Friday, September 23, 2011

ras ki leela.....रास की लीला: मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए ...

ras ki leela.....रास की लीला: मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए ...: मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए पांच साल में १६ बार गए अमेरिका नई दिल्ली। मैं भी सरकारी, मेरा घर भी सरकारी, मेरी कार भी...

मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए पांच साल में १६ बार गए अमेरिका

मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए
पांच साल में १६ बार गए अमेरिका

नई दिल्ली। मैं भी सरकारी, मेरा घर भी सरकारी, मेरी कार भी सरकारी और मेरी विदेश यात्रा भी सरकारी। खर्च कितना भी हो क्या अंतर पड़ता है। खासतौर पर उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा जो रोजाना शहरी गरीब का घर ३२ रुपए में चला सकते हैं। गांव में गरीब का घर रोजाना २६ रुपए में चलाने की बात करने वाले योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया का विदेश यात्राओं का रोजाना औसतन खर्च है ११,३५४ रुपए। जाहिर है कि उनकी सरकारी विदेश यात्राओं का खर्च सरकार ने ही उठाया है।

योजना आयोग ने महंगाई के बढ़ते बोझ से दबते गरीबों की नई परिभाषा बनाई है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में योजना आयोग ने शहरों में रोजाना ३२ रुपए और गांव में २६ रुपए खर्च करने वालों को गरीब नहीं बताया है। रोजाना औसतन विदेश की यात्रा पर ११,३५४ रुपए खर्च करने वाले योजना आयोग के उपाध्यक्ष अहलुवालिया गरीबों का दर्द भी कैसे समझें। अहलुवालिया साहब का विदेशी यात्राओं का खर्च पत्रकार अरुण कुमार सिंह ने सूचना के अधिकार के तहत हासिल किया है।

योजना आयोग ने एक आरटीआई के जवाब में बताया है कि योजना आयोग के उपाध्यक्ष अहलुवालिया ने पांच साल में विदेश यात्राओं पर २ करोड़, चार लाख ३६ हजार ८२५ रुपए खर्च किए। पिछले पांच साल यानी जुलाई २००६ से जुलाई २०११ तक उन्होंने कुल ३६ बार विदेश की यात्रा की। इनमें ३५ यात्राएं सरकारी खर्चे पर की गईं। केवल एक बार उन्होंने अपनी जेब से विदेश यात्रा का खर्च चुकाया।

मिली जानकारी के अनुसार अहुलवालिया साहब पांच साल में १६ बार अमेरिका की सरकारी यात्रा पर गए। पांच साल के दौरान उन्होंने चार-चार बार ब्रिटेन और सिंगापुर की यात्रा की। इसके साथ ही अहलुवालिया ने दो बार फ्रांस और चीन की यात्रा की। साथ ही कोरिया, स्विटरजरलैंड, ओमान, कनाडा, बहरीन,जापान और सऊदी अरब की यात्रा सरकारी खर्च पर की।
नईदुनिया 23 सितंबर2011

Tuesday, June 7, 2011

अध्यक्षजी ने करवाई मालिश

अध्यक्षजी ने करवाई मालिश
नारे कम गाने ज्यादा
राजघाट पर भाजपा का सत्याग्रह
रासविहारी
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने राजघाट पर सत्याग्रह के दौरान मालिश कराके अपनी थकान मिटाई। मौका था भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे बाबा रामदेव पर पुलिसिया जुल्म के खिलाफ भाजपा के राजघाट के सामने आयोजित २४ घंटे के सत्याग्रह का। सत्याग्रह के दौरान गाने ज्यादा बजे और नारे कम लगे। ज्यादातर नेता तेज गर्मी के कारण कुछ समय ही सत्याग्रह में शामिल हुए।

रविवार की शाम को सात बजे शुरू हुआ धरना सोमवार की शाम को खत्म हुआ। रात को एक बजे के आसपास ज्यादातर नेताओं और कार्यकर्ताओं के रवाना होने के बाद मंच के पीछे सोने के लिए बनाई गई जगह पर शाम से बैठे अध्यक्षजी की थकान पुरानी दिल्ली की मशहूर मालिश से उतारी गई। थकान उतारने के बाद अध्यक्षजी आम कार्यकर्ताओं के साथ ही सत्याग्रह स्थल पर सोने गए। सुबह छह बजे नहाने-धोने के लिए अपने आवास पर गए और जल्दी वापस आ गए। पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी भी सत्याग्रह में ज्यादा समय नहीं बैठे।

सत्याग्रह पर अध्यक्षजी के साथ पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह, धर्मेन्द्र प्रधान, अनंत कुमार और युवा मोर्चा के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर जमे रहे। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने रात को कृष्ण भजन और देशभक्ति के गीतों के जरिए कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया। स्वराज तड़के चार बजे अपने घर गईं तो राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली रात तीन बजे गए। सुषमा स्वराज ने गानों पर ठुमके भी लगाए। ठुमके लगाने में उनका साथ अनुराग ठाकुर ने दिया।

सत्याग्रह स्थल पर गर्मी में पसीना बहाते बैठे नेताओं और कार्यकर्ता नारे कम लगा रहे थे। इस कारण जोश भरने के लिए यह देश है वीर जवानों का और मेरा रंग दे वसंती चोला जैसे गाने ज्यादा बजते रहे। सत्याग्रह में बाबा रामदेव के समर्थक भी शामिल हुए।

