tag:blogger.com,1999:blog-15322627472901149432024-03-07T22:38:46.019-08:00ras ki leela.....रास की लीलाUnknownnoreply@blogger.comBlogger30125tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-89876750919857881612012-04-04T08:17:00.003-07:002012-04-04T19:16:03.245-07:00अपना ही गांव बना 'चक्रव्यूह’मंुडका,बवाना,कराला और पूठकलां वार्ड में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार एक ही गांव से<br />
गांव वालों के सामने पैदा हुआ धर्मसंकट, एक का झण्डा उठायें तो बैठे-बिठाये दूसरे से दुश्मनी<br />
जाटों के गढ़ में खुलकर पसंद-नापसंद होती रही है जाहिर, इस बार छायी चुप्पी<br />
रासविहारी मेट्रो संपादक <br />
नई दिल्ली। देहात का कोई बाशिंदा अगर चुनाव लड़नें का मन बनाता है तो सबसे पहले बडे-बुजर्ग एक ही नसीहत देते है 'पहले अपने गांव को साथ करले फिर आगे कदम बढ़ाना’। मतलब साफ होता है कि अपनों के बगैर लड़ाई में कूदना घाटे का सौदा बन जाता है। नगर निगम चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के कई उम्मीदवार अपने पैतृक गांव को खुद के पाले में खड़ा करने के लिए तमाम दांव-पेच आजमा रहे है लेकिन बात बन नहीं पा रही है। वजह एक ही है, भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों का एक ही गांव का निवासी होना। मुंडका(वार्ड-3०), बवाना(वार्ड-28), कराला (वार्ड-29) और पूठकलां (वार्ड-25) में यह रोचक स्थिति गांववालों को खुलकर बोलने से रोक रही है। उम्मीदवारों के गांववालों के लिए तो एमसीडी का चुनाव ग्राम पंचायत का चुनाव बन गया है यानि एक का झण्डा उठायें तो बैठे-बिठाये दूसरे से दुश्मनी।<br />
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह के छोटे भाई मास्टर आजाद सिंह को चुनाव के दौरान अपने पैतृक गांव मंुडका का लगभग एकतरफा समर्थन मिलता रहा है, लेकिन इस बार यहां से कांग्रेस ने उनके ही गांव के नरेश कुमार को मुकाबले में उतारा हुआ है। अब मुंडका गांव के सामने धर्मसंकट बन गया है, एक के पीछे चले तो दूसरा नाराज। आजाद सिंह का स्वागत करें तो नरेश का परिवार खफा और नरेश को फूलों का हार पहनाये तो मास्टर जी पूछें कि मैंने क्या बिगाड़ा है। <br />
बवाना वार्ड में पिछले चुनाव में तीन उम्मीदवार रहे निर्दलीय नारायण सिंह, भाजपा के रामनिवास और कांग्रेस के कटार सिंह एक ही गांव बवाना के निवासी थ्ो। लिहाजा गांव का रूख खमोशी की चादर ओढेè हुआ था। जीत नारायण सिंह की हुई थी। अबकी बार फिर पिछले हालात बने हुए है। नारायण सिंह भाजपा से और देवेन्द्ग सिंह उर्फ पोनी पहलवान कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे है। बीच में पिछली बार भाजपा की टिकट से चुनाव मैदान में उतरे रामनिवास निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर कूदे हुए हैं। तीनों ही बवाना गांव से है। तीनों अपने गांव के ज्यादा से ज्यादा लोगों को खुद के पीछे जोड़ने रात-दिन पसीना बहा रहे हैं लेकिन मन चाही कामयाबी नहीं मिल पा रही है।<br />
कराला वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित है। यहां से कांग्रेस ने मनीषा जसबीर और भाजपा ने सुषमा देवी को टिकट दिया है। दोनों ही कराला गांव की हैं। पिछली बार भी यह वार्ड महिला सामान्य के तौर पर आरक्षित था। भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी और कराला निवासी मंजीत माथुर ने 2००7 का चुनाव जीता था। इसबार उनका टिक ट पार्टी ने काट दिया लेकिन भरोसा कराला गांव पर ही बरकरार रहा और सुषमा देवी को उम्मीदवार बनाया।<br />
पूठकलां वार्ड में कांग्रेस के अजित सोलंकी और भाजपा के देवेन्द्ग सोलंकी दोनों ही पैतृक तौर पूठकलां गांव के रहने वाले है। यहां गांव वालों के सामने यक्ष प्रश्न खड़ा है कि वोट किसे दें! जो भी दरवाजे पर आता है उसी को आशीर्वाद थमा देते है लेकिन खुलकर साथ चलने की बात आती है तो ज्यादातर गांववाले कन्नी काट लेते हैं।<br />
कराला गांव माथुर गोत्र के जाटों का है। यहां ओमप्रकाश माथुर का कहना है कि हमारे लिए तो दोनो ही उम्मीदवार एक जैसे हैं। किसी एक का पक्ष कैसे लें। वोट किसको डालोगे? इसके जवाब में फिर माथुर साहब कूटनीति से भरा उत्तर देते है। अभी सोचा नहीं है। बवाना में सहरावत गोत्र के जाट चौधरी बसते है, तीनों उम्मीदवार भी सहरावत हैं। यहां पर नौजवान सतीश सहरावत बताते है कि तीनों उम्मीदवारों के साथ बवाना के कम जबकि दूसरे गांवों के लोग प्रचार पर ज्यादा संख्या में निकलते हैं। उनका कहना है कि ज्यादातर बवानावासी फिलहाल उम्मीदवारों की रस्साकशी से बचने के मूड में हैं। सभी को गांव में रहना है और कोई भी नहीं चाहता कि नतीजा आने के बाद हारने वाला पक्ष उनके सिर ठिकरा फोड़ें। <br />
पूठकलां गांव के सोलंकी गोत्र के जाट भी अपने ही गांव के दो बेटों को टिकट मिलने के बाद खुश हुए थ्ो कि कोई भी हारे या जीते पार्षद की चौधराहट अपने ही गांव में रहेगी लेकिन अब इनको भी इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो रहा है कि बटन हाथ पर दबेगा या कमल पर। <br />
आज अगर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह जिंदा होते तो वर्तमान स्थिति उनके लिए भी बडी उलझन वाली होती। हर चुनाव में मुंडका में वहीं हुआ जो साहिब सिंह ने कहा। लाकड़ा गोत्र के जाट बाहुल्य इस गांव में इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार नरेश कुमार भाजपा के उम्मीदवार मास्टर आजाद के लिए गांव का खुलकर समर्थन मिलने की राह में रोड़ा बन गए हैं। यहां पर राकेश लाकड़ा का कहना है कि गांव में साहिब सिंह की प्रतिष्ठा आज भी बरकार है लेकिन नरेश भी तो म्हारा छोरा है।<br />
नेशनल दुनिया ५ अप्रैल २०१२Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-77311579017623326282012-04-04T08:14:00.001-07:002012-04-04T19:17:40.826-07:00भाजपा के बागियों ने बदला हवा का रुखपार्टी छोड़ने का सिलसिला जारी<br />
पूर्व मंत्री मुखी के दामाद कांग्रेस में शामिल <br />
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के करीबी रिश्तेदार भी छोड़ सकते हैं पार्टी <br />
5० से ज्यादा बागी उम्मीदवार प्रचार में आगे <br />
रासविहारी <br />
नई दिल्ली। नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ बहती हवा का रुख भारतीय जनता पार्टी के बागी उम्मीदवारों ने बदलना शुरू कर दिया है। तीन निगमों में भाजपा के सौ से ज्यादा बागी उम्मीदवारों ने ताल ठोक रखी है। 5० से ज्यादा बागी उम्मीदवारों ने प्रचार में अपनी बढ़त कायम कर ली है। 28 बागी उम्मीदवारों ने तो अपना नया मोर्चा बनाकर चुनाव की रणनीति तैयार कर ली है। इसके साथ बड़े नेताओं की मनमानी के खिलाफ पार्टी छोड़ने का सिलसिला और तेज हो गया है। पूर्व मंत्री जगदीश मुखी के दामाद सुरेश कुमार भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता के करीबी रिश्तेदार समेत कुछ और नजदीकी नेता पार्टी छोड़ने के संकेत दे रहे हैं। <br />
भाजपा के आला नेता सर्वे के भरोसे जीत की उम्मीद पाले बैठे हैं। इस कारण बागियों को मनाने की कोशिश भी नहीं हो रही है। प्रदेश भाजपा प्रभारी वेंकैया नायडू ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मांगेराम गर्ग को उत्तरी दिल्ली नगर निगम, पूर्व मंत्री जगदीश मुखी को दक्षिण दिल्ली नगर निगम और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन को पूर्वी दिल्ली निगम का चुनाव प्रभारी बनाया है। श्री गर्ग और श्री मुखी को पहले तो प्रदेश की चुनाव समिति में ही नहीं रखा था। अपनी उपेक्षा से दुखी दोनों नेताओं की कोई बागी सुनने को तैयार ही नहीं है। मुखी के तो परिवार में ही बगावत हो गई है। जनकपुरी पश्चिम से उनके दामाद सुरेश कुमार ने पहले आजाद उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल किया था। बाद में उन्होंने नामांकन वापस ले लिया और अब कांग्रेस मेें शामिल हो गए। पूर्वी दिल्ली निगम में तो डॉ. हर्षवर्धन के खिलाफ हर जगह भारी बगावत है। उनके विधानसभा क्षेत्र कृष्णा नगर के चारों वार्डों में बागी उम्मीदवारों ने भाजपा उम्मीदवारों की हालत खराब कर दी है। जिन-जिन लोगों को उन्होंने उम्मीदवार बनवाया था, उन्हें कार्यकर्ताओं ने नकार दिया है। ज्यादातर वार्डों में उम्मीदवारों को कार्यकताã ही नहीं मिल रहे हैं। <br />
भाजपा छोड़कर सात पार्षद बागी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में बने हुए हैं। न्यू अशोक नगर से प्रभा सिंह, रोहिणी से हरीश अवस्थी, रानी बाग से सुदेश भसीन, सागरपुर से प्रवीण राजपूत, लाजपत नगर से बीना अब्रोल, खजूरी खास से रामवीर और मोहन गार्डन से राजेश यादव ने भाजपा के उम्मीदवारों की हालत पतली कर रखी है। इसके अलावा कई पार्षदों की पत्नी में मैदान में हैं। उन्होंने भी प्रचार में अच्छी बढ़त बनाई है। निगम की स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष डॉ. वी के मोंगा का टिकट काटने को लेकर भी कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है। उनका टिकट डॉ. हर्षवर्धन के कहने पर काटा गया था। बताया जा रहा है कि मोंगा को टिकट देने पर डॉ. हर्षवर्धन ने इस्तीफा देने की धमकी दी थी। मोंगा का टिकट कटने से पंजाबी बिरादरी के वोटर नाराज बताए जा रहे हैं।<br />
नेशनल दुनियाUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-81338859082440957322012-03-30T03:53:00.000-07:002012-03-30T03:53:09.975-07:00अब नेशनल दुनिया मेंदोस्तों<br />
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कल से हमने अपनी पूरी टीम के साथ पत्रकारिता जगत में एक नई शुरूआत की है। जून २००८ में मैंने कई साथियों के साथ बीस साल हिन्दुस्तान में काम करने के बाद नईदुनिया को दिल्ली में लाने की तैयारी शुरू की। अक्टूबर २००८ में नई दुनिया की दिल्ली से शुरूआत की। अपनी खबरों के कारण नईदुनिया ने दिल्ली में अपनी जगह बनाई और एक चर्चित अखबार बना। हमारे प्रधान संपादक श्री आलोक मेहता के नेतृत्व में हमने महज १० दिन के भीतर नया अखबार दिल्ली और एनसीआर के पाठकों के लिए नया अखबार नेशनल दुनिया शुरू किया है। इसका पहला अंक आज आपके सामने है। हमें भी यह एक सपने से कम नहीं लग रहा है। २८ मार्च को हमें नए अखबार का नाम मिला और उसी दिन डेक्लेरशन फाइल किया और अगले दिन से अखबार शुरू हो गया। यह सब आप जैसे शुभचिंतक दोस्तों की शुभकामनाओं के कारण ही संभव हो पाया है। हमारी पूरी टीम अब नेशनल दुनिया में है और उसी तरह निर्भीक और निष्पक्ष तरीके से हम आपको खबरों से भरपूर रखेंगे। आशा है आपका सहयोग पहले की तरह मिलता रहेगा।Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-9866138652010057012011-09-23T04:24:00.000-07:002011-09-23T04:24:25.427-07:00ras ki leela.....रास की लीला: मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए ...<a href="http://raskileela.blogspot.com/2011/09/11354.html?spref=bl">ras ki leela.....रास की लीला: मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए ...</a>: मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए पांच साल में १६ बार गए अमेरिका नई दिल्ली। मैं भी सरकारी, मेरा घर भी सरकारी, मेरी कार भी...Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-61180697476062379622011-09-23T04:21:00.000-07:002011-09-23T04:22:48.620-07:00मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए पांच साल में १६ बार गए अमेरिकामोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए <br />
पांच साल में १६ बार गए अमेरिका<br />
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नई दिल्ली। मैं भी सरकारी, मेरा घर भी सरकारी, मेरी कार भी सरकारी और मेरी विदेश यात्रा भी सरकारी। खर्च कितना भी हो क्या अंतर पड़ता है। खासतौर पर उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा जो रोजाना शहरी गरीब का घर ३२ रुपए में चला सकते हैं। गांव में गरीब का घर रोजाना २६ रुपए में चलाने की बात करने वाले योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया का विदेश यात्राओं का रोजाना औसतन खर्च है ११,३५४ रुपए। जाहिर है कि उनकी सरकारी विदेश यात्राओं का खर्च सरकार ने ही उठाया है।<br />
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योजना आयोग ने महंगाई के बढ़ते बोझ से दबते गरीबों की नई परिभाषा बनाई है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में योजना आयोग ने शहरों में रोजाना ३२ रुपए और गांव में २६ रुपए खर्च करने वालों को गरीब नहीं बताया है। रोजाना औसतन विदेश की यात्रा पर ११,३५४ रुपए खर्च करने वाले योजना आयोग के उपाध्यक्ष अहलुवालिया गरीबों का दर्द भी कैसे समझें। अहलुवालिया साहब का विदेशी यात्राओं का खर्च पत्रकार अरुण कुमार सिंह ने सूचना के अधिकार के तहत हासिल किया है। <br />
