बरकरार है। अब यह हुआ है कि मल्होत्रा के कुछ नजदीकी नेता मुखी के साथ राजनीतिक गोटियां बिछा रहे हैं। जिला अध्यक्ष राजीव बब्बर अब मुखी के साथ हो गए हैं। इस क्षेत्र में यह लड़ाई और तेज होने वाली है।
पूर्वी दिल्ली लोकसभा इलाके में भी हालात बदल गए हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन के विरोधी कुलजीत चहल प्रदेश टीम में शामिल होने में सफल रहे। अध्यक्ष पद से हटने के बाद इलाके में डॉ. हर्षवर्धन का राजनीतिक असर कम होता जा रहा है। वैसे भी उनका जनाधार तो कभी रहा नहीं। उनके दूसरे विरोधी कामयाब हो रहे हैं। उत्तर पूर्वी लोकसभा क्षेत्र में पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष आलोक कुमार और विधायक नरेश गौड़ में जमकर लड़ाई जारी है। जिलों के नेताओं की विधायकों और पार्षदों से नहीं बन रही है। पार्षदों की अन्दरूनी खींचतान जमकर चल रही है।
दक्षिण दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में प्रदेश महामन्त्री रमेश बिधूड़ी और प्रदेश उपाध्यक्ष पवन शर्मा के समर्थकों के बीच घमासान मचा हुआ है। इस इलाके में रमेश बिधूड़ी ने पूरे समीकरण बदल दिए हैं। जिलों और मण्डलों पर उनके समर्थक काबिज हैं। प्रदेश में जरूर पवन शर्मा अपनी पसन्द के नेता को पदाधिकारी बनाने में सफल रहे थे। चान्दनी चौक लोकसभा क्षेत्र में राजनीतिक समीरकरण बदले हैं। उत्तर पि´ाम दिल्ली लोकसभा सीट पर भाजपा के तीन विधायक हैं पर वहां भी अन्दरूनी घमासान मचा है। विधायक कुलवन्त राणा और मनोज शौकीन विजय गोयल के साथ बताए जा रहे हैं। हाल ही में उन्होंने गांवों में हाउस टैक्स के विरोध में एक रैली का आयोजन कराया था।
नईदुनिया ८ दिसंबर २०१०

कांग्रेस के आलीशान महाधिवेशन पर खर्च होंगे 20 करोड़

भोजन की कमान मंगत को, टेंट लगवा रहे हैं चौहान, ट्रांसपोर्ट सम्भालेंगे लवली
रासविहारी/ अजय पाण्डेय
नई दिल्ली। दिल्ली में कांग्रेस के आलीशान महाधिवेशन में 20 हजार से ज्यादा नेता-कार्यकर्ता जुटेगें। 18 से 20 दिसम्बर को बुराड़ी के 70 एकड़ से बड़े मैदान में आयोजित आलीशान महाधिवेशन पर 20 करोड़ से ज्यादा खर्च होंगे। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल, मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित, अन्य मन्त्री और पाटीo के आला नेताओं को महाधिवेशन की तैयारियों की जिम्मेदारी सौंपी गई।
बुराड़ी सन्त निरकारी समागम स्थल पर टैंट गाड़ने का काम बड़े जोरों पर चल रहा है। आयोजन की तैयारियों के बारे में कोई नेता कुछ बोलने को तैयार नहीं है। खासतौर पर खर्चें के सवाल पर सब चुप्पी मार जाते हैं। िफलहाल प्रदेश अध्यक्ष अग्रवाल में दिल्ली के तमाम नेता तैयारियों में लगे हैं। मुख्यमन्त्री के साथ सभी मन्त्री भी पूरी भागदौड़ कर रहे हैं। आलम यह है कि मन्त्री सचिवालय में कम और बुराड़ी में ज्यादा नज़र आ रहे हैं। लोक निर्माण विभाग के मन्त्री राजकुमार चौहान को टेंट लगवाने और साज-सजावट का काम सौंपा गया है। समय-समय पर भोजन की व्यवस्था कराने वाले समाज कल्याण मन्त्री मंगतराम सिंघल इस बार खाना तैयार कराने की जिम्मेदारी दी गई है। सिंघल को कांग्रेसियों लजीज भोजन परोसने के लिए तरह-तरह व्यंजन बनाने की सूची बना रहे हैं। परिवहन मन्त्री अरविन्दर सिंह महाधिवेशन में हिस्सा लेने वालों के लिए बसों और अन्य वाहनों का का इन्तजाम कराने में लगे हैं। वित्त मन्त्री डा. अशोक कुमार वालिया को भी खास जिम्मेदारी सौंपी गई है। स्वास्थ्य मन्त्री प्रो. किरण वालिया चिकित्सा इन्तजाम देखेंगी।
श्री अग्रवाल ने संगठन के अलग-अलग लोगों को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। शहर के नई दिल्ली, दिल्ली, हजरत निजामुद्दीन, सराय रोहिल्ला और आनन्द विहार रेलवे स्टेशनों पर कांग्रेसी कार्यकर्ता मेहमानों के स्वागत में तैयार रहेंगे। एयरपोर्ट पर भी अतिथियों की अगुवानी के लिए दिल्ली के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को मौजूद रहने को कहा गया है।
सर्दी के मौसम में हो रहे इस महाधिवेशन के मद्देनज़र बुराड़ी में लगाए जा रहे टेंट में करीब दस हजार नेताओं के ठहरने के गरमागरम इन्तजाम किए जा रहे हैं। पाटीo सूत्रों का कहना है कि देश भर से जुट रहे नेताओं में बहुत सारे लोग तो यहां सांसदों के आवासों में भी ठहर जाएंगे, कुछ लोगों के अपने इन्तजाम भी हैं। जो लोग बुराड़ी में ठहरना चाहेंगे, उनके लिए वहां भी बेहतरीन व्यवस्था की जाएगी।
पाटीo सूत्रों के अनुसार टेंट लगाने पर पांच करोड़ से ज्यादा खर्च होंगे। चाय, नाश्ता और भोजन पर लगभग आठ करोड़ का खर्चा होगा। इससे पहले दिल्ली कांग्रेस ने 2 नवंबर को तालकटोरा स्टेडियम में एआईआईसी सदस्यों का सम्मलेन की मेजबानी सम्भाली थी। शानदार मेजबानी के लिए श्री अग्रवाल की जमकर तारीफ की गई थी।
नईदुनिया ९ दिसंबर २०१०