सत्याग्रह के दौरान भी सुषमा और जेटली समर्थकों में दूरी बनी रही। रात को सुषमा समर्थक नेता उनके आसपास जमे रहे तो जेटली के खास भी उनके पास बैठे रहे। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता को दोनों के बीच संतुलन बनाने में जरूर मेहनत करनी पड़ी

Sunday, March 27, 2011

दारू की कमाई से भरते सरकारी खजाने

शराब को सेहत और समाज के लिए बेहद खराब मानना कोई नई बात नहीं है । सैद्धांतिक तौर पर हर मंच से इसकी निंदा की जाती रही है और हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने इसकी घोर निंदा की लेकिन विडंबना यह है कि भाजपा शासित या भाजपा के सहयोग से चलने वाली सरकारों ने शराब प्रबंधन से जम कर राजस्व बटोरने पर ध्यान दिया है । ज्यादातर राज्य सरकारों के खजाने में दारू की बिक्री से ज्यादा कर जमा हो रहा है । हाल यह है कि ज्यादातर राज्यों में पांच साल में दारू से कमाई दोगुनी से ज्यादा हो गई है । छत्तीसगढ़ को छोड़कर सभी राज्यों में शराब ठेकों की संख्या या शराब की बिक्री बढ़ रही है


रासविहारी

महंगी हुई शराब कि थोड़ी-थोड़ी पिया करो के सुरीले सुरों का असर पियक्कड़ों पर कोई पड़ता नहीं दिखता है । महंगी होती शराब के बावजूद शराब के दीवाने करोड़ों की शराब गटक जाते हैं। ज्यादातर राज्य सरकारों के खजाने में दारू की बिक्री से ज्यादा कर जमा हो रहा है । हाल यह है कि ज्यादातर राज्यों में पांच साल में दारू से कमाई दोगुनी से ज्यादा हो गई है । छत्तीसगढ़ को छोड़कर सभी राज्यों में शराब ठेकों की संख्या या तो बढ़ रही है या शराब की बिक्री में लगातार बढ़ोतरी हो गई है । छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस साल अप्रैल से दो हजार की आबादी वाले गांवों में देशी-अंग्रेजी शराब के २५० ठेके बंद करने का एलान किया है । इससे राज्य में शराब की बिक्री में कमी आएगी । जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार और असम में शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व में बढ़ोतरी हो रही है । हिमाचल, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में पियक्कड़ों की तादाद भी तेजी से बढ़ रही है । पंजाब में १८ साल से ज्यादा आयु वालों की शराब पीने की अनुमति है । इसके बावजूद पंजाब में १३ साल तक के बच्चे नशे की गिरफ्त में हैं । पंजाब की महिलाओं में भी नशे की लत बढ़ रही है । जम्मू-कश्मीर में भी अंग्रेजी शराब की बिक्री बढ़ी है । चंडीगढ़ में शराब की बिक्री खूब होती है। आंकड़े बता रहे हैं कि रोजाना १.८० लाख बोतल शराब अकेले चंडीगढ़ में बिक जाती है । कभी केरल में शराब की सालाना बिक्री प्रति व्यक्ति सबस

्‌ीटा्रज्यादा थी । इस समय हरियाणा पियक्कड़ों के लिहाज से अव्वल है । हरियाणा सरकार ने विकास के मद्देनजर आबकारी नीति को उदार बनाया है । देहाती इलाकों के विकास के लिए पंचायतों को आबकारी राजस्व में हिस्सा देने की घोषणा की गई है । एक गैर सरकारी संगठन के अनुसार प्रति व्यक्ति सालाना खपत हरियाणा में २१.४५, दिल्ली में १४.७२, हिमाचल प्रदेश में १२.८० और पंजाब में ११.४५ बोतल है । महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और बिहार में देशी दारू की बिक्री भी ज्यादा हो रही है । पूरे देश में जितनी देशी शराब बिकती है उसका ५० प्रतिशत तो इन सात राज्यों में ही खप जाता है । इन आंकड़ों को तफसील से देखें तो पाएंगे कि देश में देशी दारू की बिक्री का ११ फीसदी उत्तर प्रदेश, नौ फीसदी महाराष्ट्र, आठ फीसदी पश्चिम बंगाल, आठ फीसदी बिहार, पांच फीसदी पंजाब और मध्य प्रदेश तथा चार फीसदी हरियाणा में हिस्सा है । कई राज्यों में देशी दारू की बिक्री पर रोक लगा दी गई है । इसके बावजूद देशी दारू का सालाना कारोबार २५ हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है । देशी दारू की बिक्री में हर साल ढाई फीसदी का इजाफा हो रहा है । अंग्रेजी शराब की बिक्री हर साल १० फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। यही वजह है कि सरकारी खजाने में अन्य मदों में मिलने वाले राजस्व से ज्यादा आबकारी से मिलता है । कई राज्यों में वैट के बाद सरकारों की कमाई शराब की बिक्री से होती है ।

हैरानी की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के राज वाले राज्य भी शराब की बिक्री से लगातार राजस्व बढ़ा रहे हैं । देश में आबकारी से कमाई करने वालों में कर्नाटक अव्वल रहा है । कर्नाटक सरकार ने आगामी वित्त वर्ष के लिए आबकारी वसूली का लक्ष्य ९,२०० करोड़ रुपए तय किया है । चालू वित्त वर्ष में कर्नाटक ने तय लक्ष्य ७,५०० करोड़ रुपए से कहीं बढ़कर ८,२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूले हैं । तमिलनाडु सरकार भी कर्नाटक सरकार की तर्ज पर चल रही है । तमिलनाडु सरकार ने नए वित्त वर्ष में ८,९३५ करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है ।