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योजना आयोग ने एक आरटीआई के जवाब में बताया है कि योजना आयोग के उपाध्यक्ष अहलुवालिया ने पांच साल में विदेश यात्राओं पर २ करोड़, चार लाख ३६ हजार ८२५ रुपए खर्च किए। पिछले पांच साल यानी जुलाई २००६ से जुलाई २०११ तक उन्होंने कुल ३६ बार विदेश की यात्रा की। इनमें ३५ यात्राएं सरकारी खर्चे पर की गईं। केवल एक बार उन्होंने अपनी जेब से विदेश यात्रा का खर्च चुकाया। <br />
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मिली जानकारी के अनुसार अहुलवालिया साहब पांच साल में १६ बार अमेरिका की सरकारी यात्रा पर गए। पांच साल के दौरान उन्होंने चार-चार बार ब्रिटेन और सिंगापुर की यात्रा की। इसके साथ ही अहलुवालिया ने दो बार फ्रांस और चीन की यात्रा की। साथ ही कोरिया, स्विटरजरलैंड, ओमान, कनाडा, बहरीन,जापान और सऊदी अरब की यात्रा सरकारी खर्च पर की।<br />
नईदुनिया 23 सितंबर2011Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-30532403033867073752011-06-07T08:27:00.000-07:002011-06-07T08:27:42.545-07:00अध्यक्षजी ने करवाई मालिश<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">अध्यक्षजी ने करवाई मालिश<br />
नारे कम गाने ज्यादा<br />
राजघाट पर भाजपा का सत्याग्रह<br />
रासविहारी <br />
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने राजघाट पर सत्याग्रह के दौरान मालिश कराके अपनी थकान मिटाई। मौका था भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे बाबा रामदेव पर पुलिसिया जुल्म के खिलाफ भाजपा के राजघाट के सामने आयोजित २४ घंटे के सत्याग्रह का। सत्याग्रह के दौरान गाने ज्यादा बजे और नारे कम लगे। ज्यादातर नेता तेज गर्मी के कारण कुछ समय ही सत्याग्रह में शामिल हुए।<br />
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रविवार की शाम को सात बजे शुरू हुआ धरना सोमवार की शाम को खत्म हुआ। रात को एक बजे के आसपास ज्यादातर नेताओं और कार्यकर्ताओं के रवाना होने के बाद मंच के पीछे सोने के लिए बनाई गई जगह पर शाम से बैठे अध्यक्षजी की थकान पुरानी दिल्ली की मशहूर मालिश से उतारी गई। थकान उतारने के बाद अध्यक्षजी आम कार्यकर्ताओं के साथ ही सत्याग्रह स्थल पर सोने गए। सुबह छह बजे नहाने-धोने के लिए अपने आवास पर गए और जल्दी वापस आ गए। पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी भी सत्याग्रह में ज्यादा समय नहीं बैठे।<br />
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सत्याग्रह पर अध्यक्षजी के साथ पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह, धर्मेन्द्र प्रधान, अनंत कुमार और युवा मोर्चा के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर जमे रहे। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने रात को कृष्ण भजन और देशभक्ति के गीतों के जरिए कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया। स्वराज तड़के चार बजे अपने घर गईं तो राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली रात तीन बजे गए। सुषमा स्वराज ने गानों पर ठुमके भी लगाए। ठुमके लगाने में उनका साथ अनुराग ठाकुर ने दिया। <br />
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सत्याग्रह स्थल पर गर्मी में पसीना बहाते बैठे नेताओं और कार्यकर्ता नारे कम लगा रहे थे। इस कारण जोश भरने के लिए यह देश है वीर जवानों का और मेरा रंग दे वसंती चोला जैसे गाने ज्यादा बजते रहे। सत्याग्रह में बाबा रामदेव के समर्थक भी शामिल हुए।<br />
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सत्याग्रह के दौरान भी सुषमा और जेटली समर्थकों में दूरी बनी रही। रात को सुषमा समर्थक नेता उनके आसपास जमे रहे तो जेटली के खास भी उनके पास बैठे रहे। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता को दोनों के बीच संतुलन बनाने में जरूर मेहनत करनी पड़ी</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-57482027386732694162011-03-27T04:41:00.000-07:002011-03-27T04:41:13.769-07:00दारू की कमाई से भरते सरकारी खजानेशराब को सेहत और समाज के लिए बेहद खराब मानना कोई नई बात नहीं है । सैद्धांतिक तौर पर हर मंच से इसकी निंदा की जाती रही है और हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने इसकी घोर निंदा की लेकिन विडंबना यह है कि भाजपा शासित या भाजपा के सहयोग से चलने वाली सरकारों ने शराब प्रबंधन से जम कर राजस्व बटोरने पर ध्यान दिया है । ज्यादातर राज्य सरकारों के खजाने में दारू की बिक्री से ज्यादा कर जमा हो रहा है । हाल यह है कि ज्यादातर राज्यों में पांच साल में दारू से कमाई दोगुनी से ज्यादा हो गई है । छत्तीसगढ़ को छोड़कर सभी राज्यों में शराब ठेकों की संख्या या शराब की बिक्री बढ़ रही है <br />
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रासविहारी <br />
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महंगी हुई शराब कि थोड़ी-थोड़ी पिया करो के सुरीले सुरों का असर पियक्कड़ों पर कोई पड़ता नहीं दिखता है । महंगी होती शराब के बावजूद शराब के दीवाने करोड़ों की शराब गटक जाते हैं। ज्यादातर राज्य सरकारों के खजाने में दारू की बिक्री से ज्यादा कर जमा हो रहा है । हाल यह है कि ज्यादातर राज्यों में पांच साल में दारू से कमाई दोगुनी से ज्यादा हो गई है । छत्तीसगढ़ को छोड़कर सभी राज्यों में शराब ठेकों की संख्या या तो बढ़ रही है या शराब की बिक्री में लगातार बढ़ोतरी हो गई है । छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस साल अप्रैल से दो हजार की आबादी वाले गांवों में देशी-अंग्रेजी शराब के २५० ठेके बंद करने का एलान किया है । इससे राज्य में शराब की बिक्री में कमी आएगी । जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार और असम में शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व में बढ़ोतरी हो रही है । हिमाचल, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में पियक्कड़ों की तादाद भी तेजी से बढ़ रही है । पंजाब में १८ साल से ज्यादा आयु वालों की शराब पीने की अनुमति है । इसके बावजूद पंजाब में १३ साल तक के बच्चे नशे की गिरफ्त में हैं । पंजाब की महिलाओं में भी नशे की लत बढ़ रही है । जम्मू-कश्मीर में भी अंग्रेजी शराब की बिक्री बढ़ी है । चंडीगढ़ में शराब की बिक्री खूब होती है। आंकड़े बता रहे हैं कि रोजाना १.८० लाख बोतल शराब अकेले चंडीगढ़ में बिक जाती है । कभी केरल में शराब की सालाना बिक्री प्रति व्यक्ति सबस<br />
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्ीटा्रज्यादा थी । इस समय हरियाणा पियक्कड़ों के लिहाज से अव्वल है । हरियाणा सरकार ने विकास के मद्देनजर आबकारी नीति को उदार बनाया है । देहाती इलाकों के विकास के लिए पंचायतों को आबकारी राजस्व में हिस्सा देने की घोषणा की गई है । एक गैर सरकारी संगठन के अनुसार प्रति व्यक्ति सालाना खपत हरियाणा में २१.४५, दिल्ली में १४.७२, हिमाचल प्रदेश में १२.८० और पंजाब में ११.४५ बोतल है । महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और बिहार में देशी दारू की बिक्री भी ज्यादा हो रही है । पूरे देश में जितनी देशी शराब बिकती है उसका ५० प्रतिशत तो इन सात राज्यों में ही खप जाता है । इन आंकड़ों को तफसील से देखें तो पाएंगे कि देश में देशी दारू की बिक्री का ११ फीसदी उत्तर प्रदेश, नौ फीसदी महाराष्ट्र, आठ फीसदी पश्चिम बंगाल, आठ फीसदी बिहार, पांच फीसदी पंजाब और मध्य प्रदेश तथा चार फीसदी हरियाणा में हिस्सा है । कई राज्यों में देशी दारू की बिक्री पर रोक लगा दी गई है । इसके बावजूद देशी दारू का सालाना कारोबार २५ हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है । देशी दारू की बिक्री में हर साल ढाई फीसदी का इजाफा हो रहा है । अंग्रेजी शराब की बिक्री हर साल १० फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। यही वजह है कि सरकारी खजाने में अन्य मदों में मिलने वाले राजस्व से ज्यादा आबकारी से मिलता है । कई राज्यों में वैट के बाद सरकारों की कमाई शराब की बिक्री से होती है । <br />
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हैरानी की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के राज वाले राज्य भी शराब की बिक्री से लगातार राजस्व बढ़ा रहे हैं । देश में आबकारी से कमाई करने वालों में कर्नाटक अव्वल रहा है । कर्नाटक सरकार ने आगामी वित्त वर्ष के लिए आबकारी वसूली का लक्ष्य ९,२०० करोड़ रुपए तय किया है । चालू वित्त वर्ष में कर्नाटक ने तय लक्ष्य ७,५०० करोड़ रुपए से कहीं बढ़कर ८,२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूले हैं । तमिलनाडु सरकार भी कर्नाटक सरकार की तर्ज पर चल रही है । तमिलनाडु सरकार ने नए वित्त वर्ष में ८,९३५ करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है । <br />
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आबकारी लक्ष्य में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश ने अन्य राज्यों के मुकाबले कम लक्ष्य तय किया है । मध्य प्रदेश में वर्ष ०९-१० में सरकार ने आबकारी के तहत २,४०० करा़ेड रुपए वसूलने का लक्ष्य तय किया और मिले २५ सौ करोड़ रुपए ! २०१०-११ के लिए सरकार ने २,७०० करोड़ मिलने की उम्मीद सरकार ने जताई है । लगता है, कमाई इससे ज्यादा होगी । <br />
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उत्तर प्रदेश सरकार ने तो आबकारी वसूली के लिए अगले दो साल के लिए नई नीति बनाई है । उत्तर प्रदेश में २००९-१० में बीयर और अंग्रेजी शराब की २० करोड़ से ज्यादा बोतलें बिकीं । देशी दारू की २२ करोड़ बोतलें बिकीं । सरकार को इस मद में ५,६६६ करोड़ रुपए मिले । इस साल फरवरी तक आबकारी वसूली में सरकार ने २० प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है । माया सरकार ने आबकारी वसूली के तहत अगले दो साल में तीन हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त वसूली का लक्ष्य तय किया है यानी कि अगले वित्त वर्ष में आबकारी के तहत आठ हजार करोड़ रुपए वसूलने का लक्ष्य रखा गया है । <br />
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ऐसा नहीं है कि अन्य राज्य शराब से कमाई में बहुत पीछे हैं । तेजी से विकास की तरफ बढ़ते छोटे राज्यों में पंजाब ने नए वित्त वर्ष में ३,१९० करोड़, हरियाणा ने २५०० करोड़ और दिल्ली २२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है । उत्तराखंड में भी भाजपा की सरकार ने आबकारी वसूली का लक्ष्य बढ़ाया है । दिल्ली के पियक्कड़ हर महीने ४५ लाख बोतल दारू गटक जाते हैं । सरकार का राजस्व भी लगातार बढ़ रहा है । तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शीला दीक्षित ने पहली बार वित्त विभ ङ"ख११ऋ<br />
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्ीटा्रज्यादा थी । इस समय हरियाणा पियक्कड़ों के लिहाज से अव्वल है । हरियाणा सरकार ने विकास के मद्देनजर आबकारी नीति को उदार बनाया है । देहाती इलाकों के विकास के लिए पंचायतों को आबकारी राजस्व में हिस्सा देने की घोषणा की गई है । एक गैर सरकारी संगठन के अनुसार प्रति व्यक्ति सालाना खपत हरियाणा में २१.४५, दिल्ली में १४.७२, हिमाचल प्रदेश में १२.८० और पंजाब में ११.४५ बोतल है । महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और बिहार में देशी दारू की बिक्री भी ज्यादा हो रही है । पूरे देश में जितनी देशी शराब बिकती है उसका ५० प्रतिशत तो इन सात राज्यों में ही खप जाता है । इन आंकड़ों को तफसील से देखें तो पाएंगे कि देश में देशी दारू की बिक्री का ११ फीसदी उत्तर प्रदेश, नौ फीसदी महाराष्ट्र, आठ फीसदी पश्चिम बंगाल, आठ फीसदी बिहार, पांच फीसदी पंजाब और मध्य प्रदेश तथा चार फीसदी हरियाणा में हिस्सा है । कई राज्यों में देशी दारू की बिक्री पर रोक लगा दी गई है । इसके बावजूद देशी दारू का सालाना कारोबार २५ हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है । देशी दारू की बिक्री में हर साल ढाई फीसदी का इजाफा हो रहा है । अंग्रेजी शराब की बिक्री हर साल १० फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। यही वजह है कि सरकारी खजाने में अन्य मदों में मिलने वाले राजस्व से ज्यादा आबकारी से मिलता है । कई राज्यों में वैट के बाद सरकारों की कमाई शराब की बिक्री से होती है । <br />