बदलते दौर में पत्रकार संगठनों की भूमिका

रासविहारी
बदलते दौर की बदलती मीडिया में पत्रकार संगठनों की भूमिका को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि पत्रकार संगठनों की प्रासंगिकता कम होती जा रही है। बड़ी संख्या पत्रकार भी सवाल उठाते हैं कि पत्रकार संगठन में शामिल होकर क्या फायदा होगा। इसके पीछे उनके तर्क भी होते हैं। तर्क भी कमजोर नहीं दमदार होते हैं। खासतौर पर पिछले एक दशक से जिस तरह से मीडिया संस्थानों में उठापटक चल रही है, उससे कर्मचारियों में भय का वातावरण बन रहा है। तीन साल पहले आर्थिक मंदी के बहाने बड़े-बड़े मीडिया घरानों से जिस तरह से पुराने कर्मचारियों को निकाला और नए रखे गए, उससे भी लगातार भय बढ़ा। वैसे पत्रकारों के संगठन अन्य मजदूर संगठनों की तरह नहीं बनाए गए। इसकी एक वजह राजनीतिक विचारधारा के आधार पर बने मजदूर संगठनों से अलग रहकर अपनी लड़ाई लड़ना था। मीडिया की ज्यादातर लड़ाई बाहरी ताकतों से रही। आपातकाल से लेकर मीडिया जगत लगातार दबाव झेलता रहा है और उसका मुकाबला भी किया है। प्रिंट मीडिया को लेकर पहले भी सवाल खड़े होते रहे हैं। पत्रकारिया की विश्वनीयता को लेकर लंबे अरसे बहस छिड़ी हुई थी। अब राडिया टेप मामले से बड़े-बड़े पत्रकार कटघरे में खड़े हुए हैं। एनयूजे ने इस मसले पर प्रेस कांसिल से जांच कराने की मांग है।
सवाल यह है कि मीडिया के बदलते दौर में हम संगठन को किस तरह चलाएं। हमारी समस्याएं भी समय के साथ बदल रही है। कुछ ऐसी समस्याएं जो पहले थी, वे आज भी हमारे सामने हैं। एनयूजे और उससे जुड़े राज्य संगठन समस्याओं को सुलझाने की समय-समय पर कोशिश करते रहे हैं। एनयूजे की पहचान दूसरे पत्रकार संगठनों से अलग है। हमारे संगठन की खुछ विशेषताएं हैं। इसी कारण हमारा संगठन अन्य संगठनों के मुकाबले ज्यादा जीवंत है। इसकी एक बड़ी वजह हमारा लोकतांत्रिक ढांचा। एनयूजे में हर दो साल बाद पदाधिकारियों का चुनाव होता है। अध्यक्ष और महासचिव हर बार बदले जाते हैं। बाकी पदाधिकारी भी समय-समय पर बदलते रहते हैं। एनयूजे का नेतृत्व सामूहिक है। हम सब मिलजुल फैसले करते हैं। राज्यों के संगठन भी इसी तर्ज पर अपना काम कर रहे हैं।
बदलते समय के साथ हमें भी बदलने की जरूरत है। अब चुनौतियां पहले से ज्यादा हैं और नए रूप में हैं। पत्रकारों पर पहले भी आरोप लगते रहे हैं। कई बार तो हम एक-दूसरे पर भी आरोप लगाते हैं। दरअसल पत्रकारिता का काम व्यकि्तगत प्रदर्शन का भी है। इस कारण पत्रकारिता में अन्य व्यवसाय के मुकाबले ज्यादा प्रतिस्पर्धा है। हर कोई अपने को दूसरे से बेहतर साबित करना चाहता है। मीडिया प्रतिष्ठानों की आपसी होड़ के साथ व्यक्तिगत होड़ भी है। व्यक्तिगत होड़ मीडिया प्रतिष्ठानों के भीतर भी है और बाहर भी। टीवी चैनल में टीआरपी के लिए होड़ है तो अखबारों में प्रसार संख्या को लेकर है। आज के दौर में यह लड़ाई ज्यादा तेज हुई है। इस लड़ाई को जीतने के लिए मैनेजमेंट में फेरबदल होता है तो संपादकीय विभाग में बदलाव होने लगता है। इसके चलते पत्रकारों के सामने चुनौतियां बढ़ रही हैं। मीडिया के विस्तार के साथ ही अवसर बढ़े हैं। बड़ी संख्या में नए-नए लोग मीडिया में आ रहे हैं। नए पत्रकार बनाने के लिए बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों में संस्थान खुल रहे हैं। बीस साल पहले पत्रकारिता को कोई कैरियर नहीं मानता था, पर अब पत्रकारिता अन्य व्यवसाय की तरह एक कैरियर बनाने का माध्यम है। मीडिया जगत के विस्तार के साथ ही समस्याएं बढ़ रही हैं। उनका समाधान न होने के कारण बैचेनी बढ़ रही है। विस्तार के साथ ही एकजुटता कम होती है।
ऐसे में एनयूजे की भूमिका बढ़ रही है। हमें इसके लिए व्यवहारिक तरीके से सोचना होगा। किस तरह से हम संगठन की गतिविधियां बढ़ाएं। यह मेरी व्यकि्तगत सोच हो सकती है कि हर मुद्दे पर आकर लड़ाई सड़क पर नहीं लड़ी जा सकती है। हालांकि एनयूजे का इतिहास हमेशा पत्रकारिता की साख को बरकरार रखने की लड़ाई रहा है। आपातकाल के दौर में एनयूजे के सदस्य जेल में रहे। कुछ सदस्यों की नौकरी भी गई। आपातकाल का दौर वैसे भी पत्रकारों और पत्रकारिता पर हमले का बड़ा उदाहरण है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब एनयूजे ने पत्रकारिता और पत्रकारों पर हमले के खिलाफ लड़ाई लड़ी। हमें अपनी इस साख को बरकरार रखना है पर कैसे? जब जरूरत पड़ेगी तो हम सड़क पर भी लड़ाई लड़ेंगे। मेरा मानना है कि पत्रकारिता पर संकट को लेकर हम समय-समय पर अलग-अलग विषयों पर छोटी-छोटी गोषि्ठयों में विचार विमर्श करें। इस तरह की एक संगोष्ठी का आयोजन दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ने अयोध्या विवाद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के आने वाले फैसले को लेकर किया था। इससे अयोध्या विवाद पर आने वाले फैसले की कवरेज करने को लेकर एक राय बनी। मीडिया में डीजेए की पहल को लेकर तारीफ भी हुई। इस तरह की गोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकारों को बुलाकर उनके विचार सुने जाएं। गोष्ठी में शामिल होने वाले पत्रकार भी अपने विचार रखें। इससे सभी का राय सामने आएगी। नए पत्रकारों के साथ ही वरिष्ठ पत्रकारों की राय सामने आने से विषयों पर सि्थति साफ होगी। खासतौर पर मीडिया पर लगने वाले आरोपों को लेकर हम विचार विर्मश करें। कई बार पत्रकारों पर जानबूझकर भी आरोप लगाए जाते हैं।
हमारी शुरू से ही कोशिश रही है कि पत्रकारों के कल्याण लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जाएं। खासतौर पर पत्रकारों के लिए स्वास्थ्य योजना शुरू की जाए। कुछ राज्यों में पत्रकारों के लिए बीमा योजना शुरु की गई है। दिल्ली में पत्रकारों के लिए दिल्ली सरकार से स्वास्थ्य योजना शुरु कराई गई थी। हम चाहते हैं कि दिल्ली के हर पत्रकार को इलाज कराने की सुविधा मिले। इसके लिए दिल्ली सरकार से मिलकर बात करेंगे और एक पूरी योजना सौंपेंगे। कम से कम ऐसी सुविधा कम वेतन वाले पत्रकारों को जरूर मिले। केन्द्र सरकार से भी इस मसले पर मांग की जाएगी। केन्द्र सरकार के अस्पतालों में पत्रकारों के लिए अलग कुछ व्यवस्था करने पर मांग की जाएगी। हर राज्य में इस तरह की सुविधा पत्रकारों को मिले तो अच्छा रहेगा। हमने पहले भी सुझाव दिया था कि पत्रकारों के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की जाए। राज्यों में मान्यता प्राप्त पत्रकारों को तो स्वास्थय सुविधाओं का लाभ मिलता है पर बाकी पत्रकारों को यह सुविधाएं नहीं मिलती है। मीडिया के बढ़ते दायरे के साथ ही दिल्ली, राज्यों की राजधानी, प्रमुख शहरों, मंडलों, जिलों से लेकर तहसील स्तर ऐसी सुविधाएं दिलाने के लिए एनयूजे मांग उठाएगी। स्वास्थ्य बीमा योजना में कुछ हिस्सा सरकार तो बाकी पत्रकार सदस्य देंगे तो, योजना सफल हो सकती है। इससे पत्रकार भी जुडेंगे। पत्रकारों के लिए दुर्घटना बीमा योजना भी चलाने की जरूरत है। दुर्घटना में किसी पत्रकार की मौत के बाद उनके परिवारीजनों के सामने भयानक संकट पैदा हो जाता है। कम से कम दुर्घटना बीमा योजना से मिलने वाली राशि से संकटग्रस्त परिवार को कुछ तो राहत मिलेगी। एनयूजे के जर्नलिस्ट्स वेलफेयर फाउंडेशन के जरिए इस तरह की योजना शुरु की गई है। इसका विस्तार करने की जरूरत है। फाउंडेशन की तरफ से कुछ पत्रकारों को आर्थिक सहायता भी दी गई है। इस तरह की योजनाओं के जरिए पत्रकार भी हमारे संगठन जुड़ेंगे। पत्रकारों के लिए सुविधाएं दिलाने के लिए हम पहले से केन्द्र और राज्य सरकारों से बात करते रहें। कई बातचीत के दौरान पता चलता है कि कुछ पत्रकार ही ऐसी योजनाओं को पलीता लगवाते रहे हैं। दिल्ली में योजनाओं को कुछ पत्रकारों ने अपने स्वार्थ के लिए पलीता लगवाया। इसके बावजूद दिल्ली सरकार नई योजना पत्रकारों के लिए बना रही है। संगठन में सबसे ज्यादा जरूरत नए पत्रकारों को जोड़ने की है। एनयूजे, एनयूजे स्कूल मॉस कम्युनिकेशन और संबद्ध संगठन पत्रकारों को विभिन्न मुद्दो पर पूरी जानकारी देने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करते रहे हैं। हर विषय पर कार्यशालाओं का आयोजन किया गया है। एनयूजे की योजना है कि संसद और विधानसभा की कार्यवाही पर जल्दी ही पत्रकारों के लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा। मौजूदा दौर में नए-नए मुद्दे उठ रहे हैं। कई ऐसे कठिन विषय होते हैं, जिनकी जानकारी आम पत्रकारों को नहीं होती है। हाल ही में विकीलीक्स के खुलासे के बाद आम पत्रकारों में जिज्ञासा जगी है कि यह सब क्या है। कई नए शब्द सामने आए हैं। ऐसे में जानकार पत्रकारों के जरिए हम नए विषय पर जानकारी दे सकते हैं। इससे पत्रकारों की जानकारी बढ़ेगी। पत्रकारों का झुकाव भी एनयूजे की तरफ होगा। इसके लिए जरूरी नहीं है कि बड़ी संगोषि्ठयों का आयोजन किया जाए। हम छोटे-छोटे समूहों में इस तरह की कार्यशालाओं का आयोजन कर सकते हैं। यह भी जरूरी नहीं है कि कार्यशालाओं के आयोजन के लिए पूरे तामझाम जुटाए जाएं। मीडिया स्कूलों के साथ भी इस तरह की कार्यशालाओं का आयोजन करने की हम योजना बना रहे हैं।
आप यह तो देख रहे हैं कि मीडिया के बढ़ते दायरे के साथ मीडिया की भूमिका पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। इसके साथ ही घटनाओं की कवरेज समय मीडियाकर्मियों के साथ मारपीट और झड़प की घटनाएं बढ़ रही है। कई बार पत्रकारों के साथ मारपीट की घटनाओं का सही तरीके से विरोध भी नहीं हो पाता है। कई बार तो मारपीट की घटनाओं की निंदा भी नहीं करते हैं। ऐसी घटनाओं को टीवीचैनल और अखबार जिक्र भी नहीं करते हैं। एनयूजे और राज्य संगठन इस बारे में विचार करके रणनीति तैयार करेंगे।