आबकारी लक्ष्य में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश ने अन्य राज्यों के मुकाबले कम लक्ष्य तय किया है । मध्य प्रदेश में वर्ष ०९-१० में सरकार ने आबकारी के तहत २,४०० करा़ेड रुपए वसूलने का लक्ष्य तय किया और मिले २५ सौ करोड़ रुपए ! २०१०-११ के लिए सरकार ने २,७०० करोड़ मिलने की उम्मीद सरकार ने जताई है । लगता है, कमाई इससे ज्यादा होगी ।

उत्तर प्रदेश सरकार ने तो आबकारी वसूली के लिए अगले दो साल के लिए नई नीति बनाई है । उत्तर प्रदेश में २००९-१० में बीयर और अंग्रेजी शराब की २० करोड़ से ज्यादा बोतलें बिकीं । देशी दारू की २२ करोड़ बोतलें बिकीं । सरकार को इस मद में ५,६६६ करोड़ रुपए मिले । इस साल फरवरी तक आबकारी वसूली में सरकार ने २० प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है । माया सरकार ने आबकारी वसूली के तहत अगले दो साल में तीन हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त वसूली का लक्ष्य तय किया है यानी कि अगले वित्त वर्ष में आबकारी के तहत आठ हजार करोड़ रुपए वसूलने का लक्ष्य रखा गया है ।

ऐसा नहीं है कि अन्य राज्य शराब से कमाई में बहुत पीछे हैं । तेजी से विकास की तरफ बढ़ते छोटे राज्यों में पंजाब ने नए वित्त वर्ष में ३,१९० करोड़, हरियाणा ने २५०० करोड़ और दिल्ली २२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है । उत्तराखंड में भी भाजपा की सरकार ने आबकारी वसूली का लक्ष्य बढ़ाया है । दिल्ली के पियक्कड़ हर महीने ४५ लाख बोतल दारू गटक जाते हैं । सरकार का राजस्व भी लगातार बढ़ रहा है । तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शीला दीक्षित ने पहली बार वित्त विभ ङ"ख११ऋ

्‌ीटा्रज्यादा थी । इस समय हरियाणा पियक्कड़ों के लिहाज से अव्वल है । हरियाणा सरकार ने विकास के मद्देनजर आबकारी नीति को उदार बनाया है । देहाती इलाकों के विकास के लिए पंचायतों को आबकारी राजस्व में हिस्सा देने की घोषणा की गई है । एक गैर सरकारी संगठन के अनुसार प्रति व्यक्ति सालाना खपत हरियाणा में २१.४५, दिल्ली में १४.७२, हिमाचल प्रदेश में १२.८० और पंजाब में ११.४५ बोतल है । महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और बिहार में देशी दारू की बिक्री भी ज्यादा हो रही है । पूरे देश में जितनी देशी शराब बिकती है उसका ५० प्रतिशत तो इन सात राज्यों में ही खप जाता है । इन आंकड़ों को तफसील से देखें तो पाएंगे कि देश में देशी दारू की बिक्री का ११ फीसदी उत्तर प्रदेश, नौ फीसदी महाराष्ट्र, आठ फीसदी पश्चिम बंगाल, आठ फीसदी बिहार, पांच फीसदी पंजाब और मध्य प्रदेश तथा चार फीसदी हरियाणा में हिस्सा है । कई राज्यों में देशी दारू की बिक्री पर रोक लगा दी गई है । इसके बावजूद देशी दारू का सालाना कारोबार २५ हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है । देशी दारू की बिक्री में हर साल ढाई फीसदी का इजाफा हो रहा है । अंग्रेजी शराब की बिक्री हर साल १० फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। यही वजह है कि सरकारी खजाने में अन्य मदों में मिलने वाले राजस्व से ज्यादा आबकारी से मिलता है । कई राज्यों में वैट के बाद सरकारों की कमाई शराब की बिक्री से होती है ।

हैरानी की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के राज वाले राज्य भी शराब की बिक्री से लगातार राजस्व बढ़ा रहे हैं । देश में आबकारी से कमाई करने वालों में कर्नाटक अव्वल रहा है । कर्नाटक सरकार ने आगामी वित्त वर्ष के लिए आबकारी वसूली का लक्ष्य ९,२०० करोड़ रुपए तय किया है । चालू वित्त वर्ष में कर्नाटक ने तय लक्ष्य ७,५०० करोड़ रुपए से कहीं बढ़कर ८,२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूले हैं । तमिलनाडु सरकार भी कर्नाटक सरकार की तर्ज पर चल रही है । तमिलनाडु सरकार ने नए वित्त वर्ष में ८,९३५ करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है ।

आबकारी लक्ष्य में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश ने अन्य राज्यों के मुकाबले कम लक्ष्य तय किया है । मध्य प्रदेश में वर्ष ०९-१० में सरकार ने आबकारी के तहत २,४०० करा़ेड रुपए वसूलने का लक्ष्य तय किया और मिले २५ सौ करोड़ रुपए ! २०१०-११ के लिए सरकार ने २,७०० करोड़ मिलने की उम्मीद सरकार ने जताई है । लगता है, कमाई इससे ज्यादा होगी ।