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हैरानी की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के राज वाले राज्य भी शराब की बिक्री से लगातार राजस्व बढ़ा रहे हैं । देश में आबकारी से कमाई करने वालों में कर्नाटक अव्वल रहा है । कर्नाटक सरकार ने आगामी वित्त वर्ष के लिए आबकारी वसूली का लक्ष्य ९,२०० करोड़ रुपए तय किया है । चालू वित्त वर्ष में कर्नाटक ने तय लक्ष्य ७,५०० करोड़ रुपए से कहीं बढ़कर ८,२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूले हैं । तमिलनाडु सरकार भी कर्नाटक सरकार की तर्ज पर चल रही है । तमिलनाडु सरकार ने नए वित्त वर्ष में ८,९३५ करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है । <br />
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आबकारी लक्ष्य में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश ने अन्य राज्यों के मुकाबले कम लक्ष्य तय किया है । मध्य प्रदेश में वर्ष ०९-१० में सरकार ने आबकारी के तहत २,४०० करा़ेड रुपए वसूलने का लक्ष्य तय किया और मिले २५ सौ करोड़ रुपए ! २०१०-११ के लिए सरकार ने २,७०० करोड़ मिलने की उम्मीद सरकार ने जताई है । लगता है, कमाई इससे ज्यादा होगी । <br />
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उत्तर प्रदेश सरकार ने तो आबकारी वसूली के लिए अगले दो साल के लिए नई नीति बनाई है । उत्तर प्रदेश में २००९-१० में बीयर और अंग्रेजी शराब की २० करोड़ से ज्यादा बोतलें बिकीं । देशी दारू की २२ करोड़ बोतलें बिकीं । सरकार को इस मद में ५,६६६ करोड़ रुपए मिले । इस साल फरवरी तक आबकारी वसूली में सरकार ने २० प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है । माया सरकार ने आबकारी वसूली के तहत अगले दो साल में तीन हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त वसूली का लक्ष्य तय किया है यानी कि अगले वित्त वर्ष में आबकारी के तहत आठ हजार करोड़ रुपए वसूलने का लक्ष्य रखा गया है । <br />
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ऐसा नहीं है कि अन्य राज्य शराब से कमाई में बहुत पीछे हैं । तेजी से विकास की तरफ बढ़ते छोटे राज्यों में पंजाब ने नए वित्त वर्ष में ३,१९० करोड़, हरियाणा ने २५०० करोड़ और दिल्ली २२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है । उत्तराखंड में भी भाजपा की सरकार ने आबकारी वसूली का लक्ष्य बढ़ाया है । दिल्ली के पियक्कड़ हर महीने ४५ लाख बोतल दारू गटक जाते हैं । सरकार का राजस्व भी लगातार बढ़ रहा है । तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शीला दीक्षित ने पहली बार वित्त विभाग की कमान अपने पास रखी है । मुख्यमंत्री ने साढ़े बारह साल के राज में पहली बार विधानसभा में बजट पेश किया । दिल्ली में आबकारी के तहत लक्ष्य से ज्यादा ही वसूली हो रही है । आसपास के राज्यों के मुकाबले दिल्ली में शराब और बीयर के दाम भी कम हैं ।Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-6634429733013415022011-03-27T04:37:00.000-07:002011-03-27T04:37:23.279-07:00एयरक्राफ्ट की खरीद में ७८३ करोड़ का घपलासीएजी ने एयर इंडिया में ४३ एयरक्राफ्ट की खरीद पर उठाए कई सवाल <br />
सीएजी की रिपोर्ट में हुआ खुलासा <br />
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रासविहारी <br />
नई दिल्ली। एयर इंडिया में बोइंग और एयरक्राफ्ट की खरीद में भारत सरकार को ७८३ करोड़ रुपए से ज्यादा की चपत लगी। नागरिक उड्डयन मंत्रालय की सुस्त चाल के कारण विमानों की खरीद में १० साल से ज्यादा का समय लगा। यह खुलासा भारत के महानियंत्रक और लेखापरीक्षक की ऑडिट रिपोर्ट में किया गया है। एयर इंडिया में विमानों की खरीद को लेकर ऑडिट रिपोर्ट को हाल ही में सरकार को भेजा गया है। रिपोर्ट के अनुसार एयर इंडिया को लेटलतीफी के कारण ५८४ करोड़ ज्यादा देने पड़े और १९९ करोड़ एडवांस को बिना एडजस्ट किए ज्यादा दे दिए गए। <br />
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सीएजी ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में लिखा है कि इंडियन एयरलाइंस ने अक्टूबर, १९९६ में बेड़ा बढ़ाने के लिए टास्क फोर्स बनाई थी। अप्रैल, १९९९ में टास्क फोर्स ने नौ बोइंग और छह एयर बस खरीदने की सूची बनाई। आखिर दिसंबर, १९९९ में चार एयर बस और पांच बोइंग खरीदने का फैसला किया गया। जुलाई, २००० में विमान कंपनियों से तकनीकी और वित्तीय टेंडर मांगे गए। अगस्त २००० में मेसर्स बोइंग और मेसर्स एयरबस इंडस्ट्रीज ने टेंडर दाखिल किए। टास्क फोर्स ने टेंडर का मूल्यांकन करने के बाद अपनी रिपोर्ट इंडियन एयरलाइंस के निदेशक मंडल को मार्च, २००१ में सौंपी। विनिवेश प्रक्रिया के आधार पर निदेशक मंडल ने टास्क फोर्स की रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसी दौरान अमेरिका से सस्ते विमान मिलने की संभावना के मद्देनजर दिसंबर, २००१ में निदेशक मंडल की सलाह पर बोइंग और एयरबस के दोबारा टेंडर मांगे गए। <br />
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ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार इंडियन एयरलाइंस निदेशक मंडल ने मार्च, २००२ में सीएफएम इंजन वाले ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने की प्रोजेक्ट रिपोर्ट को मंजूरी दे दी। विमान खरीदने पर १००८९ करोड़ रुपए का खर्च आने का अनुमान लगाया गया। उड्डयन मंत्रालय को अप्रैल, २००२ में यह प्रोजेक्ट रिपोर्ट सौंपी गई। सीएजी ने पाया कि मार्च, २००३ तक मंत्रालय में प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर कोई चर्चा नहीं की गई। मंत्रालय की विनिवेश सूची आने के बाद जून, २००३ में प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर मंत्रालय ने चर्चा की। मंत्रालय की रिपोर्ट पर योजना आयोग ने दिसंबर, २००३ में पहले चरण में २८ एयरक्राफ्ट और दूसरे चरण में शेष एयरक्राफ्ट खरीदने की मंजूरी दी। हालांकि योजना आयोग ने खरीद पर कुछ सवाल भी उठाए थे। मंत्रालय ने योजना आयोग के सवाल को दरकिनार कर दिया। आयोग का मानना था कि अंतरराष्ट्रीय रूट पर ज्यादा एयरक्राफ्ट खरीदने की जरूरत नहीं है। इस दौरान भाजपा के शाहनवाज हुसैन नागरिक मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे। उनके बाद मई, २००३ में भाजपा के ही राजीव प्रताप रूडी उड्डयन राज्यमंत्री बने और २००४ तक कमान संभाले रहे। २००४ से जनवरी, २०११ तक राष्ट्रवादी कांग्रेस के सांसद प्रफुल्ल पटेल उड्डयन मंत्री रहे। सीएजी का भी मानना है कि इंडियन एयर लाइंस की खराब वित्तीय हालत और लगातार घाटे के कारण विमान खरीदने की जरूरत नहीं थी। इसी दौरान कई निजी कंपनियां हवाई यातायात के क्षेत्र में उड़ने लगीं। सीएजी ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार २००४ में विमान कंपनियों से खरीद की लागत कम करने के लिए बातचीत की गई।<br />
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बातचीत के लिए मानक तय नहीं थे। आखिर में लंबी प्रक्रिया के बाद २००८ में एयरक्राफ्ट एयर इंडिया को मिलने शुरू हुए। इससे पहले खराब वित्तीय हालत और घाटे के कारण इंडियन एयरलाइंस का २००७ में एयर इंडिया में विलय हो गया। इस दौरान विमान कंपनियों की लागत बढ़ती रही। हैरानी की बात यह है कि विमान कंपनियों ने एयर इंडिया को ७६० करोड़ की विशेष छूट भी दी। इसके बावजूद ५८४ करोड़ रुपए ज्यादा देने पड़े। ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया है कि २०० करोड़ रुपए विमान कंपनियों को ज्यादा दे दिए गए। इसके लिए दिए गए एडवांस को एडजस्ट नहीं किया गया। ऑडिट रिपोर्ट में एयर इंडिया द्वारा लीज पर एयरक्राफ्ट लेने पर सवाल उठाए गए हैं। नए एयरक्राफ्ट खरीदने के साथ ही यह फैसला किया गया था कि लीज पर लिए गए एयरक्राफ्ट वापस कर दिए जाएंगे। २००८ में नए एयरक्राफ्ट आने के बावजूद लीज पर लेने वाले एयरक्राफ्ट की संख्या बढ़ती रही। २००७-०८ में ११ एयरक्राफ्ट एयर इंडिया के बेड़े में नए आए तो सात लीज पर भी लिए गए। २००९-१० में पांच बोइंग ७३७ और दो डोर्नियर एयरक्राफ्ट हटाए गए। एयर इंडिया प्रबंधन के अनुसार इस समय बेड़े में १०७ एयरक्राफ्ट हैं। फिलहाल एयर इंडिया ने लीज पर २९ एयरक्राफ्ट ले रखे हैं। २००६-०७ से अब तक १० एयरक्राफ्ट हटाए भी गए हैं।<br />
खरीद प्रक्रिया के दौरान नागरिक उड्डयन मंत्री<br />
शरद यादव : १९ अक्टूबर १९९९ से १ सितंबर २००१ <br />
शाहनवाज हुसैन : १ सितंबर २००१ से २३ मई २००३<br />
राजीव प्रताप रूडी : २४ मई २००३ से २१मई २००४ तक<br />
प्रफुल्ल पटेल : मई २००४ से जनवरी २०११ तक <br />
(राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार)<br />
खरीदारी प्रक्रियाः कब क्या हुआ<br />
खरीद प्रक्रिया के दौरान नागरिक उड्डयन मंत्री<br />
ह अप्रैल, १९९९ : इंडियन एयर लाइंस की इनहाउस कमेटी ने खरीदारी के लिए १५ एयरक्राफ्ट का चयन किया<br />
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ह जून, १९९९ : ऑफर मांगे गए लेकिन आम चुनाव के चलते खोले नहीं गए<br />
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ह दिसंबर १९९९ : इंडियन एयरलाइंस ने नौ तरह के एयरक्राफ्ट का चयन किया<br />
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ह जुलाई, २००० : एयरक्राफ्ट निर्माताओं से ऑफर मांगे गए<br />
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ह मार्च, २००१ : इनहाउस कमेटी ने ऑफर्स की रिपोर्ट निदेशक समूह को सोंपी<br />
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ह दिसंबर, २००१ : अमेरिका में ९-११ की घटना के बाद इंडियन एयरलाइंस ने रीवाइज्ड फाइनेंसियल बिड मांगी<br />
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ह मार्च, २००२ : इंडियन एयर लाइंस ने सीएफएम इंजिन वाले १२२ सीट वाले ए-३१९, १४५ सीट वाले ए-३२०, १७२ सीट वाले ए-३२१. कुल ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने की मंजूरी दी। इनकी आपूर्ति २००२-०३ से २००७-०८ के बीच की जानी थी।<br />
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ह अप्रैल, २००२ : केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय को रिपोर्ट सोंपी गई<br />
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ह अप्रैल, २००३ : पूरे एक साल प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर कोई चर्चा नहीं की गई<br />
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ह अप्रैल, २००३ : १५ अप्रैल २००३ को मंत्रिमंडल की बैठक में इंडियन एयरलाइंस को डिसइन्वेस्टमेंट की सूची से बाहर किया गया<br />
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ह अप्रैल-जून २००३ : पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड की बैठकें हुईं<br />
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ह नवंबर, २००४ : १० नवंबर को पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड ने प्रस्ताव को मंजूरी<br />
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ह दिसंबर, २००४ : ६ दिसंबर को कम बोली दाता से खरीद वार्ता हेतु समिति गठित की गई।<br />
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ह दिसंबर, २००४ : १४ दिसंबर को खरीद वार्ता समिति के मार्गदर्शन हेतु ओवरसाइट कमेटी गठित की गई।<br />
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ह मार्च, २००५ : दिसंबर २००४ से मार्च २००५ के बीच हुई वार्ताओं की रिपोर्ट १२ मार्च को सौंपी गई<br />
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ह अगस्त, २००५ : सीसीईए ने खरीद रिपोर्ट पर विचार हेतु वित्त मंत्री के नेतृत्व में मंत्री समूह की समिति का गठन किया गया<br />
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ह सितंबर, २००५ : मंत्री समूह ने ६ सितंबर को ९,८८८ करोड़ में ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए एयरबस इंडस्ट्रीज और सीएफएम इंटरनेशनल के साथ अंतिम विचार विमर्श किया<br />
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ह सितंबर, २००५ : २९ सितंबर को सरकार ने एयरक्राफ्ट खरीद सौदे की मंजूरी की सूचना इंडियन एयर लाइंस को दी<br />
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ह दिसंबर, २००५ : १६ दिसंबर को एयरबस इंडस्ट्रीज और इंडियन एयर लाइंस के बीच ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर हुए<br />
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ह अक्टूबर, २००६ : पहले ए-३१९ एयरक्राफ्ट की आपूर्ति हुई<br />