Wednesday, November 24, 2010

कौन जीतेगा, यह बताने में कौन खरा उतरेगा

कौन जीतेगा, यह बताने में कौन खरा उतरेगा
टीवी चैनल के सर्वे में जदयू-भाजपा को बहुमत
ज्योतिषियों ने की नीतीश के मुख्यमन्त्री बनने की भविष्यवाणी
रासविहारी
नई दिल्ली। बिहार में सरकार किसकी बनेगी? नीतीश कुमार की या लालू प्रसाद की? बुधवार को चुनाव नतीजों से पहले मीडिया और ज्योतिषियों ने नीतीश कुमार की सरकार िफर से बनने का ऐलान किया है। मीडिया और ज्योतिषी किस को कितनी सीटें दे रहे हैं, आइए जानते हैं। जानी-मानी हस्तियों के बारे में भविष्यवाणी करने वाले समीर उपाध्याय का कहना है कि सितारे नीतीश कुमार के साथ हैं। लालू प्रसाद के सितारे िफलहाल गिर्दश में हैं।
उनका मानना है कि मिथुन लग्न में जन्मे नीतीश को मंगल-शुक्र के कारण िफर से मुख्यमन्त्री बनना तय है। जदयू-भाजपा गठबंधन को पिछले चुनाव में मिली सीटे मिलने की उम्मीद है। लालू प्रसाद को भी फायदा नहीं होगा। आचार्य अरविन्द की भविष्यवाणी के अनुसार नीतीश-भाजपा को 243 में से 198 सीटें मिलेंगी। उनके अनुसार लालू-रामबिलास पासवान के 20, कांग्रेस के 17 और अन्य आठ उम्मीदवार चुनाव जीतेंगे। आचार्य ब्रजमोहन की भविष्यवाणी है कि नीतीश-भाजपा को 188 सीटें मिलेंगी। आचार्य राममिलन शुक्ला ने भाजपा-नीतीश को 170 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की है। पण्डित जर्नादन गौड़ ने नीतीश कुमार और भाजपा को इस चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें मिलने की भविष्यवाणी की है। उनके अनुसार नीतीश-भाजपा को 208 सीटें मिल रही हैं।
महिला ज्योतिषी अनु डण्डरियाल की भविष्यवाणी है कि नीतीश की पाटीo जदयू को 137 और भाजपा को 32 सीटें मिलेंगी। उनके अनुसार नीतीश-भाजपा कुल मिलाकर 169 सीटें जीतेंगे। उनका कहना है कि कांग्रेस निर्दलियों की कुल संख्या से भी पीछे रहेंगे।
टीवी चैनल भी एक्जिट पोल के जरिए नीतीश कुमार की सरकार बनने की घोषणा कर रहे हैं। आईबीएन 7-सीएसडीएस के चुनाव बाद कराए गए सर्वे में जदयू-भाजपा को 185 से 201 सीट मिलने की बात कही गई है। सर्वे में लालू-पासवान को 22-32 सीटे मिलेंगी और कांग्रेस 6-12 के बीच रहेगी। आजाद उम्मीदवार 9 से 19 स्थानों पर बाजी मार सकते हैं। स्टार-न्यूज नीलसन के सर्वे में जदयू-भाजपा के 150, लालू-पासवान के 57, कांग्रेस के 15 और 21 आजाद उम्मीदवार को विजयश्री मिलने के आसार हैं। मीडिया और ज्योतिषियों के बीच सभी दलों के अपने-अपने दावें पहले से मतदाताओं के बीच हैं।
चार्ट
ज्योतिषी जदयू-भाजपा की सीट
आचार्य अरविन्द 198
आचार्य ब्रजमोहन 188
प´डित जर्नादन 208
आचार्य राममिलन शुक्ल 170
अनु डण्डरियाल 169
समीर उपाध्याय 140 से 150

टीवी चैनल
आईबीएन 7 185-201
स्टार न्यूज 150
नईदुनिया २४ नवंबर
भविष्यवाणी-सर्वे का खेल, कोई पास-कोई फेल
रासविहारी
नई दिल्ली। बिहार में सरकार तो नीतीश कुमार की बनेगी। यह भविष्यवाणी तो ज्यादातर भाग्य बांचने वालों की सही निकली है। टीवी चैनल के एक्जिट पोल भी सरकार बना रहे थे, पर ऐसी बंपर जीत की भविष्यवाणी करने में ज्यादातर चूक गए। एक्जिट पोल को नीतीश कुमार का खेल बताने वाले लालू प्रसाद, रामबिलास पासवान और कांग्रेसी नेताओं के तमाम दावे भी धरे रह गए। भाजपा की सीटें कम होने की भविष्यवाणी करने वाले भी अब सन्न हैं।
आईबीएन 7-सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे सही निकला। इस सर्वे में जदयू-भाजपा को 185 से 201 सीट, राजद-लोजपा को 22 से 32, और कांग्रेस को 6-12 सीट मिलने की संभावना जताई थी। सर्वे में 9-19 अन्य उम्मीदवारों के जीतने के संकेत दिए गए थे। स्टार न्यूज-एसी नीलसन के सर्वे में सरकार तो नीतीश कुमार की बनाई गई थी पर सीटों के मामले में सर्वे खरा नहीं उतरा। सर्वे में जदयू-भाजपा को 148, राजद-लोजपा को 68, कांग्रेस को 14 और अन्य 13 उम्मीदवारों के जीतने की भविष्यवाणी की गई थी। सी वोटर के सर्वे में 142 से 154 सीटें एनडीए को मिलने की संभावना जताई गई थी।
नईदुनिया ने बिहार विधानसभा चुनाव में वोटों की गिनती से कुछ समय पहले ही कुछ ज्योतिषियों से बात कर उनकी की भविष्यवाणी छापी थीं। एक को छोड़कर छह ज्योतिषियों ने नीतीश कुमार की सरकार बनने की भविष्यवाणी की थी। इस बात पर तो ज्योतिषी खरे उतरे, पर सीटों की भविष्यवाणी करने में ज्यादातर चूक गए। आचार्य अरविन्द ने 198 और पण्डित जनार्दन ने 208 सीट एनडीए मिलने की भविष्यवाणी की थी। राजनेताओं का भाग्य बांचने वाले समीर उपाध्याय की लालू प्रसाद के सितारे गिर्दश में रहने की भविष्यवाणी तो सही निकली पर सीटों के मामले में उनका हिसाब गलत साबित हुआ। आचार्य ब्रजमोहन ने 188, आचार्य राममिलन शुक्ल ने 170 और अनु डण्डरियाल ने 169 सीटें एनडीए को मिलने की भविष्यवाणी की थी। वैसे कुछ ज्योतिषी तो बिहार में किसकी होगी जीत-किसकी होगी हार बताने में भी कतरा गए थे।
इनका सही रहा आकलन
ज्योतिषी एनडीए को मिली सीट
आचार्य अरविन्द 198
पण्डित जनार्दन 208
चैनल
आईबीएन 7 185 से 201
नईदुनिया २५ नवंबर