उत्तर प्रदेश सरकार ने तो आबकारी वसूली के लिए अगले दो साल के लिए नई नीति बनाई है । उत्तर प्रदेश में २००९-१० में बीयर और अंग्रेजी शराब की २० करोड़ से ज्यादा बोतलें बिकीं । देशी दारू की २२ करोड़ बोतलें बिकीं । सरकार को इस मद में ५,६६६ करोड़ रुपए मिले । इस साल फरवरी तक आबकारी वसूली में सरकार ने २० प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है । माया सरकार ने आबकारी वसूली के तहत अगले दो साल में तीन हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त वसूली का लक्ष्य तय किया है यानी कि अगले वित्त वर्ष में आबकारी के तहत आठ हजार करोड़ रुपए वसूलने का लक्ष्य रखा गया है ।

ऐसा नहीं है कि अन्य राज्य शराब से कमाई में बहुत पीछे हैं । तेजी से विकास की तरफ बढ़ते छोटे राज्यों में पंजाब ने नए वित्त वर्ष में ३,१९० करोड़, हरियाणा ने २५०० करोड़ और दिल्ली २२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है । उत्तराखंड में भी भाजपा की सरकार ने आबकारी वसूली का लक्ष्य बढ़ाया है । दिल्ली के पियक्कड़ हर महीने ४५ लाख बोतल दारू गटक जाते हैं । सरकार का राजस्व भी लगातार बढ़ रहा है । तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शीला दीक्षित ने पहली बार वित्त विभाग की कमान अपने पास रखी है । मुख्यमंत्री ने साढ़े बारह साल के राज में पहली बार विधानसभा में बजट पेश किया । दिल्ली में आबकारी के तहत लक्ष्य से ज्यादा ही वसूली हो रही है । आसपास के राज्यों के मुकाबले दिल्ली में शराब और बीयर के दाम भी कम हैं ।

एयरक्राफ्ट की खरीद में ७८३ करोड़ का घपला

सीएजी ने एयर इंडिया में ४३ एयरक्राफ्ट की खरीद पर उठाए कई सवाल
सीएजी की रिपोर्ट में हुआ खुलासा



रासविहारी
नई दिल्ली। एयर इंडिया में बोइंग और एयरक्राफ्ट की खरीद में भारत सरकार को ७८३ करोड़ रुपए से ज्यादा की चपत लगी। नागरिक उड्डयन मंत्रालय की सुस्त चाल के कारण विमानों की खरीद में १० साल से ज्यादा का समय लगा। यह खुलासा भारत के महानियंत्रक और लेखापरीक्षक की ऑडिट रिपोर्ट में किया गया है। एयर इंडिया में विमानों की खरीद को लेकर ऑडिट रिपोर्ट को हाल ही में सरकार को भेजा गया है। रिपोर्ट के अनुसार एयर इंडिया को लेटलतीफी के कारण ५८४ करोड़ ज्यादा देने पड़े और १९९ करोड़ एडवांस को बिना एडजस्ट किए ज्यादा दे दिए गए।

सीएजी ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में लिखा है कि इंडियन एयरलाइंस ने अक्टूबर, १९९६ में बेड़ा बढ़ाने के लिए टास्क फोर्स बनाई थी। अप्रैल, १९९९ में टास्क फोर्स ने नौ बोइंग और छह एयर बस खरीदने की सूची बनाई। आखिर दिसंबर, १९९९ में चार एयर बस और पांच बोइंग खरीदने का फैसला किया गया। जुलाई, २००० में विमान कंपनियों से तकनीकी और वित्तीय टेंडर मांगे गए। अगस्त २००० में मेसर्स बोइंग और मेसर्स एयरबस इंडस्ट्रीज ने टेंडर दाखिल किए। टास्क फोर्स ने टेंडर का मूल्यांकन करने के बाद अपनी रिपोर्ट इंडियन एयरलाइंस के निदेशक मंडल को मार्च, २००१ में सौंपी। विनिवेश प्रक्रिया के आधार पर निदेशक मंडल ने टास्क फोर्स की रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसी दौरान अमेरिका से सस्ते विमान मिलने की संभावना के मद्देनजर दिसंबर, २००१ में निदेशक मंडल की सलाह पर बोइंग और एयरबस के दोबारा टेंडर मांगे गए।

ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार इंडियन एयरलाइंस निदेशक मंडल ने मार्च, २००२ में सीएफएम इंजन वाले ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने की प्रोजेक्ट रिपोर्ट को मंजूरी दे दी। विमान खरीदने पर १००८९ करोड़ रुपए का खर्च आने का अनुमान लगाया गया। उड्डयन मंत्रालय को अप्रैल, २००२ में यह प्रोजेक्ट रिपोर्ट सौंपी गई। सीएजी ने पाया कि मार्च, २००३ तक मंत्रालय में प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर कोई चर्चा नहीं की गई। मंत्रालय की विनिवेश सूची आने के बाद जून, २००३ में प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर मंत्रालय ने चर्चा की। मंत्रालय की रिपोर्ट पर योजना आयोग ने दिसंबर, २००३ में पहले चरण में २८ एयरक्राफ्ट और दूसरे चरण में शेष एयरक्राफ्ट खरीदने की मंजूरी दी। हालांकि योजना आयोग ने खरीद पर कुछ सवाल भी उठाए थे। मंत्रालय ने योजना आयोग के सवाल को दरकिनार कर दिया। आयोग का मानना था कि अंतरराष्ट्रीय रूट पर ज्यादा एयरक्राफ्ट खरीदने की जरूरत नहीं है। इस दौरान भाजपा के शाहनवाज हुसैन नागरिक मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे। उनके बाद मई, २००३ में भाजपा के ही राजीव प्रताप रूडी उड्डयन राज्यमंत्री बने और २००४ तक कमान संभाले रहे। २००४ से जनवरी, २०११ तक राष्ट्रवादी कांग्रेस के सांसद प्रफुल्ल पटेल उड्डयन मंत्री रहे। सीएजी का भी मानना है कि इंडियन एयर लाइंस की खराब वित्तीय हालत और लगातार घाटे के कारण विमान खरीदने की जरूरत नहीं थी। इसी दौरान कई निजी कंपनियां हवाई यातायात के क्षेत्र में उड़ने लगीं। सीएजी ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार २००४ में विमान कंपनियों से खरीद की लागत कम करने के लिए बातचीत की गई।