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ह अप्रैल, २०१० : पूरे ४३ एयरक्राफ्ट एयर इंडिया को मिल गएUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-80017209852286243362011-03-10T01:15:00.000-08:002011-03-10T01:15:51.837-08:00दिल्ली की राजनीति में बढ़ रहा है महिलाओं का दबदबाकांग्रेस से ज्यादा भाजपा ने दिए महिलाओं को पद <br />
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देशभर में महिला के तौर पर ही नहीं, बल्कि लंबे अरसे बाद कांग्रेस में ही लगातार १२ साल तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड दिल्ली में श्रीमती शीला दीक्षित ने ही तोड़ा है। अभी उनके मुख्यमंत्री पद को कोई चुनौती भी नहीं है। महिलाओं को स्थानीय निकायों में ३३ फीसदी आरक्षण मिलने के बाद उनका दबदबा लगातार बढ़ रहा है। <br />
रासविहारी<br />
दिल्ली की राजनीति में महिलाओं का दबदबा लगातार बढ़ रहा है। चौथी विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या दूसरी और तीसरी विधानसभा के मुकाबले कम हुई पर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित बनी हुई हैं। दस साल बाद महिला मुख्यमंत्री के साथ एक महिला को मंत्री बनाया गया है। भारतीय जनता पार्टी ने तो प्रदेश पदाधिकारियों और कार्यकारिणी में महिलाओं को ३३ फीसदी पद आरक्षित कर दिए हैं।<br />
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दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी में उपाध्यक्ष और महासचिव पद पर एक-एक महिला नेता विराजमान है पर १९ महिलाओं को सचिव बनाया गया है। दिल्ली नगर निगम के पहले चार महत्वपूर्ण पदों महापौर, उपमहापौर, स्थायी समिति अध्यक्ष और नेता निगम सदन पर कोई महिला काबिज नहीं है। १२ वार्ड समितियों में से भी केवल नरेला वार्ड समिति में ही महिला को अध्यक्ष बनाया गया है। निगम की २१ महत्वपूर्ण समितियों में से एक तिहाई पर महिलाएं अध्यक्ष हैं।<br />
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दिल्ली से सात लोकसभा सदस्यों में से केवल एक महिला है। उत्तर पश्चिम दिल्ली से लोकसभा में पहुंची कृष्णा तीरथ केन्द्र सरकार में महिला और बाल कल्याण मंत्रालय संभाल रही हैं। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद के उपाध्यक्ष पद पर पूर्व विधायक ताजदार बाबर को फिर से बिठाया गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय की राजनीति में भी महिलाओं का दबदबा कायम है। चार पदों में से दो उपाध्यक्ष और सचिव पद पर लड़कियों का कब्जा है।<br />
<br />
देशभर में महिला के तौर पर ही नहीं, बल्कि लंबे अरसे बाद कांग्रेस में ही लगातार १२ साल तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड श्रीमती शीला दीक्षित दिल्ली ने ही तोड़ा है। अभी उनके मुख्यमंत्री पद को कोई चुनौती भी नहीं है।<br />
<br />
इस बार विधानसभा में केवल तीन महिलाएं ही पहुंच पाई। पिछली विधानसभा में छह महिलाएं सदस्य थीं। २००८ के विधानसभा चुनाव के बाद श्रीमती किरण वालिया को मंत्री बनाया गया। इससे पहले १९९८ में श्रीमती सुषमा स्वराज मुख्यमंत्री और सुश्री पूर्णिमा सेठी मंत्री थीं। इसके बाद कृष्णा तीरथ भी शीला दीक्षित मंत्रिमंडल में सदस्य रही हैं। वह विधानसभा की पहली महिला अध्यक्ष भी रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आठ और भाजपा ने पांच महिलाओं को उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस की बरखा सिंह दूसरी बार विधानसभा में पहुंची हैं।<br />
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नगर निगम में ९६ महिला सदस्य हैं। महिलाओं को स्थानीय निकायों में ३३ फीसदी आरक्षण मिलने के बाद उनका दबदबा बढ़ रहा है। आरती मेहरा २००७ में पहले महिला कोटे से पहली बार महापौर बनीं और दो साल पद पर रहीं। २७२ सदस्यीय नगर निगम में ९२ सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। नगर निगम चुनाव में ९६ महिलाओं ने बाजी मारी थी। चार महिलाएं सामान्य सीटों से जीतकर निगम में पहुंची हैं। इस समय स्थायी समिति उपाध्यक्ष पर सरिता चौधरी, उद्यान समिति अध्यक्ष पद पर सविता गुप्ता, नियुक्ति समिति अध्यक्ष मीरा अग्रवाल, महिला कल्याण समिति अध्यक्ष विमला चौधरी, आचार संहिता समिति अध्यक्ष सत्या शर्मा हैं। इनके अलावा कई समितियों के उपाध्यक्ष पद महिलाओं के पास हैं। नरेला जोन की अध्यक्ष निशा मान हैं।<br />
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भाजपा ने तो पार्टी संविधान में बदलाव करते हुए एक-तिहाई पदाधिकारियों के पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए हैं। दिल्ली भाजपा में इस समय विशाखा सैलानी, पूनम आजाद, रजनी अब्बी उपाध्यक्ष, कमलजीत सहरावत, सिम्मी जैन, उर्मिला चौधरी, और उर्मिला गंगवाल सचिव हैं। प्रदेश कार्यकारिणी में १९ महिलाओं को शामिल किया गया है। १४ जिला अध्यक्षों में से एक महिला है। केशवपुरम जिला अध्यक्ष पार्षद रेखा गुप्ता को बनाया गया है। दिल्ली की महापौर रहीं आरती मेहरा भाजपा की राष्ट्रीय मंत्री हैं। भाजपा में पहले केवल एक महिला को ही पदाधिकारी बनाने का विधान था।<br />
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आजादी के बाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अब तक बने २१ अध्यक्षों में से पांच महिलाएं रही हैं। यह अलग बात है कि जनसंघ से लेकर अब तक भाजपा में राष्ट्रीय स्तर से लेकर दिल्ली प्रदेश तक किसी महिला को अध्यक्ष नहीं बनाया गया है। प्रदेश कांग्रेस के सात उपाध्यक्षों में से एक महिला है। पूर्व विधायक दर्शना रामकुमार उपाध्यक्ष हैं तो अलका लांबा महासचिव हैं। १३ महासचिवों में वह अकेली महिला हैं। दिल्ली कांग्रेस ने सौ सचिव बनाए हैं। इनमें १९ महिलाएं हैं। ये हैं निशा सैमुअल, रितु सिंह चौहान, सुजाता खंडूजा, एस गीता, रजिया इंशाल्लाह, रीमा कुमार, वंदना सिंह, उर्मिला रानी, परणीता आजाद, राज सचदेवा, रजनी महाजन, रचना सिंघल, मोहिनी जीनवाल, कोमलम नायर, निवेदिता नायर, पुष्पा आनंद, अजहर शगुफ्ता और पम्मी बजाज। ५७ सदस्यीय कार्यकारिणी में ११ महिलाएं हैं।<br />
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दिल्ली की पहली महापौर स्वतंत्रता सेनानी अヒणा आसफ अली बनीं। उन्होंने १९५८ में यह पद संभाला। इससे पहले उन्होंने वर्ष १९४६ में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहकर आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूिमका निभाई। महापौर के तौर पर भी उनकी भूमिका की लोग तारीफ करते हैं। सुभद्रा जोशी, सविता बेन, ताजदार बाबर और शीला दीक्षित भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहीं। कांग्रेस ने श्रीमती दीक्षित की अगुवाई में ही वर्ष १९९८ का विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता। उनका मुकाबला उस समय दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और भाजपा की तेजतर्रार नेता सुषमा स्वराज से हुआ था। भाजपा की आपसी गुटबाजी और प्याज की कीमतों ने १९९८ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी कामयाबी दिलाई। इस कामयाबी के बाद शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। उनकी अगुवाई में दिल्ली में कई बदलाव आए हैं। उनके खाते में कई बड़ी-बड़ी उपलब्धियां भी हैं। राष्ट्रमंडल खेल-२०१० की कामयाबी में श्रीमती दीक्षित और उनकी टीम की मेहनत की लोग प्रशंसा करते हैं। वर्ष २००३ का विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस ने उनकी अगुवाई में लड़ा। इस बार उनका मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना से हुआ। भाजपा इस चुनाव में केवल २० सीटें ही जीत पाई। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दस महिलाओं को मैदान में उतारा। इनमें श्रीमती दीक्षित के अलावा ताजदार बाबर, अंजलि राय, किरण वालिया, मीरा भारद्व चरेखा गुप्ताकिरण वालियादिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराजअलका लांबाकृष्णा तीरथआरती मेहरUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-37059363995821769852011-02-24T20:28:00.000-08:002011-02-24T20:28:41.088-08:00तिवोली गार्डन मामला---राजकुमार चौहान की कुर्सी खतरे मेंरलोकायुक्त ने की मंत्री पद से हटाने की सिफारिश <br />
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शीला सरकार में हैं लोक निर्माण मंत्री <br />
; तत्कालीन वैट कमिश्नर को भी फटकार <br />
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ररासविहारी/अजय पांडेय<br />
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नई दिल्ली। दिल्ली के लोक निर्माण मंत्री राजकुमार चौहान की कुर्सी खतरे में है। भ्रष्टाचार के एक मामले में दिल्ली के लोकायुक्त न्यायमूर्ति मनमोहन सरीन द्वारा उन्हें दोषी करार देते हुए राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल से उन्हें पद से हटाने की सिफारिश किए जाने के बाद मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और कांग्रेस नेतृत्व पर उनके खिलाफ कार्रवाई करने का नैतिक दबाव बढ़ गया है। लोकायुक्त ने गुरुवार को दिए फैसले में मंत्री को हटाने के साथ ही उन पर आपराधिक मामला चलाने की सिफारिश की है और तत्कालीन वैट कमिश्नर जलज श्रीवास्तव को फटकार लगाई है। लोकायुक्त ने अपने फैसले में तिवोली गार्डन रेस्तरां को कर चोरी का दोषी ठहराया है।<br />
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लोकायुक्त की ही विपरीत टिप्पणी के आधार पर कर्नाटक में भाजपा सरकार की अगुवाई कर रहे मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा से इस्तीफे की मांग कर रही कांग्रेस पार्टी के लिए अब अपने मंत्री का बचाव करना मुश्किल माना जा रहा है। यह और बात है कि येदियुरप्पा ने अब तक इस्तीफा नहीं दिया है।<br />
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सड़क से संसद तक भ्रष्टाचार के खिलाफ मचे बवाल के बीच दिल्ली के लोकायुक्त सरीन द्वारा शीला दीक्षित सरकार के इस कद्दावार मंत्री को कसूरवार ठहराए जाने से सरकार में हड़कंप मचा हुआ है। लोकायुक्त की सिफारिश पर कार्रवाई करना सरकार और कांग्रेस पार्टी के लिए कानूनी बाध्यता भले नहीं हो लेकिन नैतिक दबाव से इनकार नहीं किया जा सकता।<br />
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दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने गुरुवार को यह कह कर मामले को टालने की कोशिश की कि अभी उन्हें फैसले की प्रति नहीं मिली है। खुद चौहान ने अपना पुराना बयान दोहराते हुए कहा कि एक जनप्रतिनिधि होने के नाते सिफारिश करना उनका काम है। यह अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे तमाम पहलुओं को ध्यान में रखकर इन सिफारिशों पर कार्रवाई करें।विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित इस पूरे प्रकरण के कानूनी पहलुओं पर अपने खास अधिकारियों से चर्चा कर रही हैं.Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-71343087177120243832011-02-21T02:31:00.000-08:002011-02-21T02:31:26.878-08:00ras ki leela.....रास की लीला: बिना मुखिया चल रही हैं मुसलिम संस्थाएं<a href="http://raskileela.blogspot.com/2011/02/blog-post.html?spref=bl">ras ki leela.....रास की लीला: बिना मुखिया चल रही हैं मुसलिम संस्थाएं</a>: "दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग सात महीने से बिना चैयरमेन रासविहारी नई दिल्ली। दिल्ली में अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलिमों के कल्याण के लिए बनाई ..."Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-27886145755370823782011-02-21T02:27:00.003-08:002011-02-21T02:27:15.673-08:00बिना मुखिया चल रही हैं मुसलिम संस्थाएंदिल्ली अल्पसंख्यक आयोग सात महीने से बिना चैयरमेन<br />
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रासविहारी <br />
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नई दिल्ली। दिल्ली में अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलिमों के कल्याण के लिए बनाई गईं सरकारी संस्थाएं लंबे समय से मुखियाओं का इंतजार कर रही हैं। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग, दिल्ली हज कमेटी और दिल्ली वक्फ बोर्ड में लंबे समय से कोई चैयरमेन नहीं है। चैयरमेन न होने के कारण मुसलिमों को अपनी तमाम शिकायतों पर सुनवाई न होने से परेशानी उठानी प़ड़ रही है। <br />
