Wednesday, April 4, 2012

अपना ही गांव बना 'चक्रव्यूह’

मंुडका,बवाना,कराला और पूठकलां वार्ड में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार एक ही गांव से
गांव वालों के सामने पैदा हुआ धर्मसंकट, एक का झण्डा उठायें तो बैठे-बिठाये दूसरे से दुश्मनी
जाटों के गढ़ में खुलकर पसंद-नापसंद होती रही है जाहिर, इस बार छायी चुप्पी
रासविहारी मेट्रो संपादक
नई दिल्ली। देहात का कोई बाशिंदा अगर चुनाव लड़नें का मन बनाता है तो सबसे पहले बडे-बुजर्ग एक ही नसीहत देते है 'पहले अपने गांव को साथ करले फिर आगे कदम बढ़ाना’। मतलब साफ होता है कि अपनों के बगैर लड़ाई में कूदना घाटे का सौदा बन जाता है। नगर निगम चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के कई उम्मीदवार अपने पैतृक गांव को खुद के पाले में खड़ा करने के लिए तमाम दांव-पेच आजमा रहे है लेकिन बात बन नहीं पा रही है। वजह एक ही है, भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों का एक ही गांव का निवासी होना। मुंडका(वार्ड-3०), बवाना(वार्ड-28), कराला (वार्ड-29) और पूठकलां (वार्ड-25) में यह रोचक स्थिति गांववालों को खुलकर बोलने से रोक रही है। उम्मीदवारों के गांववालों के लिए तो एमसीडी का चुनाव ग्राम पंचायत का चुनाव बन गया है यानि एक का झण्डा उठायें तो बैठे-बिठाये दूसरे से दुश्मनी।
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह के छोटे भाई मास्टर आजाद सिंह को चुनाव के दौरान अपने पैतृक गांव मंुडका का लगभग एकतरफा समर्थन मिलता रहा है, लेकिन इस बार यहां से कांग्रेस ने उनके ही गांव के नरेश कुमार को मुकाबले में उतारा हुआ है। अब मुंडका गांव के सामने धर्मसंकट बन गया है, एक के पीछे चले तो दूसरा नाराज। आजाद सिंह का स्वागत करें तो नरेश का परिवार खफा और नरेश को फूलों का हार पहनाये तो मास्टर जी पूछें कि मैंने क्या बिगाड़ा है।
बवाना वार्ड में पिछले चुनाव में तीन उम्मीदवार रहे निर्दलीय नारायण सिंह, भाजपा के रामनिवास और कांग्रेस के कटार सिंह एक ही गांव बवाना के निवासी थ्ो। लिहाजा गांव का रूख खमोशी की चादर ओढेè हुआ था। जीत नारायण सिंह की हुई थी। अबकी बार फिर पिछले हालात बने हुए है। नारायण सिंह भाजपा से और देवेन्द्ग सिंह उर्फ पोनी पहलवान कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे है। बीच में पिछली बार भाजपा की टिकट से चुनाव मैदान में उतरे रामनिवास निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर कूदे हुए हैं। तीनों ही बवाना गांव से है। तीनों अपने गांव के ज्यादा से ज्यादा लोगों को खुद के पीछे जोड़ने रात-दिन पसीना बहा रहे हैं लेकिन मन चाही कामयाबी नहीं मिल पा रही है।