बातचीत के लिए मानक तय नहीं थे। आखिर में लंबी प्रक्रिया के बाद २००८ में एयरक्राफ्ट एयर इंडिया को मिलने शुरू हुए। इससे पहले खराब वित्तीय हालत और घाटे के कारण इंडियन एयरलाइंस का २००७ में एयर इंडिया में विलय हो गया। इस दौरान विमान कंपनियों की लागत बढ़ती रही। हैरानी की बात यह है कि विमान कंपनियों ने एयर इंडिया को ७६० करोड़ की विशेष छूट भी दी। इसके बावजूद ५८४ करोड़ रुपए ज्यादा देने पड़े। ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया है कि २०० करोड़ रुपए विमान कंपनियों को ज्यादा दे दिए गए। इसके लिए दिए गए एडवांस को एडजस्ट नहीं किया गया। ऑडिट रिपोर्ट में एयर इंडिया द्वारा लीज पर एयरक्राफ्ट लेने पर सवाल उठाए गए हैं। नए एयरक्राफ्ट खरीदने के साथ ही यह फैसला किया गया था कि लीज पर लिए गए एयरक्राफ्ट वापस कर दिए जाएंगे। २००८ में नए एयरक्राफ्ट आने के बावजूद लीज पर लेने वाले एयरक्राफ्ट की संख्या बढ़ती रही। २००७-०८ में ११ एयरक्राफ्ट एयर इंडिया के बेड़े में नए आए तो सात लीज पर भी लिए गए। २००९-१० में पांच बोइंग ७३७ और दो डोर्नियर एयरक्राफ्ट हटाए गए। एयर इंडिया प्रबंधन के अनुसार इस समय बेड़े में १०७ एयरक्राफ्ट हैं। फिलहाल एयर इंडिया ने लीज पर २९ एयरक्राफ्ट ले रखे हैं। २००६-०७ से अब तक १० एयरक्राफ्ट हटाए भी गए हैं।
खरीद प्रक्रिया के दौरान नागरिक उड्डयन मंत्री
शरद यादव : १९ अक्टूबर १९९९ से १ सितंबर २००१
शाहनवाज हुसैन : १ सितंबर २००१ से २३ मई २००३
राजीव प्रताप रूडी : २४ मई २००३ से २१मई २००४ तक
प्रफुल्ल पटेल : मई २००४ से जनवरी २०११ तक
(राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार)
खरीदारी प्रक्रियाः कब क्या हुआ
खरीद प्रक्रिया के दौरान नागरिक उड्डयन मंत्री
ह अप्रैल, १९९९ : इंडियन एयर लाइंस की इनहाउस कमेटी ने खरीदारी के लिए १५ एयरक्राफ्ट का चयन किया

ह जून, १९९९ : ऑफर मांगे गए लेकिन आम चुनाव के चलते खोले नहीं गए

ह दिसंबर १९९९ : इंडियन एयरलाइंस ने नौ तरह के एयरक्राफ्ट का चयन किया

ह जुलाई, २००० : एयरक्राफ्ट निर्माताओं से ऑफर मांगे गए

ह मार्च, २००१ : इनहाउस कमेटी ने ऑफर्स की रिपोर्ट निदेशक समूह को सोंपी

ह दिसंबर, २००१ : अमेरिका में ९-११ की घटना के बाद इंडियन एयरलाइंस ने रीवाइज्ड फाइनेंसियल बिड मांगी

ह मार्च, २००२ : इंडियन एयर लाइंस ने सीएफएम इंजिन वाले १२२ सीट वाले ए-३१९, १४५ सीट वाले ए-३२०, १७२ सीट वाले ए-३२१. कुल ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने की मंजूरी दी। इनकी आपूर्ति २००२-०३ से २००७-०८ के बीच की जानी थी।

ह अप्रैल, २००२ : केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय को रिपोर्ट सोंपी गई

ह अप्रैल, २००३ : पूरे एक साल प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर कोई चर्चा नहीं की गई

ह अप्रैल, २००३ : १५ अप्रैल २००३ को मंत्रिमंडल की बैठक में इंडियन एयरलाइंस को डिसइन्वेस्टमेंट की सूची से बाहर किया गया

ह अप्रैल-जून २००३ : पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड की बैठकें हुईं

ह नवंबर, २००४ : १० नवंबर को पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड ने प्रस्ताव को मंजूरी

ह दिसंबर, २००४ : ६ दिसंबर को कम बोली दाता से खरीद वार्ता हेतु समिति गठित की गई।

ह दिसंबर, २००४ : १४ दिसंबर को खरीद वार्ता समिति के मार्गदर्शन हेतु ओवरसाइट कमेटी गठित की गई।

ह मार्च, २००५ : दिसंबर २००४ से मार्च २००५ के बीच हुई वार्ताओं की रिपोर्ट १२ मार्च को सौंपी गई