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अल्पसंख्यक आयोग, हज कमेटी, वक्फ बोर्ड और उर्स कमेटी के लिए दिल्ली सरकार का राजस्व विभाग चैयरमेन और अन्य सदस्यों का मनोनयन करता है। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चैयरमेन और सदस्यों के पद १३ मई २०१० से खाली प़ड़े हैं। पहले इसके अध्यक्ष कमाल फारुखी थे। फारुखी ने मुसलिमों की कई शिकायतों पर कार्रवाई कराई थी। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के कुछ ताकतवर नेताओं की आपसी खींचतान के कारण सरकार चैयरमेन और सदस्यों की नियुक्ति नहीं कर रही है। दिल्ली हज कमेटी में तो तीन साल से कोई अध्यक्ष नहीं है। चैयरमेन अब्दुल समी सलमानी का कार्यकाल २७ दिसंबर २००६ को खत्म हुआ था। तब से हज कमेटी अफसरों के हवाले हैं। सदस्य तो बने पर चैयरमेन को लेकर ल़ड़ाई चलती रही। हज कमेटी में दो विधायक, एक सांसद, एक सरकारी अधिकारी, एक मुसलिम धार्मिक विद्वान और समाजसेवी को सदस्य नियुक्त किया जाता है।<br />
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तीन साल पहले तत्कालीन राजस्व मंत्री राजकुमार चौहान के नजदीकी शकील सैफी को सदस्य बनाकर चैयरमेन बनाने की कोशिश की गई। तब विधायक और हज कमेटी के सदस्य परवेज हाशमी और चौधरी मतीन अहमद के क़ड़े एतराज के कारण उन्हें चैयरमेन नहीं बनाया जा सका। हज कमेटी में चैयरमेन न होने के कारण हज यात्रा पर जाने वाले को परेशानी उठानी प़ड़ती है। बदइंतजामी की शिकायतों पर कोई सुनवाई नहीं हो पाती है। साथ ही हज यात्रियों के चयन में भी हेराफेरी की शिकायतें उठती रहती हैं। <br />
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दिल्ली वक्फ बोर्ड में भी चैयरमेन का पद ३० अक्टूबर २००९ से खाली है। विधायक चौधरी मतीन अहमद का कार्यकाल खत्म होने के बाद चैयरमेन की तलाश जारी है। वक्फ जमीनों को लेकर मुकदमों की पैरवी तक नहीं हो पा रही है। इमामों को समय से तनख्वाह न मिलने की शिकायते आ रही हैं। इसी कारण जंगपुरा में एक मस्जिद पर विवाद के चलते दंगा भ़ड़क गया था। इसी तरह उर्स कमेटी में चौधरी सलाहुद्दीन १२ साल से अध्यक्ष हैं। उन्हें लेकर लोग एतराज उठा रहे हैं।Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-23542085239304522572010-12-09T04:13:00.000-08:002010-12-09T04:13:02.391-08:00भाजपा में बदल रहे हैं समीकरणकल का विरोधी आज खेमे में आया, बड़ों-बड़ों का सिर चकराया<br />
2012 में होने वाले नगर निगम चुनावों पर नज़र नहीं<br />
लड़ाई : कौन बनेगा मुख्यमन्त्री का दावेदार <br />
दिल्ली विधानसभा के चुनाव हैं 2013 में<br />
रासविहारी <br />
नई दिल्ली। दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पाटीo में तेजी से समीकरण बदल रहे हैं। कल के विरोधी आज दोस्त बन गए हैं। कल जो समर्थक थे, आज राजनीतिक फायदे के लिए पाला बदल रहे हैं। बदलते समीकरणों में बुजुर्ग नेताओं को हाशिये पर डाल दिया गया है। ऐसे में प्रदेश पदाधिकारियों से लेकर मण्डल स्तर तक खेमेबाजी जोर पकड़ रही है। <br />
प्रदेश भाजपा में विजेन्द्र गु¹ाा के अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश पदाधिकारी, जिला अध्यक्ष और मोर्चे के अध्यक्ष तथा महामन्त्री की घोषणा के साथ राजनीतिक समीकरण बदलने शुरू हो गए थे। मोर्चे के पदाधिकारियों की घोषणा के बाद इसमें ज्यादा तेजी आई। जिलों के पदाधिकारियों की घोषणा के बाद खेमेबाजी खुलकर होने लगी। यह सब आगामी दिल्ली नगर निगम के चुनाव को लेकर नहीं, बल्कि 2013 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर हो रहा है। राजनीतिक बिसात पर गोटियां 2012 में होने वाले दिल्ली नगर निगम के चुनाव को लेकर नहीं बिछ रही हैं। गोटियां िफट हो रही है, उसके बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर। यानी खेल शुरू हो गया है कि कौन बनेगा मुख्यमन्त्री पद का दावेदार। <br />
दिल्ली भाजपा में नेतृत्व का चेहरा बदला तो राजनीतिक समीकरण भी बदल गए। पुराने खेमेबाजी की जगह नए-नए समीकरण बन रहे हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा राजनीति नई दिल्ली सीट को लेकर हुई। नई दिल्ली से चुनाव लड़ने वाले विजय गोयल ने अब भी भाजपा की अन्दरूनी राजनीति को गरमा रखा है। गांवों में हाउस टैक्स लगाने के सवाल पर पाटीo से अलग होकर उन्होंने लड़ाई लड़ी। गांवों में जाकर मोर्चा खोला। यह लड़ाई भाजपा नेताओं को पच नहीं पा रही है। पूर्व महापौर और अब भाजपा की राष्ट्रीय मन्त्री आरती मेहरा विजय गोयल के साथ हैं। नेता हैरान हैं कि नई दिल्ली लोकसभा सीट से टिकट को लेकर गोयल और आरती में खूब बजी थी। आरती के पलटी मारने से समर्थक नेता हैरान हैं और मायूस भी। प्रदेश भाजपा के महामन्त्री रमेश बिधूड़ी, उपाध्यक्ष सरदार आरपी सिंह और सतीश उपाध्याय भी विजय गोयल के साथ हैं। पिछले दिनों पहलवान सुशील कुमार के सम्मान समारोह में ये नेता भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामन्त्री रामलाल और महामन्त्री जगत प्रकाश नÈा के साथ एक मंच पर थे। इन सब राजनीतिक समीकरणों के बीच कभी विजय गोयल के नजदीकी रहे विजेन्द्र गु¹ाा की आज सबसे ज्यादा दूरी उनसे ही बनी है। <br />
पश्चिम दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में भी हालात बदल रहे हैं। लोकसभा चुनाव लड़े जगदीश मुखी और प्रदेश महामन्त्री प्रवेश वर्मा की लड़ाई तो पुरानी है। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा से मुखी की बनी दूरी आज भी बरकरार है। अब यह हुआ है कि मल्होत्रा के कुछ नजदीकी नेता मुखी के साथ राजनीतिक गोटियां बिछा रहे हैं। जिला अध्यक्ष राजीव बब्बर अब मुखी के साथ हो गए हैं। इस क्षेत्र में यह लड़ाई और तेज होने वाली है। <br />
पूर्वी दिल्ली लोकसभा इलाके में भी हालात बदल गए हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन के विरोधी कुलजीत चहल प्रदेश टीम में शामिल होने में सफल रहे। अध्यक्ष पद से हटने के बाद इलाके में डॉ. हर्षवर्धन का राजनीतिक असर कम होता जा रहा है। वैसे भी उनका जनाधार तो कभी रहा नहीं। उनके दूसरे विरोधी कामयाब हो रहे हैं। उत्तर पूर्वी लोकसभा क्षेत्र में पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष आलोक कुमार और विधायक नरेश गौड़ में जमकर लड़ाई जारी है। जिलों के नेताओं की विधायकों और पार्षदों से नहीं बन रही है। पार्षदों की अन्दरूनी खींचतान जमकर चल रही है। <br />
दक्षिण दिल्ली लोकसभा क्षेत्र में प्रदेश महामन्त्री रमेश बिधूड़ी और प्रदेश उपाध्यक्ष पवन शर्मा के समर्थकों के बीच घमासान मचा हुआ है। इस इलाके में रमेश बिधूड़ी ने पूरे समीकरण बदल दिए हैं। जिलों और मण्डलों पर उनके समर्थक काबिज हैं। प्रदेश में जरूर पवन शर्मा अपनी पसन्द के नेता को पदाधिकारी बनाने में सफल रहे थे। चान्दनी चौक लोकसभा क्षेत्र में राजनीतिक समीरकरण बदले हैं। उत्तर पि´ाम दिल्ली लोकसभा सीट पर भाजपा के तीन विधायक हैं पर वहां भी अन्दरूनी घमासान मचा है। विधायक कुलवन्त राणा और मनोज शौकीन विजय गोयल के साथ बताए जा रहे हैं। हाल ही में उन्होंने गांवों में हाउस टैक्स के विरोध में एक रैली का आयोजन कराया था। <br />
नईदुनिया ८ दिसंबर २०१०Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-39888735932050182532010-12-09T04:10:00.001-08:002010-12-09T04:10:37.470-08:00कांग्रेस के आलीशान महाधिवेशन पर खर्च होंगे 20 करोड़भोजन की कमान मंगत को, टेंट लगवा रहे हैं चौहान, ट्रांसपोर्ट सम्भालेंगे लवली <br />
रासविहारी/ अजय पाण्डेय <br />
नई दिल्ली। दिल्ली में कांग्रेस के आलीशान महाधिवेशन में 20 हजार से ज्यादा नेता-कार्यकर्ता जुटेगें। 18 से 20 दिसम्बर को बुराड़ी के 70 एकड़ से बड़े मैदान में आयोजित आलीशान महाधिवेशन पर 20 करोड़ से ज्यादा खर्च होंगे। दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल, मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित, अन्य मन्त्री और पाटीo के आला नेताओं को महाधिवेशन की तैयारियों की जिम्मेदारी सौंपी गई। <br />
बुराड़ी सन्त निरकारी समागम स्थल पर टैंट गाड़ने का काम बड़े जोरों पर चल रहा है। आयोजन की तैयारियों के बारे में कोई नेता कुछ बोलने को तैयार नहीं है। खासतौर पर खर्चें के सवाल पर सब चुप्पी मार जाते हैं। िफलहाल प्रदेश अध्यक्ष अग्रवाल में दिल्ली के तमाम नेता तैयारियों में लगे हैं। मुख्यमन्त्री के साथ सभी मन्त्री भी पूरी भागदौड़ कर रहे हैं। आलम यह है कि मन्त्री सचिवालय में कम और बुराड़ी में ज्यादा नज़र आ रहे हैं। लोक निर्माण विभाग के मन्त्री राजकुमार चौहान को टेंट लगवाने और साज-सजावट का काम सौंपा गया है। समय-समय पर भोजन की व्यवस्था कराने वाले समाज कल्याण मन्त्री मंगतराम सिंघल इस बार खाना तैयार कराने की जिम्मेदारी दी गई है। सिंघल को कांग्रेसियों लजीज भोजन परोसने के लिए तरह-तरह व्यंजन बनाने की सूची बना रहे हैं। परिवहन मन्त्री अरविन्दर सिंह महाधिवेशन में हिस्सा लेने वालों के लिए बसों और अन्य वाहनों का का इन्तजाम कराने में लगे हैं। वित्त मन्त्री डा. अशोक कुमार वालिया को भी खास जिम्मेदारी सौंपी गई है। स्वास्थ्य मन्त्री प्रो. किरण वालिया चिकित्सा इन्तजाम देखेंगी।<br />
श्री अग्रवाल ने संगठन के अलग-अलग लोगों को अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं। शहर के नई दिल्ली, दिल्ली, हजरत निजामुद्दीन, सराय रोहिल्ला और आनन्द विहार रेलवे स्टेशनों पर कांग्रेसी कार्यकर्ता मेहमानों के स्वागत में तैयार रहेंगे। एयरपोर्ट पर भी अतिथियों की अगुवानी के लिए दिल्ली के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को मौजूद रहने को कहा गया है।<br />
सर्दी के मौसम में हो रहे इस महाधिवेशन के मद्देनज़र बुराड़ी में लगाए जा रहे टेंट में करीब दस हजार नेताओं के ठहरने के गरमागरम इन्तजाम किए जा रहे हैं। पाटीo सूत्रों का कहना है कि देश भर से जुट रहे नेताओं में बहुत सारे लोग तो यहां सांसदों के आवासों में भी ठहर जाएंगे, कुछ लोगों के अपने इन्तजाम भी हैं। जो लोग बुराड़ी में ठहरना चाहेंगे, उनके लिए वहां भी बेहतरीन व्यवस्था की जाएगी।<br />
पाटीo सूत्रों के अनुसार टेंट लगाने पर पांच करोड़ से ज्यादा खर्च होंगे। चाय, नाश्ता और भोजन पर लगभग आठ करोड़ का खर्चा होगा। इससे पहले दिल्ली कांग्रेस ने 2 नवंबर को तालकटोरा स्टेडियम में एआईआईसी सदस्यों का सम्मलेन की मेजबानी सम्भाली थी। शानदार मेजबानी के लिए श्री अग्रवाल की जमकर तारीफ की गई थी। <br />
नईदुनिया ९ दिसंबर २०१०Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-27385339307473230642010-12-09T01:46:00.001-08:002010-12-09T01:47:24.761-08:00बदलते दौर में पत्रकार संगठनों की भूमिकारासविहारी<br />
बदलते दौर की बदलती मीडिया में पत्रकार संगठनों की भूमिका को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि पत्रकार संगठनों की प्रासंगिकता कम होती जा रही है। बड़ी संख्या पत्रकार भी सवाल उठाते हैं कि पत्रकार संगठन में शामिल होकर क्या फायदा होगा। इसके पीछे उनके तर्क भी होते हैं। तर्क भी कमजोर नहीं दमदार होते हैं। खासतौर पर पिछले एक दशक से जिस तरह से मीडिया संस्थानों में उठापटक चल रही है, उससे कर्मचारियों में भय का वातावरण बन रहा है। तीन साल पहले आर्थिक मंदी के बहाने बड़े-बड़े मीडिया घरानों से जिस तरह से पुराने कर्मचारियों को निकाला और नए रखे गए, उससे भी लगातार भय बढ़ा। वैसे पत्रकारों के संगठन अन्य मजदूर संगठनों की तरह नहीं बनाए गए। इसकी एक वजह राजनीतिक विचारधारा के आधार पर बने मजदूर संगठनों से अलग रहकर अपनी लड़ाई लड़ना था। मीडिया की ज्यादातर लड़ाई बाहरी ताकतों से रही। आपातकाल से लेकर मीडिया जगत लगातार दबाव झेलता रहा है और उसका मुकाबला भी किया है। प्रिंट मीडिया को लेकर पहले भी सवाल खड़े होते रहे हैं। पत्रकारिया की विश्वनीयता को लेकर लंबे अरसे बहस छिड़ी हुई थी। अब राडिया टेप मामले से बड़े-बड़े पत्रकार कटघरे में खड़े हुए हैं। एनयूजे ने इस मसले पर प्रेस कांसिल से जांच कराने की मांग है। <br />
सवाल यह है कि मीडिया के बदलते दौर में हम संगठन को किस तरह चलाएं। हमारी समस्याएं भी समय के साथ बदल रही है। कुछ ऐसी समस्याएं जो पहले थी, वे आज भी हमारे सामने हैं। एनयूजे और उससे जुड़े राज्य संगठन समस्याओं को सुलझाने की समय-समय पर कोशिश करते रहे हैं। एनयूजे की पहचान दूसरे पत्रकार संगठनों से अलग है। हमारे संगठन की खुछ विशेषताएं हैं। इसी कारण हमारा संगठन अन्य संगठनों के मुकाबले ज्यादा जीवंत है। इसकी एक बड़ी वजह हमारा लोकतांत्रिक ढांचा। एनयूजे में हर दो साल बाद पदाधिकारियों का चुनाव होता है। अध्यक्ष और महासचिव हर बार बदले जाते हैं। बाकी पदाधिकारी भी समय-समय पर बदलते रहते हैं। एनयूजे का नेतृत्व सामूहिक है। हम सब मिलजुल फैसले करते हैं। राज्यों के संगठन भी इसी तर्ज पर अपना काम कर रहे हैं। <br />