भविष्यवाणी-सर्वे का खेल, कोई पास-कोई फेल

रासविहारी
नई दिल्ली। बिहार में सरकार तो नीतीश कुमार की बनेगी। यह भविष्यवाणी तो ज्यादातर भाग्य बांचने वालों की सही निकली है। टीवी चैनल के एक्जिट पोल भी सरकार बना रहे थे, पर ऐसी बंपर जीत की भविष्यवाणी करने में ज्यादातर चूक गए। एक्जिट पोल को नीतीश कुमार का खेल बताने वाले लालू प्रसाद, रामबिलास पासवान और कांग्रेसी नेताओं के तमाम दावे भी धरे रह गए। भाजपा की सीटें कम होने की भविष्यवाणी करने वाले भी अब सन्न हैं।
आईबीएन 7-सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे सही निकला। इस सर्वे में जदयू-भाजपा को 185 से 201 सीट, राजद-लोजपा को 22 से 32, और कांग्रेस को 6-12 सीट मिलने की संभावना जताई थी। सर्वे में 9-19 अन्य उम्मीदवारों के जीतने के संकेत दिए गए थे। स्टार न्यूज-एसी नीलसन के सर्वे में सरकार तो नीतीश कुमार की बनाई गई थी पर सीटों के मामले में सर्वे खरा नहीं उतरा। सर्वे में जदयू-भाजपा को 148, राजद-लोजपा को 68, कांग्रेस को 14 और अन्य 13 उम्मीदवारों के जीतने की भविष्यवाणी की गई थी। सी वोटर के सर्वे में 142 से 154 सीटें एनडीए को मिलने की संभावना जताई गई थी।
नईदुनिया ने बिहार विधानसभा चुनाव में वोटों की गिनती से कुछ समय पहले ही कुछ ज्योतिषियों से बात कर उनकी की भविष्यवाणी छापी थीं। एक को छोड़कर छह ज्योतिषियों ने नीतीश कुमार की सरकार बनने की भविष्यवाणी की थी। इस बात पर तो ज्योतिषी खरे उतरे, पर सीटों की भविष्यवाणी करने में ज्यादातर चूक गए। आचार्य अरविन्द ने 198 और पण्डित जनार्दन ने 208 सीट एनडीए मिलने की भविष्यवाणी की थी। राजनेताओं का भाग्य बांचने वाले समीर उपाध्याय की लालू प्रसाद के सितारे गिर्दश में रहने की भविष्यवाणी तो सही निकली पर सीटों के मामले में उनका हिसाब गलत साबित हुआ। आचार्य ब्रजमोहन ने 188, आचार्य राममिलन शुक्ल ने 170 और अनु डण्डरियाल ने 169 सीटें एनडीए को मिलने की भविष्यवाणी की थी। वैसे कुछ ज्योतिषी तो बिहार में किसकी होगी जीत-किसकी होगी हार बताने में भी कतरा गए थे।
इनका सही रहा आकलन
ज्योतिषी एनडीए को मिली सीट
आचार्य अरविन्द 198
पण्डित जनार्दन 208
चैनल
आईबीएन 7 185 से 201
नईदुनिया से साभार

Friday, November 12, 2010

पत्रकार चलाएं प्रेस क्लब, वरिष्ठ पत्रकारों की राय

प्रेस क्लब चुनाव
पत्रकार चलाएं प्रेस क्लब
वरिष्ठ पत्रकारों की राय
प्रमुख संवाददाता
नई दिल्ली। प्रेस क्लब ऑफ इण्डिया के चुनाव में इस बार आमने-सामने की टक्कर है। वर्तमान अध्यक्ष परवेज अहमद और महासचिव पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ के पैनल के मुकाबले टी आर रामचन्द्रन-सन्दीप दीक्षित का पैनल है। चुनावी लड़ाई में हर तरह के मुद्दे हैं। भाषा, जाति से लेकर एक-दूसरे पर तमाम आरोप मढ़े जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि चुनाव प्रेस क्लब में नहीं बल्कि किसी पंचायत के हो रहे हैं। चुनाव के लिए मतदान को 13 नवबंर को होगा।
बदलाव की बयार में वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि प्रेस क्लब की कमान पत्रकारों के हाथ में होनी चाहिए। ज्यादातर पत्रकारों का मानना है कि प्रेस क्लब के प्रबंधन में बदलाव जरूरी है। उनकी राय में चुनाव के दौरान उठाए जा रहे हिन्दी बनाम अंग्रेजी और कायस्थ बनाम ब्राह्मण जैसे मुद्दे उछालना बेकार की बात है। मीडिया जगत में ऐसे मुद्दे कोई मायने नहीं रखते हैं।
चुनाव की शुरुआत में परवेज-पुष्पेन्द्र पैनल के मुकाबले रामचन्द्रन-सदीप पैनल के उतरने के बाद कुछ लोगों ने यह मुद्दा उठाया था कि फुलटाइम पत्रकार प्रेस क्लब नहीं चला सकते हैं। यह मुद्दा उछलते ही फुस्स हो गया। बाद में कायस्थ बनाम ब्राह्मण की लड़ाई को भुनाने की कोशिश हो रही है।
परवेज-पुष्पेन्द्र लगातार चार बार प्रेस क्लब के लिए चुने गए हैं। पिछले चुनावों में उनके मुकाबले दो-तीन पैनल उतरने के कारण उन्हें फायदा होता रहा है। इस बार सीधी टक्कर में बदलाव का नारा उनके सामने है। उनके पैनल की तरफ से मुकाबले में उतरे पत्रकारों को मौसमी परिन्दा करार दिया गया है।
कुछ पत्रकार छठ पूजा पर ही हर बार चुनाव कराने को मुद्दा बना रहे हैं। बिहार से जुड़े पत्रकारों का कहना कि हर बार छठ पूजा पर ही चुनाव क्यों कराए जाते हैं। छठ पूजा पर बड़ी संख्या में सदस्य दिल्ली से बाहर चले जाते हैं। शायद यह एक तरह से बिहार के पत्रकारों को चुनाव से दूर करने की साजिश है।

Saturday, November 6, 2010

दिवाली पर हर कोई खरीदारी में मस्त

रासविहारी
नई दिल्ली। इस बार दिवाली की खरीदारी में हर कोई मस्त है। दुकानें माल से तो माकेoट खरीदारों से फुल हैं। जेब में पैसा नहीं है तो किश्त पर खरीद रहे हैं। मकान हो या वाहन या िफर घर सजाने का सामान। सबकी बिक्री जोरों पर हैं। धनतेरस पर सोने-चान्दी के सामान की बिक्री का जो रिकार्ड टूटा वह जारी है। आतिशबाजी के धुआंभरे शोरशराबे में तमाम बन्दिशें भी उड़ जाएंगी। लोग धूमधड़ाका करने के लिए बम-पटाखे खरीद रहे हैं। पिछली बार दुकानों में रह गया माल इस बार मुनाफा दे रहा है।
इस बार दिवाली पर ऑनलाइन शॉपिंग खूब हो रही है। करीब 280 फीसदी की बढ़त आंकी जा रही है। एक करोड़ लोगों द्वारा इंटरनेट पर 2200 करोड़ रुपए का ऑर्डर देने की उम्मीद है। वाणिज्य एवं उद्योग चैंबर एसोचैम की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।
दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद, नोएडा सहित तमाम शहरों में सोने-चान्दी के जेवर, इलेक्ट्रानिक सामान, मोबाइल फोन, इलेक्टि[कल्स सामान, रेडीमेड कपड़े, सूखे मेवे, मिठाई, बर्तन, क्रॉकरी और घर सजाने के सामान की मांग बढ़ी है। चान्दी के सिक्कों की बिक्री में जमकर उछाल आया है। लोग एक घर हो अपना का सपना पूरा करने के लिए जोर लगा रहे हैं। कार और दोपहिया वाहनों के शोरूम में ग्राहकों की भीड़ है और कंपनियां मस्त हैं। बाजार की भीड़ महंगाई डायन पर भी भारी पड़ती नज़र आ रही है।
घरों को सजाने के साथ ही महिलाओं का जोर किचन को आधुनिक बनाने का है। मोड्युलर किचन बन पाए या नहीं पर कुछ नया सामान तो खरीदना ही है। माइक्रोवेव ओवन भी महिलाओं को भा रहे हैं।
धनतेरस पर बर्तनों के साथ क्राकरी की बिक्री हुई है। माकेoट में उपहारों की बिक्री आखिर तक रहने की उम्मीद है। ब्राण्डेड रेडीमेड कपड़ों के साथ गैर ब्राण्डेड माल भी खूब बिक रहा है। खासतौर पर गर्म कपड़ों का बाजार ज्यादा गर्म है।
चान्दी के सिक्कों के अलावा लोगों को ब्राण्डेड कंबल और बेड शीट देने का चलन भी इन दिनों चल रहा है। इस बार दिवाली पर रंग-रोगन के कारोबार में सौ फीसदी इजाफा हुआ है। हालत यह है कि घर की रंगाई-पुताई करने वाले मजदूरों का टोटा पड़ गया है। मुंहमांगी मजदूरी मिलने से उनकी दिवाली भी बढ़िया मन रही है। घरों की रंगाई-पुताई के बाद बिजली की लड़ियों से जगमगाया जा रहा है। बिजली की लड़ियां माकेoट में जगह-जगह बिक रही हैं।
जब हर किसी की जेब में माल है तो िफर धमाल में ही क्यों कमी रहे। धूमधड़ाके के बीच देसी-विदेशी दारू भी खूब बिक रही है। दिल्ली में तो दो दिन दारू के ठेकों का समय भी बढ़ा दिया गया है। किसी खास को गिफ़्ट देने के लिए तो वाइन, िव्हस्की और रम है। बस तो अब क्या गम है।

Saturday, October 30, 2010

रेगिस्तान में आइसलैंड!