ह अगस्त, २००५ : सीसीईए ने खरीद रिपोर्ट पर विचार हेतु वित्त मंत्री के नेतृत्व में मंत्री समूह की समिति का गठन किया गया

ह सितंबर, २००५ : मंत्री समूह ने ६ सितंबर को ९,८८८ करोड़ में ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए एयरबस इंडस्ट्रीज और सीएफएम इंटरनेशनल के साथ अंतिम विचार विमर्श किया

ह सितंबर, २००५ : २९ सितंबर को सरकार ने एयरक्राफ्ट खरीद सौदे की मंजूरी की सूचना इंडियन एयर लाइंस को दी

ह दिसंबर, २००५ : १६ दिसंबर को एयरबस इंडस्ट्रीज और इंडियन एयर लाइंस के बीच ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर हुए

ह अक्टूबर, २००६ : पहले ए-३१९ एयरक्राफ्ट की आपूर्ति हुई

ह अप्रैल, २०१० : पूरे ४३ एयरक्राफ्ट एयर इंडिया को मिल गए

Thursday, March 10, 2011

दिल्ली की राजनीति में बढ़ रहा है महिलाओं का दबदबा

कांग्रेस से ज्यादा भाजपा ने दिए महिलाओं को पद

देशभर में महिला के तौर पर ही नहीं, बल्कि लंबे अरसे बाद कांग्रेस में ही लगातार १२ साल तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड दिल्ली में श्रीमती शीला दीक्षित ने ही तोड़ा है। अभी उनके मुख्यमंत्री पद को कोई चुनौती भी नहीं है। महिलाओं को स्थानीय निकायों में ३३ फीसदी आरक्षण मिलने के बाद उनका दबदबा लगातार बढ़ रहा है।
रासविहारी
दिल्ली की राजनीति में महिलाओं का दबदबा लगातार बढ़ रहा है। चौथी विधानसभा में महिला विधायकों की संख्या दूसरी और तीसरी विधानसभा के मुकाबले कम हुई पर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित बनी हुई हैं। दस साल बाद महिला मुख्यमंत्री के साथ एक महिला को मंत्री बनाया गया है। भारतीय जनता पार्टी ने तो प्रदेश पदाधिकारियों और कार्यकारिणी में महिलाओं को ३३ फीसदी पद आरक्षित कर दिए हैं।

दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी में उपाध्यक्ष और महासचिव पद पर एक-एक महिला नेता विराजमान है पर १९ महिलाओं को सचिव बनाया गया है। दिल्ली नगर निगम के पहले चार महत्वपूर्ण पदों महापौर, उपमहापौर, स्थायी समिति अध्यक्ष और नेता निगम सदन पर कोई महिला काबिज नहीं है। १२ वार्ड समितियों में से भी केवल नरेला वार्ड समिति में ही महिला को अध्यक्ष बनाया गया है। निगम की २१ महत्वपूर्ण समितियों में से एक तिहाई पर महिलाएं अध्यक्ष हैं।

दिल्ली से सात लोकसभा सदस्यों में से केवल एक महिला है। उत्तर पश्चिम दिल्ली से लोकसभा में पहुंची कृष्णा तीरथ केन्द्र सरकार में महिला और बाल कल्याण मंत्रालय संभाल रही हैं। नई दिल्ली नगर पालिका परिषद के उपाध्यक्ष पद पर पूर्व विधायक ताजदार बाबर को फिर से बिठाया गया है। दिल्ली विश्वविद्यालय की राजनीति में भी महिलाओं का दबदबा कायम है। चार पदों में से दो उपाध्यक्ष और सचिव पद पर लड़कियों का कब्जा है।

देशभर में महिला के तौर पर ही नहीं, बल्कि लंबे अरसे बाद कांग्रेस में ही लगातार १२ साल तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड श्रीमती शीला दीक्षित दिल्ली ने ही तोड़ा है। अभी उनके मुख्यमंत्री पद को कोई चुनौती भी नहीं है।

इस बार विधानसभा में केवल तीन महिलाएं ही पहुंच पाई। पिछली विधानसभा में छह महिलाएं सदस्य थीं। २००८ के विधानसभा चुनाव के बाद श्रीमती किरण वालिया को मंत्री बनाया गया। इससे पहले १९९८ में श्रीमती सुषमा स्वराज मुख्यमंत्री और सुश्री पूर्णिमा सेठी मंत्री थीं। इसके बाद कृष्णा तीरथ भी शीला दीक्षित मंत्रिमंडल में सदस्य रही हैं। वह विधानसभा की पहली महिला अध्यक्ष भी रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आठ और भाजपा ने पांच महिलाओं को उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस की बरखा सिंह दूसरी बार विधानसभा में पहुंची हैं।

नगर निगम में ९६ महिला सदस्य हैं। महिलाओं को स्थानीय निकायों में ३३ फीसदी आरक्षण मिलने के बाद उनका दबदबा बढ़ रहा है। आरती मेहरा २००७ में पहले महिला कोटे से पहली बार महापौर बनीं और दो साल पद पर रहीं। २७२ सदस्यीय नगर निगम में ९२ सीट महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। नगर निगम चुनाव में ९६ महिलाओं ने बाजी मारी थी। चार महिलाएं सामान्य सीटों से जीतकर निगम में पहुंची हैं। इस समय स्थायी समिति उपाध्यक्ष पर सरिता चौधरी, उद्यान समिति अध्यक्ष पद पर सविता गुप्ता, नियुक्ति समिति अध्यक्ष मीरा अग्रवाल, महिला कल्याण समिति अध्यक्ष विमला चौधरी, आचार संहिता समिति अध्यक्ष सत्या शर्मा हैं। इनके अलावा कई समितियों के उपाध्यक्ष पद महिलाओं के पास हैं। नरेला जोन की अध्यक्ष निशा मान हैं।