बदलते समय के साथ हमें भी बदलने की जरूरत है। अब चुनौतियां पहले से ज्यादा हैं और नए रूप में हैं। पत्रकारों पर पहले भी आरोप लगते रहे हैं। कई बार तो हम एक-दूसरे पर भी आरोप लगाते हैं। दरअसल पत्रकारिता का काम व्यकि्तगत प्रदर्शन का भी है। इस कारण पत्रकारिता में अन्य व्यवसाय के मुकाबले ज्यादा प्रतिस्पर्धा है। हर कोई अपने को दूसरे से बेहतर साबित करना चाहता है। मीडिया प्रतिष्ठानों की आपसी होड़ के साथ व्यक्तिगत होड़ भी है। व्यक्तिगत होड़ मीडिया प्रतिष्ठानों के भीतर भी है और बाहर भी। टीवी चैनल में टीआरपी के लिए होड़ है तो अखबारों में प्रसार संख्या को लेकर है। आज के दौर में यह लड़ाई ज्यादा तेज हुई है। इस लड़ाई को जीतने के लिए मैनेजमेंट में फेरबदल होता है तो संपादकीय विभाग में बदलाव होने लगता है। इसके चलते पत्रकारों के सामने चुनौतियां बढ़ रही हैं। मीडिया के विस्तार के साथ ही अवसर बढ़े हैं। बड़ी संख्या में नए-नए लोग मीडिया में आ रहे हैं। नए पत्रकार बनाने के लिए बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों में संस्थान खुल रहे हैं। बीस साल पहले पत्रकारिता को कोई कैरियर नहीं मानता था, पर अब पत्रकारिता अन्य व्यवसाय की तरह एक कैरियर बनाने का माध्यम है। मीडिया जगत के विस्तार के साथ ही समस्याएं बढ़ रही हैं। उनका समाधान न होने के कारण बैचेनी बढ़ रही है। विस्तार के साथ ही एकजुटता कम होती है।<br />
ऐसे में एनयूजे की भूमिका बढ़ रही है। हमें इसके लिए व्यवहारिक तरीके से सोचना होगा। किस तरह से हम संगठन की गतिविधियां बढ़ाएं। यह मेरी व्यकि्तगत सोच हो सकती है कि हर मुद्दे पर आकर लड़ाई सड़क पर नहीं लड़ी जा सकती है। हालांकि एनयूजे का इतिहास हमेशा पत्रकारिता की साख को बरकरार रखने की लड़ाई रहा है। आपातकाल के दौर में एनयूजे के सदस्य जेल में रहे। कुछ सदस्यों की नौकरी भी गई। आपातकाल का दौर वैसे भी पत्रकारों और पत्रकारिता पर हमले का बड़ा उदाहरण है। ऐसे कई उदाहरण हैं जब एनयूजे ने पत्रकारिता और पत्रकारों पर हमले के खिलाफ लड़ाई लड़ी। हमें अपनी इस साख को बरकरार रखना है पर कैसे? जब जरूरत पड़ेगी तो हम सड़क पर भी लड़ाई लड़ेंगे। मेरा मानना है कि पत्रकारिता पर संकट को लेकर हम समय-समय पर अलग-अलग विषयों पर छोटी-छोटी गोषि्ठयों में विचार विमर्श करें। इस तरह की एक संगोष्ठी का आयोजन दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ने अयोध्या विवाद को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के आने वाले फैसले को लेकर किया था। इससे अयोध्या विवाद पर आने वाले फैसले की कवरेज करने को लेकर एक राय बनी। मीडिया में डीजेए की पहल को लेकर तारीफ भी हुई। इस तरह की गोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकारों को बुलाकर उनके विचार सुने जाएं। गोष्ठी में शामिल होने वाले पत्रकार भी अपने विचार रखें। इससे सभी का राय सामने आएगी। नए पत्रकारों के साथ ही वरिष्ठ पत्रकारों की राय सामने आने से विषयों पर सि्थति साफ होगी। खासतौर पर मीडिया पर लगने वाले आरोपों को लेकर हम विचार विर्मश करें। कई बार पत्रकारों पर जानबूझकर भी आरोप लगाए जाते हैं। <br />
हमारी शुरू से ही कोशिश रही है कि पत्रकारों के कल्याण लिए विभिन्न योजनाएं चलाई जाएं। खासतौर पर पत्रकारों के लिए स्वास्थ्य योजना शुरू की जाए। कुछ राज्यों में पत्रकारों के लिए बीमा योजना शुरु की गई है। दिल्ली में पत्रकारों के लिए दिल्ली सरकार से स्वास्थ्य योजना शुरु कराई गई थी। हम चाहते हैं कि दिल्ली के हर पत्रकार को इलाज कराने की सुविधा मिले। इसके लिए दिल्ली सरकार से मिलकर बात करेंगे और एक पूरी योजना सौंपेंगे। कम से कम ऐसी सुविधा कम वेतन वाले पत्रकारों को जरूर मिले। केन्द्र सरकार से भी इस मसले पर मांग की जाएगी। केन्द्र सरकार के अस्पतालों में पत्रकारों के लिए अलग कुछ व्यवस्था करने पर मांग की जाएगी। हर राज्य में इस तरह की सुविधा पत्रकारों को मिले तो अच्छा रहेगा। हमने पहले भी सुझाव दिया था कि पत्रकारों के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर स्वास्थ्य बीमा योजना शुरू की जाए। राज्यों में मान्यता प्राप्त पत्रकारों को तो स्वास्थय सुविधाओं का लाभ मिलता है पर बाकी पत्रकारों को यह सुविधाएं नहीं मिलती है। मीडिया के बढ़ते दायरे के साथ ही दिल्ली, राज्यों की राजधानी, प्रमुख शहरों, मंडलों, जिलों से लेकर तहसील स्तर ऐसी सुविधाएं दिलाने के लिए एनयूजे मांग उठाएगी। स्वास्थ्य बीमा योजना में कुछ हिस्सा सरकार तो बाकी पत्रकार सदस्य देंगे तो, योजना सफल हो सकती है। इससे पत्रकार भी जुडेंगे। पत्रकारों के लिए दुर्घटना बीमा योजना भी चलाने की जरूरत है। दुर्घटना में किसी पत्रकार की मौत के बाद उनके परिवारीजनों के सामने भयानक संकट पैदा हो जाता है। कम से कम दुर्घटना बीमा योजना से मिलने वाली राशि से संकटग्रस्त परिवार को कुछ तो राहत मिलेगी। एनयूजे के जर्नलिस्ट्स वेलफेयर फाउंडेशन के जरिए इस तरह की योजना शुरु की गई है। इसका विस्तार करने की जरूरत है। फाउंडेशन की तरफ से कुछ पत्रकारों को आर्थिक सहायता भी दी गई है। इस तरह की योजनाओं के जरिए पत्रकार भी हमारे संगठन जुड़ेंगे। पत्रकारों के लिए सुविधाएं दिलाने के लिए हम पहले से केन्द्र और राज्य सरकारों से बात करते रहें। कई बातचीत के दौरान पता चलता है कि कुछ पत्रकार ही ऐसी योजनाओं को पलीता लगवाते रहे हैं। दिल्ली में योजनाओं को कुछ पत्रकारों ने अपने स्वार्थ के लिए पलीता लगवाया। इसके बावजूद दिल्ली सरकार नई योजना पत्रकारों के लिए बना रही है। संगठन में सबसे ज्यादा जरूरत नए पत्रकारों को जोड़ने की है। एनयूजे, एनयूजे स्कूल मॉस कम्युनिकेशन और संबद्ध संगठन पत्रकारों को विभिन्न मुद्दो पर पूरी जानकारी देने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करते रहे हैं। हर विषय पर कार्यशालाओं का आयोजन किया गया है। एनयूजे की योजना है कि संसद और विधानसभा की कार्यवाही पर जल्दी ही पत्रकारों के लिए कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा। मौजूदा दौर में नए-नए मुद्दे उठ रहे हैं। कई ऐसे कठिन विषय होते हैं, जिनकी जानकारी आम पत्रकारों को नहीं होती है। हाल ही में विकीलीक्स के खुलासे के बाद आम पत्रकारों में जिज्ञासा जगी है कि यह सब क्या है। कई नए शब्द सामने आए हैं। ऐसे में जानकार पत्रकारों के जरिए हम नए विषय पर जानकारी दे सकते हैं। इससे पत्रकारों की जानकारी बढ़ेगी। पत्रकारों का झुकाव भी एनयूजे की तरफ होगा। इसके लिए जरूरी नहीं है कि बड़ी संगोषि्ठयों का आयोजन किया जाए। हम छोटे-छोटे समूहों में इस तरह की कार्यशालाओं का आयोजन कर सकते हैं। यह भी जरूरी नहीं है कि कार्यशालाओं के आयोजन के लिए पूरे तामझाम जुटाए जाएं। मीडिया स्कूलों के साथ भी इस तरह की कार्यशालाओं का आयोजन करने की हम योजना बना रहे हैं। <br />
आप यह तो देख रहे हैं कि मीडिया के बढ़ते दायरे के साथ मीडिया की भूमिका पर लगातार सवाल उठाए जा रहे हैं। इसके साथ ही घटनाओं की कवरेज समय मीडियाकर्मियों के साथ मारपीट और झड़प की घटनाएं बढ़ रही है। कई बार पत्रकारों के साथ मारपीट की घटनाओं का सही तरीके से विरोध भी नहीं हो पाता है। कई बार तो मारपीट की घटनाओं की निंदा भी नहीं करते हैं। ऐसी घटनाओं को टीवीचैनल और अखबार जिक्र भी नहीं करते हैं। एनयूजे और राज्य संगठन इस बारे में विचार करके रणनीति तैयार करेंगे।Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-8110478163806151912010-11-24T09:24:00.000-08:002010-11-24T09:24:20.299-08:00कौन जीतेगा, यह बताने में कौन खरा उतरेगाकौन जीतेगा, यह बताने में कौन खरा उतरेगा<br />
टीवी चैनल के सर्वे में जदयू-भाजपा को बहुमत<br />
ज्योतिषियों ने की नीतीश के मुख्यमन्त्री बनने की भविष्यवाणी <br />
रासविहारी <br />
नई दिल्ली। बिहार में सरकार किसकी बनेगी? नीतीश कुमार की या लालू प्रसाद की? बुधवार को चुनाव नतीजों से पहले मीडिया और ज्योतिषियों ने नीतीश कुमार की सरकार िफर से बनने का ऐलान किया है। मीडिया और ज्योतिषी किस को कितनी सीटें दे रहे हैं, आइए जानते हैं। जानी-मानी हस्तियों के बारे में भविष्यवाणी करने वाले समीर उपाध्याय का कहना है कि सितारे नीतीश कुमार के साथ हैं। लालू प्रसाद के सितारे िफलहाल गिर्दश में हैं। <br />
उनका मानना है कि मिथुन लग्न में जन्मे नीतीश को मंगल-शुक्र के कारण िफर से मुख्यमन्त्री बनना तय है। जदयू-भाजपा गठबंधन को पिछले चुनाव में मिली सीटे मिलने की उम्मीद है। लालू प्रसाद को भी फायदा नहीं होगा। आचार्य अरविन्द की भविष्यवाणी के अनुसार नीतीश-भाजपा को 243 में से 198 सीटें मिलेंगी। उनके अनुसार लालू-रामबिलास पासवान के 20, कांग्रेस के 17 और अन्य आठ उम्मीदवार चुनाव जीतेंगे। आचार्य ब्रजमोहन की भविष्यवाणी है कि नीतीश-भाजपा को 188 सीटें मिलेंगी। आचार्य राममिलन शुक्ला ने भाजपा-नीतीश को 170 सीटें मिलने की भविष्यवाणी की है। पण्डित जर्नादन गौड़ ने नीतीश कुमार और भाजपा को इस चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें मिलने की भविष्यवाणी की है। उनके अनुसार नीतीश-भाजपा को 208 सीटें मिल रही हैं। <br />
महिला ज्योतिषी अनु डण्डरियाल की भविष्यवाणी है कि नीतीश की पाटीo जदयू को 137 और भाजपा को 32 सीटें मिलेंगी। उनके अनुसार नीतीश-भाजपा कुल मिलाकर 169 सीटें जीतेंगे। उनका कहना है कि कांग्रेस निर्दलियों की कुल संख्या से भी पीछे रहेंगे। <br />
टीवी चैनल भी एक्जिट पोल के जरिए नीतीश कुमार की सरकार बनने की घोषणा कर रहे हैं। आईबीएन 7-सीएसडीएस के चुनाव बाद कराए गए सर्वे में जदयू-भाजपा को 185 से 201 सीट मिलने की बात कही गई है। सर्वे में लालू-पासवान को 22-32 सीटे मिलेंगी और कांग्रेस 6-12 के बीच रहेगी। आजाद उम्मीदवार 9 से 19 स्थानों पर बाजी मार सकते हैं। स्टार-न्यूज नीलसन के सर्वे में जदयू-भाजपा के 150, लालू-पासवान के 57, कांग्रेस के 15 और 21 आजाद उम्मीदवार को विजयश्री मिलने के आसार हैं। मीडिया और ज्योतिषियों के बीच सभी दलों के अपने-अपने दावें पहले से मतदाताओं के बीच हैं। <br />
चार्ट<br />
ज्योतिषी जदयू-भाजपा की सीट <br />
आचार्य अरविन्द 198<br />
आचार्य ब्रजमोहन 188<br />
प´डित जर्नादन 208<br />
आचार्य राममिलन शुक्ल 170<br />
अनु डण्डरियाल 169<br />
समीर उपाध्याय 140 से 150 <br />
<br />
टीवी चैनल<br />
आईबीएन 7 185-201<br />
स्टार न्यूज 150 <br />
नईदुनिया २४ नवंबर <br />
भविष्यवाणी-सर्वे का खेल, कोई पास-कोई फेल<br />
रासविहारी <br />
नई दिल्ली। बिहार में सरकार तो नीतीश कुमार की बनेगी। यह भविष्यवाणी तो ज्यादातर भाग्य बांचने वालों की सही निकली है। टीवी चैनल के एक्जिट पोल भी सरकार बना रहे थे, पर ऐसी बंपर जीत की भविष्यवाणी करने में ज्यादातर चूक गए। एक्जिट पोल को नीतीश कुमार का खेल बताने वाले लालू प्रसाद, रामबिलास पासवान और कांग्रेसी नेताओं के तमाम दावे भी धरे रह गए। भाजपा की सीटें कम होने की भविष्यवाणी करने वाले भी अब सन्न हैं। <br />
आईबीएन 7-सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे सही निकला। इस सर्वे में जदयू-भाजपा को 185 से 201 सीट, राजद-लोजपा को 22 से 32, और कांग्रेस को 6-12 सीट मिलने की संभावना जताई थी। सर्वे में 9-19 अन्य उम्मीदवारों के जीतने के संकेत दिए गए थे। स्टार न्यूज-एसी नीलसन के सर्वे में सरकार तो नीतीश कुमार की बनाई गई थी पर सीटों के मामले में सर्वे खरा नहीं उतरा। सर्वे में जदयू-भाजपा को 148, राजद-लोजपा को 68, कांग्रेस को 14 और अन्य 13 उम्मीदवारों के जीतने की भविष्यवाणी की गई थी। सी वोटर के सर्वे में 142 से 154 सीटें एनडीए को मिलने की संभावना जताई गई थी। <br />
नईदुनिया ने बिहार विधानसभा चुनाव में वोटों की गिनती से कुछ समय पहले ही कुछ ज्योतिषियों से बात कर उनकी की भविष्यवाणी छापी थीं। एक को छोड़कर छह ज्योतिषियों ने नीतीश कुमार की सरकार बनने की भविष्यवाणी की थी। इस बात पर तो ज्योतिषी खरे उतरे, पर सीटों की भविष्यवाणी करने में ज्यादातर चूक गए। आचार्य अरविन्द ने 198 और पण्डित जनार्दन ने 208 सीट एनडीए मिलने की भविष्यवाणी की थी। राजनेताओं का भाग्य बांचने वाले समीर उपाध्याय की लालू प्रसाद के सितारे गिर्दश में रहने की भविष्यवाणी तो सही निकली पर सीटों के मामले में उनका हिसाब गलत साबित हुआ। आचार्य ब्रजमोहन ने 188, आचार्य राममिलन शुक्ल ने 170 और अनु डण्डरियाल ने 169 सीटें एनडीए को मिलने की भविष्यवाणी की थी। वैसे कुछ ज्योतिषी तो बिहार में किसकी होगी जीत-किसकी होगी हार बताने में भी कतरा गए थे। <br />
इनका सही रहा आकलन<br />