रासविहारी, संयुक्‍त अरब अमीरात से लौटकर। रस अल खेमा, कभी नाम भी नहीं सुना था। मेरी ही तरह बहुत सारे भारतीयों ने इसका नाम नहीं सुना है। इसलिए जब मेरे एक दोस्त ने रस अल खेमा आने का न्यौता दिया तो शुरू में कुछ समझ ही नहीं पाया। बाद में उसने बताया कि दुबई की ही तरह रस अल खेमा भी संयुक्त अरब अमीरात का एक शहर है और सात अमीरात में से एक अमीरात है।
दुबई से 80 किलोमीटर दूर रेत के रेगिस्तान में बसा है, रस अल खेमा। दुबई और रस अल खेमा के बीच फराoटा भरती हाइवे है, जिस पर कोई भी गाड़ी 120 और 140 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से कम नहीं चलती। दुबई से चलकर शारजाह को पार करते हुए पहुंचना होता है रस अल खेमा। शारजाह पार करते ही सड़क के दोनों ही तरफ रेत ही रेत। सोचा यह कैसा शहर है, लेकिन जब पहुंचा तो पता चला कि दुनिया की हर आधुनिक सुख सुविधाओं वाला है यह शहर।
हमारे दोस्त बलवंत व संतोख चावला ने इस रेगिस्तान में 125 एकड़ में आइसलैण्ड पार्क बनाया है। आप भी इनसे परिचित होंगे, यही नहीं हैं तो बता दें कि दिल्ली के कापसहेड़ा बॉर्डर पर स्थित फन एण्ड फूड के संचालक यही दोनों भाई हैं। इनके स्वामित्व वाली पोलो एम्यूजमेंट ग्रुप ने दिल्ली, नागपुर और पूर्व सोवियत संघ के ताशकन्द के बाद अपने वाटर पार्क के लिए रस अल खेमा को चुना था। न सिर्फ इसे चुना था, बल्कि इस आइसलैण्ड में दुनिया का सबसे बड़ा मानव निमिoत वाटर फॉल और रेल डांस पुल भी स्थापित कर दिया था।
हमारे साथ कुछ और पत्रकारों का दल इस पार्क के उदघाटन अवसर का गवाह बनने गया था। रस अल खेमा के रूलर एच एच शेख सउद बिन शाकिर अल कासिमी ने इस पार्क का उदघाटन किया। रस अल खेमा एक टैक्स फ्री जोन है, जहां आप आसानी से कोई भी उपक्रम लगा सकते हैं। लेकिन यहां आप 49 फीसदी से अधिक निवेश नहीं कर सकते। आपके निवेश में 51 फीसदी की भागीदारी वहां के रूलर की हो जाती है। इस कारण भारत का पोलो एम्यूजमेंट यहां संयुक्त उपक्रम बनकर पोलो रैक एम्यूजमेंट एलएलसी हो गया है।
रस अल खेमा के जल जजीरा अल हामरा में रसलखेमा में 125 एकड़ में आइसलैण्ड वाटर पार्क का निर्माण किया गया है। इसमें एक साथ 10 हजार लोग लुत्फ उठा सकते हैं। इसमें 50 से अधिक वाटर स्लाइड लोगों के मनोरंजन के लिए बनाया गया है। यहां लगाया गया वाटर प्लांट एक दिन में पांच लाख 25 हजार गैलन पानी की सफाई करता है। इसमें से चार मिलियन गैलन पानी पुल में जाता है। ये वाटर स्लाइड इतने रोमांचक हैं कि इसमें सवारी करते वक्त कई बार खतरे का अहसास हुआ, लेकिन इस अहसास के साथ रोमांचक अहसास बना रहा।
रेगिस्तान की तपती गर्मी में ये वाटर पार्क राहत देने वाले लगे। दिन भर के थके-मान्दे अरब के शेखों को अपने परिवार के साथ यहां आता देखकर अच्छा लगा कि चलो एक भारतीय ने एक गैर मुल्क में न सिर्फ एक मुकाम हासिल किया है, बल्कि वहां के स्थानीय लोगों को मनोरंजन की सुविधाएं भी दे रहा है। दिल्ली में पार्किंग की पार्किंग की किच-किच से इतनी बार गुजर चुका हूं कि यहां की पार्किंग में एक साथ 2500 कारें व 75 बसें खड़ी करने की बात सुनकर थोड़ा आश्चर्य हुआ और यह भी लगा कि यहां के लोग कितने अनुशासित हैं जो बड़े आराम से गाड़ियां खड़ी कर रहे हैं। पोलो इम्यूजमेंट ग्रुप के निदेशक सन्तोष चावला ने बताया कि भारत एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। हमें भी दुनिया को दिखाना है कि हमारे देश की कंपनी और हमारे यहां के लोग किसी देश से कम नहीं है।
रस अल खेमा में हमलोग तीन दिन रहे। इस बीच दुबई की शॉपिंग का भी मजा लिया। दुबई से यह जगह थोड़ी सस्ती है। इस बीच एक शाम डेजर्ट सफारी का अवसर भी मिला। पहले तो ड्राइवर ने डराया कि आप लोगों ने अधिक खाना तो नहीं खाया है। यदि आपने गाड़ी में उल्टी की तो 500 दिरहम का जुर्माना भरना होगा। एक दिरहम यहां का करीब 13 ‹पए होता है तो समझ लीजिए कि सफारी के बीच आपने यदि गाड़ी में उल्टी की तो 6500 ‹पए तत्काल ड्राइवर आपकी जेब से खींच लेगा।
खैर, डेजर्ड सफारी के लिए हम लैण्ड क्रूजर में सवार हुए। रेल के ऊंचे-नीचे टीलों में दौड़ती-भागती, कूदती-फांदती लैंड क्रूजर के अन्दर घबराहट सिर्फ इसलिए नहीं हुई कि ड्राइवर ने जुर्माना भरने की धमकी दी थी, बल्कि इस सफर के रोमांच ने घबराहट को पैदा ही नहीं होने दिया। कई बार लगा गाड़ी अब पलटी, तब पलटी, लेकिन अचानक रेत उड़ाती उड़न छू हो जाती। सफारी की थकान उस वक्त कम हुई जब बीच रेगिस्तान में खाने-पीने और नाच-गाने का प्रबंध देखा।
दरअसल यह डेजर्ड सफारी के पैकेज का हिस्सा था। वहां ऊंट की सवारी से लेकर अरबी संगीत की मोहक धुन, सभी कुछ तो मौजूद था। अरबी संगीत पर पहले थिरकता एक पु‹ष और िफर एक कमसिन बाला ने समा बांध दिया। उस जगह पर भारत, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, रूस-सभी जगह के पर्यटक थे। सफारी की सारी थकान काफूर हो गई और उस रात नीन्द भी जबरदस्त आई।
सुबह दुबई की सैर को निकले। दुबई को देखकर लगा कि इसे ऐसे ही शॉपिंग सिटी नहीं कहा जाता। ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों और मॉल वाले इस शहर में हर वक्त शॉपिंग फेस्टिवल का अहसास होता है। यहां पाम-जुमैरा आइलैण्ड हो, दुनिया का सबसे ऊंची बल्डिंग बुर्ज़ खलीफा हो या दुनिया का सबसे बड़ा मॉल दुबई माल-सभी कुछ मानव निर्मित है। एक अरब सागर का किनारा प्राकृतिक लगा, लेकिन इसे भी ऊंचे तटों से बांधने की कोशिश दिख जाती है।
दुबई में भारत का असली अहसास `बर-दुबई' नामक जगह पर जाकर हुआ। आप यूं समझ लीजिए कि हम दिल्ली के चान्दनी चौक में पहुंच गए थे, लेकिन यह चौक चान्दनी चौक की अपेक्षा बहुत अधिक व्यवस्थित है। दिल्ली में नीचे दुकान और ऊपर रिहायश वाले इलाके को अनधिकृत कह कर कई इलाकों में बुल्डोजर चलाया गया, लेकिन यहां नीचे दुकान और ऊपर मकान की जगमगाहट ऊंची अट्टालिकाओं वाले इस शहर में आंखों को सुकून देती लगी। ज्वैलरी से लेकर कपड़े तक, चाट-समोसा से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स आयटम तक सब कुछ यहां के बाजार में उपलब्ध है। अंग्रेजी नहीं आती कोई बात नहीं, आपने रुपए को दिरहम में नहीं बदला तो भी चलता है। यहां तो बस आप अपनी भाषा हिन्दी में अपने भारतीय रुपए के साथ दौड़ पड़ेंगे।
इसलिए जब भी दुबई जाइए तो `बर-दुबई' जरूर जाइए, आपके अपने भाईयों ने उस रेगिस्तानी, ऊची अट्टालिकाओं वाली तपती धरती पर भारत का झण्डा बुलन्द कर रखा है। हमारी शाम की फ़्लाइट थी, वर्ना इच्छा हो रही थी थोड़ा वक्त और वहां गुजारें और आपके साथ थोड़ा और अनुभव शेयर करें। चलिए, अब आप खुद घूम आइए, उसमें ज्यादा मजा है।