भाजपा ने तो पार्टी संविधान में बदलाव करते हुए एक-तिहाई पदाधिकारियों के पद महिलाओं के लिए आरक्षित किए हैं। दिल्ली भाजपा में इस समय विशाखा सैलानी, पूनम आजाद, रजनी अब्बी उपाध्यक्ष, कमलजीत सहरावत, सिम्मी जैन, उर्मिला चौधरी, और उर्मिला गंगवाल सचिव हैं। प्रदेश कार्यकारिणी में १९ महिलाओं को शामिल किया गया है। १४ जिला अध्यक्षों में से एक महिला है। केशवपुरम जिला अध्यक्ष पार्षद रेखा गुप्ता को बनाया गया है। दिल्ली की महापौर रहीं आरती मेहरा भाजपा की राष्ट्रीय मंत्री हैं। भाजपा में पहले केवल एक महिला को ही पदाधिकारी बनाने का विधान था।

आजादी के बाद दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अब तक बने २१ अध्यक्षों में से पांच महिलाएं रही हैं। यह अलग बात है कि जनसंघ से लेकर अब तक भाजपा में राष्ट्रीय स्तर से लेकर दिल्ली प्रदेश तक किसी महिला को अध्यक्ष नहीं बनाया गया है। प्रदेश कांग्रेस के सात उपाध्यक्षों में से एक महिला है। पूर्व विधायक दर्शना रामकुमार उपाध्यक्ष हैं तो अलका लांबा महासचिव हैं। १३ महासचिवों में वह अकेली महिला हैं। दिल्ली कांग्रेस ने सौ सचिव बनाए हैं। इनमें १९ महिलाएं हैं। ये हैं निशा सैमुअल, रितु सिंह चौहान, सुजाता खंडूजा, एस गीता, रजिया इंशाल्लाह, रीमा कुमार, वंदना सिंह, उर्मिला रानी, परणीता आजाद, राज सचदेवा, रजनी महाजन, रचना सिंघल, मोहिनी जीनवाल, कोमलम नायर, निवेदिता नायर, पुष्पा आनंद, अजहर शगुफ्ता और पम्मी बजाज। ५७ सदस्यीय कार्यकारिणी में ११ महिलाएं हैं।

दिल्ली की पहली महापौर स्वतंत्रता सेनानी अヒणा आसफ अली बनीं। उन्होंने १९५८ में यह पद संभाला। इससे पहले उन्होंने वर्ष १९४६ में दिल्ली प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहकर आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूिमका निभाई। महापौर के तौर पर भी उनकी भूमिका की लोग तारीफ करते हैं। सुभद्रा जोशी, सविता बेन, ताजदार बाबर और शीला दीक्षित भी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहीं। कांग्रेस ने श्रीमती दीक्षित की अगुवाई में ही वर्ष १९९८ का विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता। उनका मुकाबला उस समय दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री और भाजपा की तेजतर्रार नेता सुषमा स्वराज से हुआ था। भाजपा की आपसी गुटबाजी और प्याज की कीमतों ने १९९८ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी कामयाबी दिलाई। इस कामयाबी के बाद शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं। उनकी अगुवाई में दिल्ली में कई बदलाव आए हैं। उनके खाते में कई बड़ी-बड़ी उपलब्धियां भी हैं। राष्ट्रमंडल खेल-२०१० की कामयाबी में श्रीमती दीक्षित और उनकी टीम की मेहनत की लोग प्रशंसा करते हैं। वर्ष २००३ का विधानसभा चुनाव भी कांग्रेस ने उनकी अगुवाई में लड़ा। इस बार उनका मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना से हुआ। भाजपा इस चुनाव में केवल २० सीटें ही जीत पाई। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दस महिलाओं को मैदान में उतारा। इनमें श्रीमती दीक्षित के अलावा ताजदार बाबर, अंजलि राय, किरण वालिया, मीरा भारद्व चरेखा गुप्ताकिरण वालियादिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री सुषमा स्वराजअलका लांबाकृष्णा तीरथआरती मेहर

Thursday, February 24, 2011

तिवोली गार्डन मामला---राजकुमार चौहान की कुर्सी खतरे में

रलोकायुक्त ने की मंत्री पद से हटाने की सिफारिश

शीला सरकार में हैं लोक निर्माण मंत्री
; तत्कालीन वैट कमिश्नर को भी फटकार

ररासविहारी/अजय पांडेय



नई दिल्ली। दिल्ली के लोक निर्माण मंत्री राजकुमार चौहान की कुर्सी खतरे में है। भ्रष्टाचार के एक मामले में दिल्ली के लोकायुक्त न्यायमूर्ति मनमोहन सरीन द्वारा उन्हें दोषी करार देते हुए राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल से उन्हें पद से हटाने की सिफारिश किए जाने के बाद मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और कांग्रेस नेतृत्व पर उनके खिलाफ कार्रवाई करने का नैतिक दबाव बढ़ गया है। लोकायुक्त ने गुरुवार को दिए फैसले में मंत्री को हटाने के साथ ही उन पर आपराधिक मामला चलाने की सिफारिश की है और तत्कालीन वैट कमिश्नर जलज श्रीवास्तव को फटकार लगाई है। लोकायुक्त ने अपने फैसले में तिवोली गार्डन रेस्तरां को कर चोरी का दोषी ठहराया है।