ज्योतिषी एनडीए को मिली सीट<br />
आचार्य अरविन्द 198<br />
पण्डित जनार्दन 208 <br />
चैनल <br />
आईबीएन 7 185 से 201<br />
नईदुनिया २५ नवंबरUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-40668388466582795652010-11-24T09:23:00.000-08:002010-11-24T09:23:17.991-08:00भविष्यवाणी-सर्वे का खेल, कोई पास-कोई फेलरासविहारी <br />
नई दिल्ली। बिहार में सरकार तो नीतीश कुमार की बनेगी। यह भविष्यवाणी तो ज्यादातर भाग्य बांचने वालों की सही निकली है। टीवी चैनल के एक्जिट पोल भी सरकार बना रहे थे, पर ऐसी बंपर जीत की भविष्यवाणी करने में ज्यादातर चूक गए। एक्जिट पोल को नीतीश कुमार का खेल बताने वाले लालू प्रसाद, रामबिलास पासवान और कांग्रेसी नेताओं के तमाम दावे भी धरे रह गए। भाजपा की सीटें कम होने की भविष्यवाणी करने वाले भी अब सन्न हैं। <br />
आईबीएन 7-सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे सही निकला। इस सर्वे में जदयू-भाजपा को 185 से 201 सीट, राजद-लोजपा को 22 से 32, और कांग्रेस को 6-12 सीट मिलने की संभावना जताई थी। सर्वे में 9-19 अन्य उम्मीदवारों के जीतने के संकेत दिए गए थे। स्टार न्यूज-एसी नीलसन के सर्वे में सरकार तो नीतीश कुमार की बनाई गई थी पर सीटों के मामले में सर्वे खरा नहीं उतरा। सर्वे में जदयू-भाजपा को 148, राजद-लोजपा को 68, कांग्रेस को 14 और अन्य 13 उम्मीदवारों के जीतने की भविष्यवाणी की गई थी। सी वोटर के सर्वे में 142 से 154 सीटें एनडीए को मिलने की संभावना जताई गई थी। <br />
नईदुनिया ने बिहार विधानसभा चुनाव में वोटों की गिनती से कुछ समय पहले ही कुछ ज्योतिषियों से बात कर उनकी की भविष्यवाणी छापी थीं। एक को छोड़कर छह ज्योतिषियों ने नीतीश कुमार की सरकार बनने की भविष्यवाणी की थी। इस बात पर तो ज्योतिषी खरे उतरे, पर सीटों की भविष्यवाणी करने में ज्यादातर चूक गए। आचार्य अरविन्द ने 198 और पण्डित जनार्दन ने 208 सीट एनडीए मिलने की भविष्यवाणी की थी। राजनेताओं का भाग्य बांचने वाले समीर उपाध्याय की लालू प्रसाद के सितारे गिर्दश में रहने की भविष्यवाणी तो सही निकली पर सीटों के मामले में उनका हिसाब गलत साबित हुआ। आचार्य ब्रजमोहन ने 188, आचार्य राममिलन शुक्ल ने 170 और अनु डण्डरियाल ने 169 सीटें एनडीए को मिलने की भविष्यवाणी की थी। वैसे कुछ ज्योतिषी तो बिहार में किसकी होगी जीत-किसकी होगी हार बताने में भी कतरा गए थे। <br />
इनका सही रहा आकलन<br />
ज्योतिषी एनडीए को मिली सीट<br />
आचार्य अरविन्द 198<br />
पण्डित जनार्दन 208 <br />
चैनल <br />
आईबीएन 7 185 से 201<br />
नईदुनिया से साभारUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-32681641902580748182010-11-12T06:58:00.000-08:002010-11-12T07:13:42.092-08:00पत्रकार चलाएं प्रेस क्लब, वरिष्ठ पत्रकारों की रायप्रेस क्लब चुनाव<br />
पत्रकार चलाएं प्रेस क्लब<br />
वरिष्ठ पत्रकारों की राय<br />
प्रमुख संवाददाता<br />
नई दिल्ली। प्रेस क्लब ऑफ इण्डिया के चुनाव में इस बार आमने-सामने की टक्कर है। वर्तमान अध्यक्ष परवेज अहमद और महासचिव पुष्पेन्द्र कुलश्रेष्ठ के पैनल के मुकाबले टी आर रामचन्द्रन-सन्दीप दीक्षित का पैनल है। चुनावी लड़ाई में हर तरह के मुद्दे हैं। भाषा, जाति से लेकर एक-दूसरे पर तमाम आरोप मढ़े जा रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि चुनाव प्रेस क्लब में नहीं बल्कि किसी पंचायत के हो रहे हैं। चुनाव के लिए मतदान को 13 नवबंर को होगा। <br />
बदलाव की बयार में वरिष्ठ पत्रकारों का मानना है कि प्रेस क्लब की कमान पत्रकारों के हाथ में होनी चाहिए। ज्यादातर पत्रकारों का मानना है कि प्रेस क्लब के प्रबंधन में बदलाव जरूरी है। उनकी राय में चुनाव के दौरान उठाए जा रहे हिन्दी बनाम अंग्रेजी और कायस्थ बनाम ब्राह्मण जैसे मुद्दे उछालना बेकार की बात है। मीडिया जगत में ऐसे मुद्दे कोई मायने नहीं रखते हैं। <br />
चुनाव की शुरुआत में परवेज-पुष्पेन्द्र पैनल के मुकाबले रामचन्द्रन-सदीप पैनल के उतरने के बाद कुछ लोगों ने यह मुद्दा उठाया था कि फुलटाइम पत्रकार प्रेस क्लब नहीं चला सकते हैं। यह मुद्दा उछलते ही फुस्स हो गया। बाद में कायस्थ बनाम ब्राह्मण की लड़ाई को भुनाने की कोशिश हो रही है। <br />
परवेज-पुष्पेन्द्र लगातार चार बार प्रेस क्लब के लिए चुने गए हैं। पिछले चुनावों में उनके मुकाबले दो-तीन पैनल उतरने के कारण उन्हें फायदा होता रहा है। इस बार सीधी टक्कर में बदलाव का नारा उनके सामने है। उनके पैनल की तरफ से मुकाबले में उतरे पत्रकारों को मौसमी परिन्दा करार दिया गया है। <br />
कुछ पत्रकार छठ पूजा पर ही हर बार चुनाव कराने को मुद्दा बना रहे हैं। बिहार से जुड़े पत्रकारों का कहना कि हर बार छठ पूजा पर ही चुनाव क्यों कराए जाते हैं। छठ पूजा पर बड़ी संख्या में सदस्य दिल्ली से बाहर चले जाते हैं। शायद यह एक तरह से बिहार के पत्रकारों को चुनाव से दूर करने की साजिश है।Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-1005251142349471912010-11-06T04:35:00.001-07:002010-11-06T04:35:53.123-07:00दिवाली पर हर कोई खरीदारी में मस्तरासविहारी <br />
नई दिल्ली। इस बार दिवाली की खरीदारी में हर कोई मस्त है। दुकानें माल से तो माकेoट खरीदारों से फुल हैं। जेब में पैसा नहीं है तो किश्त पर खरीद रहे हैं। मकान हो या वाहन या िफर घर सजाने का सामान। सबकी बिक्री जोरों पर हैं। धनतेरस पर सोने-चान्दी के सामान की बिक्री का जो रिकार्ड टूटा वह जारी है। आतिशबाजी के धुआंभरे शोरशराबे में तमाम बन्दिशें भी उड़ जाएंगी। लोग धूमधड़ाका करने के लिए बम-पटाखे खरीद रहे हैं। पिछली बार दुकानों में रह गया माल इस बार मुनाफा दे रहा है। <br />
इस बार दिवाली पर ऑनलाइन शॉपिंग खूब हो रही है। करीब 280 फीसदी की बढ़त आंकी जा रही है। एक करोड़ लोगों द्वारा इंटरनेट पर 2200 करोड़ रुपए का ऑर्डर देने की उम्मीद है। वाणिज्य एवं उद्योग चैंबर एसोचैम की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है।<br />
दिल्ली, गुड़गांव, फरीदाबाद, गाजियाबाद, नोएडा सहित तमाम शहरों में सोने-चान्दी के जेवर, इलेक्ट्रानिक सामान, मोबाइल फोन, इलेक्टि[कल्स सामान, रेडीमेड कपड़े, सूखे मेवे, मिठाई, बर्तन, क्रॉकरी और घर सजाने के सामान की मांग बढ़ी है। चान्दी के सिक्कों की बिक्री में जमकर उछाल आया है। लोग एक घर हो अपना का सपना पूरा करने के लिए जोर लगा रहे हैं। कार और दोपहिया वाहनों के शोरूम में ग्राहकों की भीड़ है और कंपनियां मस्त हैं। बाजार की भीड़ महंगाई डायन पर भी भारी पड़ती नज़र आ रही है। <br />
घरों को सजाने के साथ ही महिलाओं का जोर किचन को आधुनिक बनाने का है। मोड्युलर किचन बन पाए या नहीं पर कुछ नया सामान तो खरीदना ही है। माइक्रोवेव ओवन भी महिलाओं को भा रहे हैं। <br />
धनतेरस पर बर्तनों के साथ क्राकरी की बिक्री हुई है। माकेoट में उपहारों की बिक्री आखिर तक रहने की उम्मीद है। ब्राण्डेड रेडीमेड कपड़ों के साथ गैर ब्राण्डेड माल भी खूब बिक रहा है। खासतौर पर गर्म कपड़ों का बाजार ज्यादा गर्म है। <br />
चान्दी के सिक्कों के अलावा लोगों को ब्राण्डेड कंबल और बेड शीट देने का चलन भी इन दिनों चल रहा है। इस बार दिवाली पर रंग-रोगन के कारोबार में सौ फीसदी इजाफा हुआ है। हालत यह है कि घर की रंगाई-पुताई करने वाले मजदूरों का टोटा पड़ गया है। मुंहमांगी मजदूरी मिलने से उनकी दिवाली भी बढ़िया मन रही है। घरों की रंगाई-पुताई के बाद बिजली की लड़ियों से जगमगाया जा रहा है। बिजली की लड़ियां माकेoट में जगह-जगह बिक रही हैं। <br />
जब हर किसी की जेब में माल है तो िफर धमाल में ही क्यों कमी रहे। धूमधड़ाके के बीच देसी-विदेशी दारू भी खूब बिक रही है। दिल्ली में तो दो दिन दारू के ठेकों का समय भी बढ़ा दिया गया है। किसी खास को गिफ़्ट देने के लिए तो वाइन, िव्हस्की और रम है। बस तो अब क्या गम है।Unknownnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-84184144856693274692010-10-30T03:20:00.000-07:002010-10-30T03:20:08.297-07:00रेगिस्तान में आइसलैंड!रासविहारी, संयुक्त अरब अमीरात से लौटकर। रस अल खेमा, कभी नाम भी नहीं सुना था। मेरी ही तरह बहुत सारे भारतीयों ने इसका नाम नहीं सुना है। इसलिए जब मेरे एक दोस्त ने रस अल खेमा आने का न्यौता दिया तो शुरू में कुछ समझ ही नहीं पाया। बाद में उसने बताया कि दुबई की ही तरह रस अल खेमा भी संयुक्त अरब अमीरात का एक शहर है और सात अमीरात में से एक अमीरात है। <br />
दुबई से 80 किलोमीटर दूर रेत के रेगिस्तान में बसा है, रस अल खेमा। दुबई और रस अल खेमा के बीच फराoटा भरती हाइवे है, जिस पर कोई भी गाड़ी 120 और 140 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से कम नहीं चलती। दुबई से चलकर शारजाह को पार करते हुए पहुंचना होता है रस अल खेमा। शारजाह पार करते ही सड़क के दोनों ही तरफ रेत ही रेत। सोचा यह कैसा शहर है, लेकिन जब पहुंचा तो पता चला कि दुनिया की हर आधुनिक सुख सुविधाओं वाला है यह शहर। <br />
हमारे दोस्त बलवंत व संतोख चावला ने इस रेगिस्तान में 125 एकड़ में आइसलैण्ड पार्क बनाया है। आप भी इनसे परिचित होंगे, यही नहीं हैं तो बता दें कि दिल्ली के कापसहेड़ा बॉर्डर पर स्थित फन एण्ड फूड के संचालक यही दोनों भाई हैं। इनके स्वामित्व वाली पोलो एम्यूजमेंट ग्रुप ने दिल्ली, नागपुर और पूर्व सोवियत संघ के ताशकन्द के बाद अपने वाटर पार्क के लिए रस अल खेमा को चुना था। न सिर्फ इसे चुना था, बल्कि इस आइसलैण्ड में दुनिया का सबसे बड़ा मानव निमिoत वाटर फॉल और रेल डांस पुल भी स्थापित कर दिया था। <br />
हमारे साथ कुछ और पत्रकारों का दल इस पार्क के उदघाटन अवसर का गवाह बनने गया था। रस अल खेमा के रूलर एच एच शेख सउद बिन शाकिर अल कासिमी ने इस पार्क का उदघाटन किया। रस अल खेमा एक टैक्स फ्री जोन है, जहां आप आसानी से कोई भी उपक्रम लगा सकते हैं। लेकिन यहां आप 49 फीसदी से अधिक निवेश नहीं कर सकते। आपके निवेश में 51 फीसदी की भागीदारी वहां के रूलर की हो जाती है। इस कारण भारत का पोलो एम्यूजमेंट यहां संयुक्त उपक्रम बनकर पोलो रैक एम्यूजमेंट एलएलसी हो गया है। <br />
रस अल खेमा के जल जजीरा अल हामरा में रसलखेमा में 125 एकड़ में आइसलैण्ड वाटर पार्क का निर्माण किया गया है। इसमें एक साथ 10 हजार लोग लुत्फ उठा सकते हैं। इसमें 50 से अधिक वाटर स्लाइड लोगों के मनोरंजन के लिए बनाया गया है। यहां लगाया गया वाटर प्लांट एक दिन में पांच लाख 25 हजार गैलन पानी की सफाई करता है। इसमें से चार मिलियन गैलन पानी पुल में जाता है। ये वाटर स्लाइड इतने रोमांचक हैं कि इसमें सवारी करते वक्त कई बार खतरे का अहसास हुआ, लेकिन इस अहसास के साथ रोमांचक अहसास बना रहा। <br />
रेगिस्तान की तपती गर्मी में ये वाटर पार्क राहत देने वाले लगे। दिन भर के थके-मान्दे अरब के शेखों को अपने परिवार के साथ यहां आता देखकर अच्छा लगा कि चलो एक भारतीय ने एक गैर मुल्क में न सिर्फ एक मुकाम हासिल किया है, बल्कि वहां के स्थानीय लोगों को मनोरंजन की सुविधाएं भी दे रहा है। दिल्ली में पार्किंग की पार्किंग की किच-किच से इतनी बार गुजर चुका हूं कि यहां की पार्किंग में एक साथ 2500 कारें व 75 बसें खड़ी करने की बात सुनकर थोड़ा आश्चर्य हुआ और यह भी लगा कि यहां के लोग कितने अनुशासित हैं जो बड़े आराम से गाड़ियां खड़ी कर रहे हैं। पोलो इम्यूजमेंट ग्रुप के निदेशक सन्तोष चावला ने बताया कि भारत एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। हमें भी दुनिया को दिखाना है कि हमारे देश की कंपनी और हमारे यहां के लोग किसी देश से कम नहीं है। <br />
रस अल खेमा में हमलोग तीन दिन रहे। इस बीच दुबई की शॉपिंग का भी मजा लिया। दुबई से यह जगह थोड़ी सस्ती है। इस बीच एक शाम डेजर्ट सफारी का अवसर भी मिला। पहले तो ड्राइवर ने डराया कि आप लोगों ने अधिक खाना तो नहीं खाया है। यदि आपने गाड़ी में उल्टी की तो 500 दिरहम का जुर्माना भरना होगा। एक दिरहम यहां का करीब 13 ‹पए होता है तो समझ लीजिए कि सफारी के बीच आपने यदि गाड़ी में उल्टी की तो 6500 ‹पए तत्काल ड्राइवर आपकी जेब से खींच लेगा। <br />
खैर, डेजर्ड सफारी के लिए हम लैण्ड क्रूजर में सवार हुए। रेल के ऊंचे-नीचे टीलों में दौड़ती-भागती, कूदती-फांदती लैंड क्रूजर के अन्दर घबराहट सिर्फ इसलिए नहीं हुई कि ड्राइवर ने जुर्माना भरने की धमकी दी थी, बल्कि इस सफर के रोमांच ने घबराहट को पैदा ही नहीं होने दिया। कई बार लगा गाड़ी अब पलटी, तब पलटी, लेकिन अचानक रेत उड़ाती उड़न छू हो जाती। सफारी की थकान उस वक्त कम हुई जब बीच रेगिस्तान में खाने-पीने और नाच-गाने का प्रबंध देखा। <br />