संडे नईदुनिया से साभार

अच्छे मुहूर्त की बारी, खूब चल रही है खरीदारी

इलैक्ट्रानिक, मोबाइल, घड़ियों और कपड़े खरीदने पर ज्यादा जोर
बर्तन-जेवरात का बाजार भी रहेगा गर्म
सोने-चान्दी के गिफ़्ट आइटम भी खूब बिक रहे हैं
रासविहारी
नई दिल्ली। इस बार दिवाली पर बाजारों में भारी भीड़ है। कहा जा रहा है कि शनिवार को तीस साल बाद खरीदारी का जबरदस्त शुभ मुहुर्त है। यह मुहूर्त शनिवार को पुष्य नक्षत्र के कारण बन रहा है। बाजारों में िफलहाल सबसे ज्यादा इलैक्ट्रॉनिक सामान, मोबाइल, कपड़े और घड़ियों की बिक्री हो रही है। खरीदारों की भीड़ से दुकानदार मस्त हैं।
खरीदारों की भीड़ के मद्देनज़र कंपनियां एक से एक नायाब बेशकीमती सामान बाजार में लांच कर रही हैं। गुरुवार को 16 करोड़ की कार बाजार में उतारी गई तो शुक्रवार को स्टार किक्रेटर सचिन तेन्दुलकर दो करोड़ की घड़ी लांच करने पहुंचे। तमाम कंपनियां रोजाना अपने-अपने उत्पाद ग्राहकों को लुभाने के लिए बाजार में लांच कर रहे हैं। घर की रंगाई-पुताई, सजावट के सामान से लेकर सोने-चान्दी के जेवरात खरीदे जा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि बढ़ती कीमतों के बावजूद उपहार के तौर पर देने के लिए सोने-चान्दी के आइटम खूब बिक रहे हैं। बाजार में सोने-चान्दी के तरह-तरह के गिफ़्ट आइटम भी मौजूद हैं। चान्दी के लक्ष्मी-गणेश की मूिर्त की बिक्री भी इस बार ज्यादा बढ़ी है। हैसियत बढ़ने का साथ लोगों में दिवाली के दिन चान्दी की मूिर्तयों का पूजन करने का चलन बढ़ा है।
धनतेरस से पहले ही शुभ मुहूर्त के कारण बाजारों में शनिवार को बर्तन और जेवरात के खरीदारों की भीड़ बढ़ने की संभावना है। चान्दी के गिलास, कटोरे और ट्रे में सूखे मेवे भरकर देना भी लोगों को खूब भा रहा है। ऐसा उपहार पाने पर तो हर कोई खुश होता है। दाम बढ़ने का बावजूद सूखे मेवों की बिक्री में जोरदार बढ़ोतरी हुई है।
दिवाली पर इस बार कपड़ों की दुकानों पर ज्यादा भीड़ है। तमाम तरह के नए-नए फैशन और डिजाइनों वाले कपड़े खरीदारों को पसन्द आ रहे हैं। कपड़ो के बाद मोबाइल और घड़ियों की भी बिक्री बढ़ी है।
नईदुनिया से साभार 30/10/2010

Saturday, October 23, 2010

दिल्ली सरकार की खर्च लीला

वाहवाही लूटने को 63 हजार करोड़ का पर्चा, जांच से बचने को 4 हजार की चर्चा
रासविहारी
नई दिल्ली। दिल्ली की भी खर्च लीला अजीब है। कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़ी परियोजनाओं की जांच होने पर सरकार खर्च बता रही है, महज 3800 करोड़ रुपए। गेम्स से एक महीने दिल्ली सरकार ने प्रधानमन्त्री को भेजे पत्र में खर्चा बताया था 16198 करोड़। खबर यह नहीं है कि खर्च 3800 करोड़ हुए या 16198 करोड़। खबर तो यह है कि दिल्ली सरकार वाहवाही लूटने को खर्च बता रही थी कि 63 हजार करोड़ रुपए। इसके लिए बाकायदा रंगाबिरंगी फोटो वाली किताब बांटी गई। इस किताब पर खर्च भी मोटा किया गया।
दिल्ली सरकार की तरफ से यह किताब पिछले विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले बांटी गई थी। परियोजनाओं के खर्च पर विवाद उठने के बाद सरकार ने कई परियोजनाओं को कॉमनवेल्थ गेम्स के बाहर बता दिया। इन परियोजनाओं में बिजली, पानी, स्वास्थ्य, सड़क, सजावट और अन्य योजनाएं हैं। चुनाव से पहले दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन को अपनी योजनाएं बताने वाली दिल्ली सरकार ने अब पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया है। बिजली परियोजनाओं का तो सरकार कॉमनवेल्थ गेम्स से पूरी तरह अलग बता रही है। आठ हजार मेगावॉट की बिजली परियोजनाओं पर सरकार ने 35 हजार करोड़ खर्च करने का ऐलान किया था। स्ट्रीट लाइट और स्ट्रीट स्केपिंग पर ही 890 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना तैयार की थी। स्ट्रीट लाइटिंग 325 किमी लंबी सड़क और स्ट्रीट स्केपिंग 150 किमी होनी थी। सरकार ने पहले पानी सप्लाई करने की योजना के लिए एक हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई थी। स्ट्रीट स्केपिंग पर लोक निर्माण विभाग ने 269 करोड़, दिल्ली नगर निगम ने 160 करोड़ और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद ने 60 करोड़ खर्च किए हैं। अब सरकार ने कॉमनवेल्थ विलेज गेम्स में एक एमजीडी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और एक एमजीडी की क्षमता वाला सीवर ट्रीटमेंट प्लांट को ही गेम्स से जोड़ रही है। इन दोनों प्रोजेक्ट पर 35 करोड़ और 31.95 करोड़ खर्च किए गए।

गेम्स सूची से बाहर हुए बड़े प्रोजेक्ट
गीता कालोनी पुल
आरआर कोहली मार्ग फ़्लाईओवर
गाजीपुर फ़्लाईओवर
मुकरबा चौक
आजादपुर
रावतुला राव मार्ग
नेल्सन मण्डेला मार्ग
आईटीचुंगी बेहरा इंलक्लेव
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Thursday, October 21, 2010

यह किस का है खेल

रासविहारी
नई दिल्ली। कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति से पूर्व केन्द्रीय मन्त्री और भारतीय जनता पाटीo के राष्ट्रीय महासचिव विजय गोयल को निकाला गया या उन्होंने इस्तीफा दिया? यह तो तय नहीं है पर गेम्स देखने के लिए अक्रीडिटेशन कार्ड उन्होंने आयोजन समिति के सदस्य के तौर पर बनवाया। यह अलग बात है कि विजय गोयल पिछले एक साल से आयोजन समिति में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। इसके लिए उनकी तारीफ मंगलवार को भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी की थी।
श्री गडकरी ने मंगलवार को प्रेस कांफ्रेस में एक सवाल के जवाब में कहा था कि आयोजन समिति से भाजपा नेता विजय गोयल ने इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने गोयल की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई छेड़ने पर जमकर तारीफ की थी। अब यह सवाल उठाया जा रहा है कि आयोजन समिति से इस्तीफा देने के बाद विजय गोयल ने सदस्य के तौर पर अपना और पत्नी प्रीति गोयल का अक्रीडिटेशन कार्ड क्यों बनवाया? उन पर भाजपा अध्यक्ष को भी पूरी जानकारी न देने का बात उठाई जा रही है। भाजपा नेताओं में से विजय कुमार मल्होत्रा आयोजन समिति के कार्यकारी बोर्ड के सदस्य हैं। विजय गोयल के अलावा कीिर्त आजाद और चेतन चौहान आयोजन समिति के सदस्य बनाए गए थे।
मिली जानकारी के अनुसार सुधांशु मित्तल के दोस्त हरीश शर्मा की भाजपा के नेताओं के अक्रीडिटेशन कार्ड बनवाने में बड़ी भूमिका रही है। हरीश शर्मा आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी और महासचिव ललित भनोट के खासमखास हैं। भाजपा के दबंग नेता रहे प्रमोद महाजन के खास हरीश शर्मा को आयोजन समिति में बड़ी भूमिका मिली थी।
श्री गोयल का कहना है कि उन्होंने आयोजन समिति से इस्तीफा नहीं दिया था। आयोजन समिति ने ही उन्हें बाहर निकाल दिया था। उनका कहना है कि आयोजन समिति की तरफ से उन्हें अक्रीडिटेशन कार्ड बनवाने का फार्म भेजा गया था।