लोकायुक्त की ही विपरीत टिप्पणी के आधार पर कर्नाटक में भाजपा सरकार की अगुवाई कर रहे मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा से इस्तीफे की मांग कर रही कांग्रेस पार्टी के लिए अब अपने मंत्री का बचाव करना मुश्किल माना जा रहा है। यह और बात है कि येदियुरप्पा ने अब तक इस्तीफा नहीं दिया है।

सड़क से संसद तक भ्रष्टाचार के खिलाफ मचे बवाल के बीच दिल्ली के लोकायुक्त सरीन द्वारा शीला दीक्षित सरकार के इस कद्दावार मंत्री को कसूरवार ठहराए जाने से सरकार में हड़कंप मचा हुआ है। लोकायुक्त की सिफारिश पर कार्रवाई करना सरकार और कांग्रेस पार्टी के लिए कानूनी बाध्यता भले नहीं हो लेकिन नैतिक दबाव से इनकार नहीं किया जा सकता।

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने गुरुवार को यह कह कर मामले को टालने की कोशिश की कि अभी उन्हें फैसले की प्रति नहीं मिली है। खुद चौहान ने अपना पुराना बयान दोहराते हुए कहा कि एक जनप्रतिनिधि होने के नाते सिफारिश करना उनका काम है। यह अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वे तमाम पहलुओं को ध्यान में रखकर इन सिफारिशों पर कार्रवाई करें।विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि मुख्यमंत्री शीला दीक्षित इस पूरे प्रकरण के कानूनी पहलुओं पर अपने खास अधिकारियों से चर्चा कर रही हैं.

Monday, February 21, 2011

ras ki leela.....रास की लीला: बिना मुखिया चल रही हैं मुसलिम संस्थाएं

ras ki leela.....रास की लीला: बिना मुखिया चल रही हैं मुसलिम संस्थाएं: "दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग सात महीने से बिना चैयरमेन रासविहारी नई दिल्ली। दिल्ली में अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलिमों के कल्याण के लिए बनाई ..."

बिना मुखिया चल रही हैं मुसलिम संस्थाएं

दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग सात महीने से बिना चैयरमेन

रासविहारी



नई दिल्ली। दिल्ली में अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुसलिमों के कल्याण के लिए बनाई गईं सरकारी संस्थाएं लंबे समय से मुखियाओं का इंतजार कर रही हैं। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग, दिल्ली हज कमेटी और दिल्ली वक्फ बोर्ड में लंबे समय से कोई चैयरमेन नहीं है। चैयरमेन न होने के कारण मुसलिमों को अपनी तमाम शिकायतों पर सुनवाई न होने से परेशानी उठानी प़ड़ रही है।

अल्पसंख्यक आयोग, हज कमेटी, वक्फ बोर्ड और उर्स कमेटी के लिए दिल्ली सरकार का राजस्व विभाग चैयरमेन और अन्य सदस्यों का मनोनयन करता है। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के चैयरमेन और सदस्यों के पद १३ मई २०१० से खाली प़ड़े हैं। पहले इसके अध्यक्ष कमाल फारुखी थे। फारुखी ने मुसलिमों की कई शिकायतों पर कार्रवाई कराई थी। कहा जा रहा है कि कांग्रेस के कुछ ताकतवर नेताओं की आपसी खींचतान के कारण सरकार चैयरमेन और सदस्यों की नियुक्ति नहीं कर रही है। दिल्ली हज कमेटी में तो तीन साल से कोई अध्यक्ष नहीं है। चैयरमेन अब्दुल समी सलमानी का कार्यकाल २७ दिसंबर २००६ को खत्म हुआ था। तब से हज कमेटी अफसरों के हवाले हैं। सदस्य तो बने पर चैयरमेन को लेकर ल़ड़ाई चलती रही। हज कमेटी में दो विधायक, एक सांसद, एक सरकारी अधिकारी, एक मुसलिम धार्मिक विद्वान और समाजसेवी को सदस्य नियुक्त किया जाता है।

तीन साल पहले तत्कालीन राजस्व मंत्री राजकुमार चौहान के नजदीकी शकील सैफी को सदस्य बनाकर चैयरमेन बनाने की कोशिश की गई। तब विधायक और हज कमेटी के सदस्य परवेज हाशमी और चौधरी मतीन अहमद के क़ड़े एतराज के कारण उन्हें चैयरमेन नहीं बनाया जा सका। हज कमेटी में चैयरमेन न होने के कारण हज यात्रा पर जाने वाले को परेशानी उठानी प़ड़ती है। बदइंतजामी की शिकायतों पर कोई सुनवाई नहीं हो पाती है। साथ ही हज यात्रियों के चयन में भी हेराफेरी की शिकायतें उठती रहती हैं।

दिल्ली वक्फ बोर्ड में भी चैयरमेन का पद ३० अक्टूबर २००९ से खाली है। विधायक चौधरी मतीन अहमद का कार्यकाल खत्म होने के बाद चैयरमेन की तलाश जारी है। वक्फ जमीनों को लेकर मुकदमों की पैरवी तक नहीं हो पा रही है। इमामों को समय से तनख्वाह न मिलने की शिकायते आ रही हैं। इसी कारण जंगपुरा में एक मस्जिद पर विवाद के चलते दंगा भ़ड़क गया था। इसी तरह उर्स कमेटी में चौधरी सलाहुद्दीन १२ साल से अध्यक्ष हैं। उन्हें लेकर लोग एतराज उठा रहे हैं।