दरअसल यह डेजर्ड सफारी के पैकेज का हिस्सा था। वहां ऊंट की सवारी से लेकर अरबी संगीत की मोहक धुन, सभी कुछ तो मौजूद था। अरबी संगीत पर पहले थिरकता एक पु‹ष और िफर एक कमसिन बाला ने समा बांध दिया। उस जगह पर भारत, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, रूस-सभी जगह के पर्यटक थे। सफारी की सारी थकान काफूर हो गई और उस रात नीन्द भी जबरदस्त आई। <br />
सुबह दुबई की सैर को निकले। दुबई को देखकर लगा कि इसे ऐसे ही शॉपिंग सिटी नहीं कहा जाता। ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों और मॉल वाले इस शहर में हर वक्त शॉपिंग फेस्टिवल का अहसास होता है। यहां पाम-जुमैरा आइलैण्ड हो, दुनिया का सबसे ऊंची बल्डिंग बुर्ज़ खलीफा हो या दुनिया का सबसे बड़ा मॉल दुबई माल-सभी कुछ मानव निर्मित है। एक अरब सागर का किनारा प्राकृतिक लगा, लेकिन इसे भी ऊंचे तटों से बांधने की कोशिश दिख जाती है। <br />
दुबई में भारत का असली अहसास `बर-दुबई' नामक जगह पर जाकर हुआ। आप यूं समझ लीजिए कि हम दिल्ली के चान्दनी चौक में पहुंच गए थे, लेकिन यह चौक चान्दनी चौक की अपेक्षा बहुत अधिक व्यवस्थित है। दिल्ली में नीचे दुकान और ऊपर रिहायश वाले इलाके को अनधिकृत कह कर कई इलाकों में बुल्डोजर चलाया गया, लेकिन यहां नीचे दुकान और ऊपर मकान की जगमगाहट ऊंची अट्टालिकाओं वाले इस शहर में आंखों को सुकून देती लगी। ज्वैलरी से लेकर कपड़े तक, चाट-समोसा से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स आयटम तक सब कुछ यहां के बाजार में उपलब्ध है। अंग्रेजी नहीं आती कोई बात नहीं, आपने रुपए को दिरहम में नहीं बदला तो भी चलता है। यहां तो बस आप अपनी भाषा हिन्दी में अपने भारतीय रुपए के साथ दौड़ पड़ेंगे। <br />
इसलिए जब भी दुबई जाइए तो `बर-दुबई' जरूर जाइए, आपके अपने भाईयों ने उस रेगिस्तानी, ऊची अट्टालिकाओं वाली तपती धरती पर भारत का झण्डा बुलन्द कर रखा है। हमारी शाम की फ़्लाइट थी, वर्ना इच्छा हो रही थी थोड़ा वक्त और वहां गुजारें और आपके साथ थोड़ा और अनुभव शेयर करें। चलिए, अब आप खुद घूम आइए, उसमें ज्यादा मजा है।<br />
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संडे नईदुनिया से साभारUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-71465883511505600092010-10-30T03:06:00.000-07:002010-10-30T03:06:35.127-07:00अच्छे मुहूर्त की बारी, खूब चल रही है खरीदारीइलैक्ट्रानिक, मोबाइल, घड़ियों और कपड़े खरीदने पर ज्यादा जोर <br />
बर्तन-जेवरात का बाजार भी रहेगा गर्म <br />
सोने-चान्दी के गिफ़्ट आइटम भी खूब बिक रहे हैं<br />
रासविहारी<br />
नई दिल्ली। इस बार दिवाली पर बाजारों में भारी भीड़ है। कहा जा रहा है कि शनिवार को तीस साल बाद खरीदारी का जबरदस्त शुभ मुहुर्त है। यह मुहूर्त शनिवार को पुष्य नक्षत्र के कारण बन रहा है। बाजारों में िफलहाल सबसे ज्यादा इलैक्ट्रॉनिक सामान, मोबाइल, कपड़े और घड़ियों की बिक्री हो रही है। खरीदारों की भीड़ से दुकानदार मस्त हैं। <br />
खरीदारों की भीड़ के मद्देनज़र कंपनियां एक से एक नायाब बेशकीमती सामान बाजार में लांच कर रही हैं। गुरुवार को 16 करोड़ की कार बाजार में उतारी गई तो शुक्रवार को स्टार किक्रेटर सचिन तेन्दुलकर दो करोड़ की घड़ी लांच करने पहुंचे। तमाम कंपनियां रोजाना अपने-अपने उत्पाद ग्राहकों को लुभाने के लिए बाजार में लांच कर रहे हैं। घर की रंगाई-पुताई, सजावट के सामान से लेकर सोने-चान्दी के जेवरात खरीदे जा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि बढ़ती कीमतों के बावजूद उपहार के तौर पर देने के लिए सोने-चान्दी के आइटम खूब बिक रहे हैं। बाजार में सोने-चान्दी के तरह-तरह के गिफ़्ट आइटम भी मौजूद हैं। चान्दी के लक्ष्मी-गणेश की मूिर्त की बिक्री भी इस बार ज्यादा बढ़ी है। हैसियत बढ़ने का साथ लोगों में दिवाली के दिन चान्दी की मूिर्तयों का पूजन करने का चलन बढ़ा है। <br />
धनतेरस से पहले ही शुभ मुहूर्त के कारण बाजारों में शनिवार को बर्तन और जेवरात के खरीदारों की भीड़ बढ़ने की संभावना है। चान्दी के गिलास, कटोरे और ट्रे में सूखे मेवे भरकर देना भी लोगों को खूब भा रहा है। ऐसा उपहार पाने पर तो हर कोई खुश होता है। दाम बढ़ने का बावजूद सूखे मेवों की बिक्री में जोरदार बढ़ोतरी हुई है। <br />
दिवाली पर इस बार कपड़ों की दुकानों पर ज्यादा भीड़ है। तमाम तरह के नए-नए फैशन और डिजाइनों वाले कपड़े खरीदारों को पसन्द आ रहे हैं। कपड़ो के बाद मोबाइल और घड़ियों की भी बिक्री बढ़ी है।<br />
नईदुनिया से साभार 30/10/2010Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-51565679580003289962010-10-23T04:11:00.000-07:002010-10-23T04:11:39.307-07:00दिल्ली सरकार की खर्च लीलावाहवाही लूटने को 63 हजार करोड़ का पर्चा, जांच से बचने को 4 हजार की चर्चा <br />
रासविहारी <br />
नई दिल्ली। दिल्ली की भी खर्च लीला अजीब है। कॉमनवेल्थ गेम्स से जुड़ी परियोजनाओं की जांच होने पर सरकार खर्च बता रही है, महज 3800 करोड़ रुपए। गेम्स से एक महीने दिल्ली सरकार ने प्रधानमन्त्री को भेजे पत्र में खर्चा बताया था 16198 करोड़। खबर यह नहीं है कि खर्च 3800 करोड़ हुए या 16198 करोड़। खबर तो यह है कि दिल्ली सरकार वाहवाही लूटने को खर्च बता रही थी कि 63 हजार करोड़ रुपए। इसके लिए बाकायदा रंगाबिरंगी फोटो वाली किताब बांटी गई। इस किताब पर खर्च भी मोटा किया गया।<br />
दिल्ली सरकार की तरफ से यह किताब पिछले विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले बांटी गई थी। परियोजनाओं के खर्च पर विवाद उठने के बाद सरकार ने कई परियोजनाओं को कॉमनवेल्थ गेम्स के बाहर बता दिया। इन परियोजनाओं में बिजली, पानी, स्वास्थ्य, सड़क, सजावट और अन्य योजनाएं हैं। चुनाव से पहले दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन को अपनी योजनाएं बताने वाली दिल्ली सरकार ने अब पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया है। बिजली परियोजनाओं का तो सरकार कॉमनवेल्थ गेम्स से पूरी तरह अलग बता रही है। आठ हजार मेगावॉट की बिजली परियोजनाओं पर सरकार ने 35 हजार करोड़ खर्च करने का ऐलान किया था। स्ट्रीट लाइट और स्ट्रीट स्केपिंग पर ही 890 करोड़ रुपए खर्च करने की योजना तैयार की थी। स्ट्रीट लाइटिंग 325 किमी लंबी सड़क और स्ट्रीट स्केपिंग 150 किमी होनी थी। सरकार ने पहले पानी सप्लाई करने की योजना के लिए एक हजार करोड़ रुपए खर्च करने की योजना बनाई थी। स्ट्रीट स्केपिंग पर लोक निर्माण विभाग ने 269 करोड़, दिल्ली नगर निगम ने 160 करोड़ और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद ने 60 करोड़ खर्च किए हैं। अब सरकार ने कॉमनवेल्थ विलेज गेम्स में एक एमजीडी वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और एक एमजीडी की क्षमता वाला सीवर ट्रीटमेंट प्लांट को ही गेम्स से जोड़ रही है। इन दोनों प्रोजेक्ट पर 35 करोड़ और 31.95 करोड़ खर्च किए गए। <br />
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गेम्स सूची से बाहर हुए बड़े प्रोजेक्ट <br />
गीता कालोनी पुल <br />
आरआर कोहली मार्ग फ़्लाईओवर<br />
गाजीपुर फ़्लाईओवर<br />
मुकरबा चौक<br />
आजादपुर <br />
रावतुला राव मार्ग<br />
नेल्सन मण्डेला मार्ग<br />
आईटीचुंगी बेहरा इंलक्लेव <br />
<Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-58833470533648664482010-10-21T02:12:00.001-07:002010-10-21T02:12:50.675-07:00यह किस का है खेलरासविहारी <br />
नई दिल्ली। कॉमनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति से पूर्व केन्द्रीय मन्त्री और भारतीय जनता पाटीo के राष्ट्रीय महासचिव विजय गोयल को निकाला गया या उन्होंने इस्तीफा दिया? यह तो तय नहीं है पर गेम्स देखने के लिए अक्रीडिटेशन कार्ड उन्होंने आयोजन समिति के सदस्य के तौर पर बनवाया। यह अलग बात है कि विजय गोयल पिछले एक साल से आयोजन समिति में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। इसके लिए उनकी तारीफ मंगलवार को भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी की थी।<br />
श्री गडकरी ने मंगलवार को प्रेस कांफ्रेस में एक सवाल के जवाब में कहा था कि आयोजन समिति से भाजपा नेता विजय गोयल ने इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने गोयल की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई छेड़ने पर जमकर तारीफ की थी। अब यह सवाल उठाया जा रहा है कि आयोजन समिति से इस्तीफा देने के बाद विजय गोयल ने सदस्य के तौर पर अपना और पत्नी प्रीति गोयल का अक्रीडिटेशन कार्ड क्यों बनवाया? उन पर भाजपा अध्यक्ष को भी पूरी जानकारी न देने का बात उठाई जा रही है। भाजपा नेताओं में से विजय कुमार मल्होत्रा आयोजन समिति के कार्यकारी बोर्ड के सदस्य हैं। विजय गोयल के अलावा कीिर्त आजाद और चेतन चौहान आयोजन समिति के सदस्य बनाए गए थे। <br />
मिली जानकारी के अनुसार सुधांशु मित्तल के दोस्त हरीश शर्मा की भाजपा के नेताओं के अक्रीडिटेशन कार्ड बनवाने में बड़ी भूमिका रही है। हरीश शर्मा आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी और महासचिव ललित भनोट के खासमखास हैं। भाजपा के दबंग नेता रहे प्रमोद महाजन के खास हरीश शर्मा को आयोजन समिति में बड़ी भूमिका मिली थी। <br />
श्री गोयल का कहना है कि उन्होंने आयोजन समिति से इस्तीफा नहीं दिया था। आयोजन समिति ने ही उन्हें बाहर निकाल दिया था। उनका कहना है कि आयोजन समिति की तरफ से उन्हें अक्रीडिटेशन कार्ड बनवाने का फार्म भेजा गया था।Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-72002638022466298342010-10-18T01:19:00.001-07:002010-10-23T04:06:53.482-07:00बड़े अफसरों का खेल खत्मUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1532262747290114943.post-75491262696233831032010-10-17T06:00:00.000-07:002010-10-17T06:00:03.585-07:00कलमाडी पर तेज हुआ हमलारासविहारी <br />
नई दिल्ली। कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार को लेकर दिल्ली की मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित ने आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी पर सीधा हमला बोल दिया है। लगातार दूसरे दिन उन्होंने भ्रष्टाचार को लेकर कलमाडी पर सीधा शक जताया है। लंबे अरसे से गेम्स की तैयारियों को लेकर आलोचना झेलती रहीं श्रीमती दीक्षित ने कलमाडी को लपेटने वाले बयान देने शुरू कर दिए हैं। आयोजन समिति में भ्रष्टाचार की जांच के लिए लिए कमेटी गठित होने पर सुरेश कलमाडी ने हर तरह का सहयोग देने का ऐलान किया है। इससे पहले कामयाबी का श्रेय लेने की होड़ में उपराज्यपाल तेजेन्द्र खन्ना से श्रीमती दीक्षित का टकराव चल रहा है। <br />
आयोजन समिति के अध्यक्ष कलमाडी से भी श्रीमती दीक्षित टकराव पुराना है। कलमाडी ने गेम्स के कई मुख्य आयोजनों से श्रीमती दीक्षित को दूर रखा था। गेम्स की पहली टिकट जारी करने के समारोह से भी उन्हें दूर रखा गया था। आयोजन समिति की तरफ से दिल्ली सरकार के कामों पर बार-बार उंगली उठाई गई थी। मुख्यमन्त्री ने आयोजन समिति पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप में कलमाडी को सीधे ही लपेट दिया है। सबसे ज्यादा हेराफेरी आयोजन समिति को कर्ज़ के तौर पर मिली राशि में हुई है।<br />
श्रीमती दीक्षित के कलमाडी पर हमला बोलने के बाद यह माना जा रहा है कि आयोजन समिति से जुड़े कुछ प्रमुख अफसरों पर भी गाज गिर सकती है। खासतौर पर आयोजन समिति की वित्त समिति और उपसमिति के सदस्य जांच के लपेटे में आएंगे। इनमें कुछ असरदार अफसर भी हैं। गेम्स के लिए ओवरलेज की खरीदारी की मंजूरी भी अफसरों की समिति ने दी थी। <br />
खेलों में भ्रष्टाचार के लिए गठित उच्चस्तरीय जांच समिति के अलावा भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक, केन्द्रीय सतर्कता आयोग और केन्द्रीय जांच ब्यूरो भी अपने-अपने स्तर से जांच कर रहे हैं। कहा जा रहा कि िफलहाल करीब दो दर्ज़न बड़े अफसरों के कामकाज की जांच की जा रही है। इससे पहले सीवीसी ने गेम्स के लिए बनाए गए कई प्रोजेक्ट में गड़बड़ी के सिलसिले में पूछताछ शुरू की थी। सीएजी ने दिल्ली सरकार की परियोजनाओं की भी जांच शुरू कर दी है। <br />
कॉमनवेल्थ गेम्स की प्रमुख परियोजनाओं को अंजाम देने में दिल्ली सरकार, भारतीय खेल प्राधिकरण (साई), दिल्ली विकास प्राधिकरण, दिल्ली नगर निगम और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद की बड़ी भूमिका रही है। सीबीआई विभिन्न परियोजनाओं की टेण्डर प्रक्रिया की जांच कर रही है। <br />
नईदुनिया से साभार १७ अक्टूबर२०१०Unknownnoreply@blogger.com2