कराला वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित है। यहां से कांग्रेस ने मनीषा जसबीर और भाजपा ने सुषमा देवी को टिकट दिया है। दोनों ही कराला गांव की हैं। पिछली बार भी यह वार्ड महिला सामान्य के तौर पर आरक्षित था। भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी और कराला निवासी मंजीत माथुर ने 2००7 का चुनाव जीता था। इसबार उनका टिक ट पार्टी ने काट दिया लेकिन भरोसा कराला गांव पर ही बरकरार रहा और सुषमा देवी को उम्मीदवार बनाया।
पूठकलां वार्ड में कांग्रेस के अजित सोलंकी और भाजपा के देवेन्द्ग सोलंकी दोनों ही पैतृक तौर पूठकलां गांव के रहने वाले है। यहां गांव वालों के सामने यक्ष प्रश्न खड़ा है कि वोट किसे दें! जो भी दरवाजे पर आता है उसी को आशीर्वाद थमा देते है लेकिन खुलकर साथ चलने की बात आती है तो ज्यादातर गांववाले कन्नी काट लेते हैं।
कराला गांव माथुर गोत्र के जाटों का है। यहां ओमप्रकाश माथुर का कहना है कि हमारे लिए तो दोनो ही उम्मीदवार एक जैसे हैं। किसी एक का पक्ष कैसे लें। वोट किसको डालोगे? इसके जवाब में फिर माथुर साहब कूटनीति से भरा उत्तर देते है। अभी सोचा नहीं है। बवाना में सहरावत गोत्र के जाट चौधरी बसते है, तीनों उम्मीदवार भी सहरावत हैं। यहां पर नौजवान सतीश सहरावत बताते है कि तीनों उम्मीदवारों के साथ बवाना के कम जबकि दूसरे गांवों के लोग प्रचार पर ज्यादा संख्या में निकलते हैं। उनका कहना है कि ज्यादातर बवानावासी फिलहाल उम्मीदवारों की रस्साकशी से बचने के मूड में हैं। सभी को गांव में रहना है और कोई भी नहीं चाहता कि नतीजा आने के बाद हारने वाला पक्ष उनके सिर ठिकरा फोड़ें।
पूठकलां गांव के सोलंकी गोत्र के जाट भी अपने ही गांव के दो बेटों को टिकट मिलने के बाद खुश हुए थ्ो कि कोई भी हारे या जीते पार्षद की चौधराहट अपने ही गांव में रहेगी लेकिन अब इनको भी इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो रहा है कि बटन हाथ पर दबेगा या कमल पर।
आज अगर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह जिंदा होते तो वर्तमान स्थिति उनके लिए भी बडी उलझन वाली होती। हर चुनाव में मुंडका में वहीं हुआ जो साहिब सिंह ने कहा। लाकड़ा गोत्र के जाट बाहुल्य इस गांव में इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार नरेश कुमार भाजपा के उम्मीदवार मास्टर आजाद के लिए गांव का खुलकर समर्थन मिलने की राह में रोड़ा बन गए हैं। यहां पर राकेश लाकड़ा का कहना है कि गांव में साहिब सिंह की प्रतिष्ठा आज भी बरकार है लेकिन नरेश भी तो म्हारा छोरा है।
नेशनल दुनिया ५ अप्रैल २०१२