Sunday, October 17, 2010

कलमाडी पर तेज हुआ हमला

रासविहारी
नई दिल्ली। कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार को लेकर दिल्ली की मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित ने आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी पर सीधा हमला बोल दिया है। लगातार दूसरे दिन उन्होंने भ्रष्टाचार को लेकर कलमाडी पर सीधा शक जताया है। लंबे अरसे से गेम्स की तैयारियों को लेकर आलोचना झेलती रहीं श्रीमती दीक्षित ने कलमाडी को लपेटने वाले बयान देने शुरू कर दिए हैं। आयोजन समिति में भ्रष्टाचार की जांच के लिए लिए कमेटी गठित होने पर सुरेश कलमाडी ने हर तरह का सहयोग देने का ऐलान किया है। इससे पहले कामयाबी का श्रेय लेने की होड़ में उपराज्यपाल तेजेन्द्र खन्ना से श्रीमती दीक्षित का टकराव चल रहा है।
आयोजन समिति के अध्यक्ष कलमाडी से भी श्रीमती दीक्षित टकराव पुराना है। कलमाडी ने गेम्स के कई मुख्य आयोजनों से श्रीमती दीक्षित को दूर रखा था। गेम्स की पहली टिकट जारी करने के समारोह से भी उन्हें दूर रखा गया था। आयोजन समिति की तरफ  से दिल्ली सरकार के कामों पर बार-बार उंगली उठाई गई थी। मुख्यमन्त्री ने आयोजन समिति पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप में कलमाडी को सीधे ही लपेट दिया है। सबसे ज्यादा हेराफेरी आयोजन समिति को कर्ज़ के तौर पर मिली राशि में हुई है।
श्रीमती दीक्षित के कलमाडी पर हमला बोलने के बाद यह माना जा रहा है कि आयोजन समिति से जुड़े कुछ प्रमुख अफसरों पर भी गाज गिर सकती है। खासतौर पर आयोजन समिति की वित्त समिति और उपसमिति के सदस्य जांच के लपेटे में आएंगे। इनमें कुछ असरदार अफसर भी हैं। गेम्स के लिए ओवरलेज की खरीदारी की मंजूरी भी अफसरों की समिति ने दी थी।
खेलों में भ्रष्टाचार के लिए गठित उच्चस्तरीय जांच समिति के अलावा भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक, केन्द्रीय सतर्कता आयोग और केन्द्रीय जांच ब्यूरो भी अपने-अपने स्तर से जांच कर रहे हैं। कहा जा रहा कि िफलहाल करीब दो दर्ज़न बड़े अफसरों के कामकाज की जांच की जा रही है। इससे पहले सीवीसी ने गेम्स के लिए बनाए गए कई प्रोजेक्ट में गड़बड़ी के सिलसिले में पूछताछ शुरू की थी। सीएजी ने दिल्ली सरकार की परियोजनाओं की भी जांच शुरू कर दी है।
कॉमनवेल्थ गेम्स की प्रमुख परियोजनाओं को अंजाम देने में दिल्ली सरकार, भारतीय खेल प्राधिकरण (साई), दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली नगर निगम और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद की बड़ी भूमिका रही है। सीबीआई विभिन्न परियोजनाओं की टेण्डर प्रक्रिया की जांच कर रही है।
नईदुनिया से साभार १७ अक्टूबर२०१०

Saturday, October 16, 2010

बिन पैसे की खनक, नहीं दमकी बॉलीवुड की चमक

रासविहारी
नई दिल्ली। चार साल पहले मेलबर्न में करोड़ों रुपए लेकर ठुमका लगाकर दिल्ली आने का न्योता देने वाले बॉलीवुड के चमकते सितारे कॉमनवेल्थ गेम्स के उद्घाटन और समापन समारोह से गायब रहे। गेम्स आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी अपने नजदीकी सम्बंधों के बलबूते शाहरुख खान और अन्य सितारों को बुलाने में नाकाम रहे। बताया यही जा रहा है कि संगीतकार ए आर रहमान को एक गाने के पांच करोड़ देने वाली आयोजन समिति फिल्मी सितारों के लिए पैसे नहीं जुटा पाई।
आयोजन समिति की तरफ से चार साल से लगातार बॉलीवुड के नामी िफल्मी कलाकारों को कॉमनवेल्थ गेम्स के उद्घाटन और समापन समारोह में बुलाने का बात की जा रही थी। शाहरुख खान के अलावा ऋतिक रोशन और करीना कपूर को जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के मंच पर लाने की कोशिश की गई थी। चार साल पहले मेलबर्न में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में दिल्ली की तरफ से ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा,रानी मुखर्जी, लारा दत्ता और सैफ अली खान दिल्ली की तरफ से मेलबर्न में कार्यक्रम पेश करने गए थे। मेलबर्न में आयोजित कार्यक्रम में लगभग 35 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।
आयोजन समिति के सूत्रों के अनुसार बॉलीवुड के सितारों को कॉमनवेल्थ गेम्स में बुलाने के लिए बातचीत तो हुई पर आखिर तक कार्यक्रम तय नहीं हो पाया। इसकी बड़ी वजह सितारों को सही कीमत न मिल पाना बताया गया है। िफल्मी कलाकारों को कार्यक्रम की तैयारी कराने के लिए यशराज स्टूडियो से भी बात की गई थी। हैरानी की बात तो यह है कि िफल्मी सितारे कॉमनवेल्थ गेम्स से दूर ही रहे। दीपिका पादुकोण ही अपने पिता के साथ एक दिन मैच देखने पहुंची। दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि शाहरुख और ऋतिक ने कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों में कलमाडी पर उठ रहे सवालों के कारण पहले ही न कर दिया था। शाहरुख को पहले समापन समारोह में बतौर अतिथि लाने की कोशिश भी की गई थी। िफलहाल वह अपनी िफल्म की शूटिंग के लिए विदेश में हैं।

Saturday, October 9, 2010

ये कैसा खेल : टिकट हैं नहीं, स्टेडियम में दर्शकों का टोट

खाली पड़े हैं स्टेडियम खल रहे हैं खिलाड़ियों को
आयोजन समिति ने दर्शक जुटाने का जिम्मा दिल्ली सरकार और एनजीओ पर छोड़ा
एनजीओ को दर्शक जुटाने के लिए पास, खाने का कूपन और मेट्रो टिकट दिए गए
रासविहारी
नई दिल्ली। कॉमनवेल्थ गेम्स में दर्शकों का टोटा पड़ गया है। आयोजन समिति के अनुसार गेम्स के लिए नौ लाख टिकट बिक चुके हैं। बड़ी संख्या में दिल्ली सरकार को स्कूली बच्चों और गैर सरकारी संगठनों के लिए पास जारी किए गए हैं। इसके बावजूद दर्शक स्टेडियम में नहीं दिखाई दे रहे हैं। दर्शकों के टोटे के बीच हालत यह है कि लोगों को टिकट नहीं मिल रहे हैं। जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में 14 अक्टूबर को होने वाले समापन समारोह के लिए टिकट ही नहीं मिल रहे हैं।
कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति के महासचिव ललित भनोट का दावा है कि नौ लाख टिकट की बिक्री से 32 करोड़ रुपए मिले हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार और गैर सरकारी संगठनों को टिकट दिए गए हैं। अब उनकी जिम्मेदारी है कि लोगों को स्टेडियम तक पहुंचाएं। बताया गया है कि कई गैर सरकारी संगठनों को पास दिए गए हैं। दर्शक जुटाने के लिए एनजीओ को प्रति दर्शक खाने-पीने के लिए सौ रुपए का कूपन और आने-जाने के लिए मेट्रो का टिकट दिया गया है।
कॉमनवेल्थ गेम्स में 12 स्थानों पर 17 खेलों की प्रतियोगिताएं रही हैं। जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम की 60 हजार दर्शकों की क्षमता के बाद सबसे ज्यादा क्षमता ध्यानचन्द नेशनल स्टेडियम की है। 19118 दर्शकों की क्षमता वाले नेशनल स्टेडियम में हॉकी के मैच हो रहे हैं। समापन समारोह के साथ ही हॉकी मैच के टिकट लोगों को नहीं मिल रहे हैं। टिकट के लिए दो-तीन घंटे लाइन में खड़े होने के बाद लोगों को निराशा ही हाथ लगी। टिकटों की बिक्री होने के बावजूद दर्शकों की कमी खिलाड़ियों को खल रही है। वैसे आयोजन समिति का दावा है कि तीरन्दाजी और नेटबॉल को छोड़कर सभी खेलों में दर्शक जुट रहे हैं।
मिली जानकारी के अनुसार कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन में भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों के आरोपों की चर्चा के कारण शुरुआत में टिकटों की बिक्री नहीं हो पा रही थी। ऐसे में आयोजन से जुड़ी और अन्य सरकारी एजेंसियों ने बड़ी संख्या में टिकट खरीद लिए। कुछ निजी कंपनियों ने टिकट खरीदे। टिकट खरीद तो लिए गए पर आगे बांटे नहीं गए। टिकटों को रद्दी में कबाड़ में फेंकने की चर्चा गर्म है। इस कारण दर्शकों का टोटा हो गया।
नईदुनिया, ९ अक्टूबर (साभार)

Friday, October 8, 2010

क्रिकेट बनाम कॉमनवेल्थ गेम्स यानी पवार-कलमाडी में लड़ाई

रासविहारी
नई दिल्ली। क्रिकेट विरोधी देश में खेलों की बदहाली के लिए क्रिकेट के जुनून को जिम्मेदार मानते हैं। क्रिकेट बनाम अन्य खेल की लड़ाई पहले से ही जारी है। अब
केन्द्रीय कृषि मन्त्री शरद पवार का अपने पुराने चेले और सुरेश कलमाडी के बीच जारी लड़ाई किक्रेट मैच बनाम कॉमनवेल्थ गेम्स हो गई है। पवार ने चुटकुलों के जरिए पुणे में कलमाडी पर खुला हल्ला बोला था। गेम्स के उद्घाटन के दिन पवार का मोहाली में मौजूद रहने पर राजनीति गर्मा रही है। मोहाली में आस्ट्रेलिया के खिलाफ दस साल बाद भारत को मिली जीत को अलग नज़रिए से देखा जा रहा है। यह भी चर्चा है कि कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय खिलाड़ियों को मिले सोने-चान्दी के तमगों की चमक को क्रिकेट की जीत से कम करने की कोशिश की गई थी।
मनमोहन सिंह मन्त्रिमण्डल के कई दिग्गज सदस्यों की रविवार को उद्घाटन के मौके पर जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में मौजूदगी के बीच पवार के नदारद रहने पर चर्चा शुरू हो गई है। इन्टरनेशनल क्रिकेट काउंसिल  चैयरमेन पवार उस दिन चण्डीगढ़ में अपना सम्मान कराने के बहाने मस्त थे। यह सम्मान समारोह आईसीसी का मुखिया बनने पर आयोजित किया गया था।
कॉमनवेल्थ गेम्स शुरू होने से एक स¹ााह पहले पवार ने कलमाडी के गृह नगर पुणे में एक बड़ी जनसभा कर उन पर जमकर हल्ला बोला था। पूरे देश में मोबाइल फोन पर इधर-उधर हो रहे कुछ एसएमएस भी उन्होंने सुनाए। पवार का कहना था कि कलमाडी ने स्टेडियम की छत से लटककर फांसी लगाई पर छत ही नीचे आ गई। यह है कॉमनवेल्थ गेम्स में काम की क्वालिटी। यह चुटकुला उन्होंने लोगों को खूब सुनाया।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पाटीo के अध्यक्ष पवार के नजदीकी नेताओं का मानना है कि कलमाडी पर पुणे में हमला सोची समझी रणनीति के तहत किया गया। पवार ने जानबूझकर पुणे में ही कलमाडी पर हल्ला बोला। इसका असर कलमाडी पर दिल्ली में आलोचना करने से ज्यादा हुआ। कलमाडी को लेकर उन्होंने कई और बातें भी कहीं। कलमाडी एनसीपी के गठन से पहले शरद पवार के खासमखास रहे थे।
तमाम आलोचनाओं का जवाब कलमाडी ने कॉमनवेल्थ न्यूज टाइम्स में मंगलवार को दिया है। इसके साथ ही कॉमनवेल्थ गेम्स में बंटने वाली विलेज न्यूज में पवार पर तीखी टिप्पणी की भी चर्चा जोर पकड़ रही है। विलेज न्यूज कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति की तरफ से छापा जा रहा है। विलेज न्यूज में लिखा गया है कि क्रिकेट के लिए जुनून वाले देश में कॉमनवेल्थ गेम्स के जरिए अन्य खेलों को पनपने का मौका मिलेगा।

ओलिम्पक कराने पर होंगे खर्च एक लाख करोड़ रुपए

रासविहारी
नई दिल्ली। कॉमनवेल्थ गेम्स के शानदार उद्घाटन के बाद दिल्ली की मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित राजधानी में ओलिम्पक कराने को तैयार हैं। दिल्ली में ओलिम्पक आयोजित कराने के लिए कम से कम एक लाख करोड़ रुपए खर्च करने होंगे। ओलिम्पक गेम्स में 205 देशों के खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं। 2012 में लन्दन में होने वाले ओलिम्पक का बजट 80 हजार करोड़ रुपए तय किया गया है। 17 दिन चलने वाले लन्दन ओलिम्पक में रोजाना सात लाख खिलाड़ी, अधिकारी, कर्मचारी और दर्शक जुटेंगे।
कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारियों में देरी को लेकर तमाम आलोचनाओं का सामना करने वाली श्रीमती दीक्षित का मानना है कि दिल्ली ओलिम्पक की मेजबानी कर सकती है। यह दावा वे तैयारी को लेकर उठ रहे सवालों के दौरान भी करती रही हैं। यह अलग बात है कि भारत की तरफ से इस बार एशियाड के लिए दावेदारी ही पेश नहीं की गई।
दिल्ली में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स के पर 70 हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। दिल्ली सरकार की तरफ से गेम्स की तैयारी पर 70 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का ऐलान किया गया था। इसमें स्टेडियम, सड़क, फ़्लाईओवर, ट्रांसपोर्ट, बिजली और पानी की सुविधाएं जुटाने पर किया गया खर्च शामिल है। गेम्स के लिए इन्दिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट को चमकाने के लिए अलग से 12500 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। 500 करोड़ की लागत से बनाए गए घरेलू टमिoनल वन डी को बाद में तोड़ दिया जाएगा। कॉमनवेल्थ गेम्स विलेज के निर्माण पर ही 1200 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं।
कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए दिल्ली में 11 स्टेडियम बनाए गए हैं। प्रतियोगिता स्थलों के निर्माण और पुननिoर्माण पर 5200 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। ओलिम्पक के लिए कम से 35 स्टेडियम की जरूरत होगी। कॉमनवेल्थ में 17 गेम्स में सात हजार खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं तो ओलिम्पक में 26 गेम्स में 20 हजार से ज्यादा खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स के मुकाबले ओलिम्पक की अवधि ज्यादा होती है। ओलिम्पक के लिए एक लाख खर्च करोड़ रुपए का हिसाब-किताब मौजूदा लागत के आधार पर आंका गया है।

Wednesday, October 6, 2010

कलमाडी की रंगारंग िफल्मी रासलीला

नई दिल्ली। धूमधड़ाकेदार नाच-गाने और रंगारंग िफल्मी रासलीला के साथ समापन होगा कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 का। शानदार उद्घाटन समारोह के बाद यादगार समापन समारोह पूरी दुनिया को दिखाने की तैयारी चल रही है। आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी अपने सम्बंधों के चलते बॉलीवुड के नामीगिरामी सितारों को जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम के मंच पर लाने के जुगाड़ में लगे हुए है। शाहरुख खान और ऋतिक रोशनसाथ करीना कपूर व विद्या बालन समापन समारोह में अपने डांस का जलवा दिखाने आ रहे हैं। तैयारी तो ऐश्वर्या राय को लाने की भी है।
समापन समारोह में आने वाले अन्य जाने-माने कलाकार मुम्बई में नाच-गाने की रिहर्सल करने में जुटे हुए हैं। आयोजन समिति की समापन समारोह उपसमिति के अनुसार इस पूरे तामझाम पर 200 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होगा। आयोजन समिति अभी तक पूरे कार्यक्रम की रूपरेखा को लेकर चुप है। िफलहाल केरल की कोरियाग्राफर मधुगोपी नाथ और वक्कम सजीव की अगुवाई में 450 कलाकार मार्शल आर्ट का प्रस्तुति देने के लिए रिहर्सल कर रहे हैं। कार्यक्रम के संयोजक भारत बाला भी बड़े पैमाने पर जुटे हुए हैं। समारोह के अन्त में ग्लासगो के कलाकार 2014 में आयोजित होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स का न्योता देने के लिए कार्यक्रम पेश करेंगे। इस तरह का कार्यक्रम दिल्ली सरकार की तरफ से 2006 में मेलबोर्न में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स के समापन समारोह में पेश किया था। उस समय ऐश्वर्या राय, प्रियंका चोपड़ा,रानी मुखर्जी, लारा दत्ता और सैफ अली खान दिल्ली की तरफ से मेलबोर्न में कार्यक्रम पेश करने गए थे। इस पर लगभग 35 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।
कॉमनवेल्थ गेम्स के उद्घाटन के बाद दिल्ली में जश्न का माहौल है। भारत सरकार के कला,संस्कृति एव भाषा मन्त्रालय, दिल्ली सरकार के पर्यटन और संस्कृति विभाग, राजस्थान सरकार और अन्य सरकारी महकमों की तरफ से रंगारंग कार्यकमोø का आयोजन जारी है। कैलाश खेर, लुईस बैंक्स, शंकर एहसान लॉय, दलेर मेंहदी, पलाश सेन, कुमार शानू और जगजीत सिंह जैसे जाने-माने कलाकारों धूम मचा रखी है। पांच से ज्यादा कलाकार इस समय अपने-अपने कार्यक्रम पेश कर रहे हैं। ये सभी कलाकार 14 अक्टूबर तक कार्यक्रम पेश करेंगे।
मिली जानकारी के अनुसार ऋतिक रोशन, विद्या बालन और करानी कपूर मुम्बई में यश चोपड़ा के यशराज स्टूडियो में डांस की रिहर्सल शुरू करेंगे। शाहरुख खान के समारोह में मौजूद रहने के पूरे आसार बताए जा रहे हैं। कांग्रेस सरकार की नाराजगी के बावजूद अमिताभ बच्चन की बहू ऐश्वर्या राय से भी आयोजन समिति की तरफ से संपर्क किया गया है। ऐश्वर्या के भी जल्दी ही रिहर्सल में जाने की बात की जा रही है।
साभार नई दुनिया