भाजपा के बागियों ने बदला हवा का रुख

पार्टी छोड़ने का सिलसिला जारी
पूर्व मंत्री मुखी के दामाद कांग्रेस में शामिल
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के करीबी रिश्तेदार भी छोड़ सकते हैं पार्टी
5० से ज्यादा बागी उम्मीदवार प्रचार में आगे
रासविहारी
नई दिल्ली। नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ बहती हवा का रुख भारतीय जनता पार्टी के बागी उम्मीदवारों ने बदलना शुरू कर दिया है। तीन निगमों में भाजपा के सौ से ज्यादा बागी उम्मीदवारों ने ताल ठोक रखी है। 5० से ज्यादा बागी उम्मीदवारों ने प्रचार में अपनी बढ़त कायम कर ली है। 28 बागी उम्मीदवारों ने तो अपना नया मोर्चा बनाकर चुनाव की रणनीति तैयार कर ली है। इसके साथ बड़े नेताओं की मनमानी के खिलाफ पार्टी छोड़ने का सिलसिला और तेज हो गया है। पूर्व मंत्री जगदीश मुखी के दामाद सुरेश कुमार भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता के करीबी रिश्तेदार समेत कुछ और नजदीकी नेता पार्टी छोड़ने के संकेत दे रहे हैं।
भाजपा के आला नेता सर्वे के भरोसे जीत की उम्मीद पाले बैठे हैं। इस कारण बागियों को मनाने की कोशिश भी नहीं हो रही है। प्रदेश भाजपा प्रभारी वेंकैया नायडू ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मांगेराम गर्ग को उत्तरी दिल्ली नगर निगम, पूर्व मंत्री जगदीश मुखी को दक्षिण दिल्ली नगर निगम और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन को पूर्वी दिल्ली निगम का चुनाव प्रभारी बनाया है। श्री गर्ग और श्री मुखी को पहले तो प्रदेश की चुनाव समिति में ही नहीं रखा था। अपनी उपेक्षा से दुखी दोनों नेताओं की कोई बागी सुनने को तैयार ही नहीं है। मुखी के तो परिवार में ही बगावत हो गई है। जनकपुरी पश्चिम से उनके दामाद सुरेश कुमार ने पहले आजाद उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल किया था। बाद में उन्होंने नामांकन वापस ले लिया और अब कांग्रेस मेें शामिल हो गए। पूर्वी दिल्ली निगम में तो डॉ. हर्षवर्धन के खिलाफ हर जगह भारी बगावत है। उनके विधानसभा क्षेत्र कृष्णा नगर के चारों वार्डों में बागी उम्मीदवारों ने भाजपा उम्मीदवारों की हालत खराब कर दी है। जिन-जिन लोगों को उन्होंने उम्मीदवार बनवाया था, उन्हें कार्यकर्ताओं ने नकार दिया है। ज्यादातर वार्डों में उम्मीदवारों को कार्यकताã ही नहीं मिल रहे हैं।
भाजपा छोड़कर सात पार्षद बागी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में बने हुए हैं। न्यू अशोक नगर से प्रभा सिंह, रोहिणी से हरीश अवस्थी, रानी बाग से सुदेश भसीन, सागरपुर से प्रवीण राजपूत, लाजपत नगर से बीना अब्रोल, खजूरी खास से रामवीर और मोहन गार्डन से राजेश यादव ने भाजपा के उम्मीदवारों की हालत पतली कर रखी है। इसके अलावा कई पार्षदों की पत्नी में मैदान में हैं। उन्होंने भी प्रचार में अच्छी बढ़त बनाई है। निगम की स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष डॉ. वी के मोंगा का टिकट काटने को लेकर भी कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है। उनका टिकट डॉ. हर्षवर्धन के कहने पर काटा गया था। बताया जा रहा है कि मोंगा को टिकट देने पर डॉ. हर्षवर्धन ने इस्तीफा देने की धमकी दी थी। मोंगा का टिकट कटने से पंजाबी बिरादरी के वोटर नाराज बताए जा रहे हैं।
नेशनल दुनिया

Friday, March 30, 2012

अब नेशनल दुनिया में

दोस्तों

कल से हमने अपनी पूरी टीम के साथ पत्रकारिता जगत में एक नई शुरूआत की है। जून २००८ में मैंने कई साथियों के साथ बीस साल हिन्दुस्तान में काम करने के बाद नईदुनिया को दिल्ली में लाने की तैयारी शुरू की। अक्टूबर २००८ में नई दुनिया की दिल्ली से शुरूआत की। अपनी खबरों के कारण नईदुनिया ने दिल्ली में अपनी जगह बनाई और एक चर्चित अखबार बना। हमारे प्रधान संपादक श्री आलोक मेहता के नेतृत्व में हमने महज १० दिन के भीतर नया अखबार दिल्ली और एनसीआर के पाठकों के लिए नया अखबार नेशनल दुनिया शुरू किया है। इसका पहला अंक आज आपके सामने है। हमें भी यह एक सपने से कम नहीं लग रहा है। २८ मार्च को हमें नए अखबार का नाम मिला और उसी दिन डेक्लेरशन फाइल किया और अगले दिन से अखबार शुरू हो गया। यह सब आप जैसे शुभचिंतक दोस्तों की शुभकामनाओं के कारण ही संभव हो पाया है। हमारी पूरी टीम अब नेशनल दुनिया में है और उसी तरह निर्भीक और निष्पक्ष तरीके से हम आपको खबरों से भरपूर रखेंगे। आशा है आपका सहयोग पहले की तरह मिलता रहेगा।