Sunday, March 27, 2011

एयरक्राफ्ट की खरीद में ७८३ करोड़ का घपला

सीएजी ने एयर इंडिया में ४३ एयरक्राफ्ट की खरीद पर उठाए कई सवाल
सीएजी की रिपोर्ट में हुआ खुलासा



रासविहारी
नई दिल्ली। एयर इंडिया में बोइंग और एयरक्राफ्ट की खरीद में भारत सरकार को ७८३ करोड़ रुपए से ज्यादा की चपत लगी। नागरिक उड्डयन मंत्रालय की सुस्त चाल के कारण विमानों की खरीद में १० साल से ज्यादा का समय लगा। यह खुलासा भारत के महानियंत्रक और लेखापरीक्षक की ऑडिट रिपोर्ट में किया गया है। एयर इंडिया में विमानों की खरीद को लेकर ऑडिट रिपोर्ट को हाल ही में सरकार को भेजा गया है। रिपोर्ट के अनुसार एयर इंडिया को लेटलतीफी के कारण ५८४ करोड़ ज्यादा देने पड़े और १९९ करोड़ एडवांस को बिना एडजस्ट किए ज्यादा दे दिए गए।

सीएजी ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में लिखा है कि इंडियन एयरलाइंस ने अक्टूबर, १९९६ में बेड़ा बढ़ाने के लिए टास्क फोर्स बनाई थी। अप्रैल, १९९९ में टास्क फोर्स ने नौ बोइंग और छह एयर बस खरीदने की सूची बनाई। आखिर दिसंबर, १९९९ में चार एयर बस और पांच बोइंग खरीदने का फैसला किया गया। जुलाई, २००० में विमान कंपनियों से तकनीकी और वित्तीय टेंडर मांगे गए। अगस्त २००० में मेसर्स बोइंग और मेसर्स एयरबस इंडस्ट्रीज ने टेंडर दाखिल किए। टास्क फोर्स ने टेंडर का मूल्यांकन करने के बाद अपनी रिपोर्ट इंडियन एयरलाइंस के निदेशक मंडल को मार्च, २००१ में सौंपी। विनिवेश प्रक्रिया के आधार पर निदेशक मंडल ने टास्क फोर्स की रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की। इसी दौरान अमेरिका से सस्ते विमान मिलने की संभावना के मद्देनजर दिसंबर, २००१ में निदेशक मंडल की सलाह पर बोइंग और एयरबस के दोबारा टेंडर मांगे गए।

ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार इंडियन एयरलाइंस निदेशक मंडल ने मार्च, २००२ में सीएफएम इंजन वाले ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने की प्रोजेक्ट रिपोर्ट को मंजूरी दे दी। विमान खरीदने पर १००८९ करोड़ रुपए का खर्च आने का अनुमान लगाया गया। उड्डयन मंत्रालय को अप्रैल, २००२ में यह प्रोजेक्ट रिपोर्ट सौंपी गई। सीएजी ने पाया कि मार्च, २००३ तक मंत्रालय में प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर कोई चर्चा नहीं की गई। मंत्रालय की विनिवेश सूची आने के बाद जून, २००३ में प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर मंत्रालय ने चर्चा की। मंत्रालय की रिपोर्ट पर योजना आयोग ने दिसंबर, २००३ में पहले चरण में २८ एयरक्राफ्ट और दूसरे चरण में शेष एयरक्राफ्ट खरीदने की मंजूरी दी। हालांकि योजना आयोग ने खरीद पर कुछ सवाल भी उठाए थे। मंत्रालय ने योजना आयोग के सवाल को दरकिनार कर दिया। आयोग का मानना था कि अंतरराष्ट्रीय रूट पर ज्यादा एयरक्राफ्ट खरीदने की जरूरत नहीं है। इस दौरान भाजपा के शाहनवाज हुसैन नागरिक मंत्रालय की कमान संभाल रहे थे। उनके बाद मई, २००३ में भाजपा के ही राजीव प्रताप रूडी उड्डयन राज्यमंत्री बने और २००४ तक कमान संभाले रहे। २००४ से जनवरी, २०११ तक राष्ट्रवादी कांग्रेस के सांसद प्रफुल्ल पटेल उड्डयन मंत्री रहे। सीएजी का भी मानना है कि इंडियन एयर लाइंस की खराब वित्तीय हालत और लगातार घाटे के कारण विमान खरीदने की जरूरत नहीं थी। इसी दौरान कई निजी कंपनियां हवाई यातायात के क्षेत्र में उड़ने लगीं। सीएजी ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार २००४ में विमान कंपनियों से खरीद की लागत कम करने के लिए बातचीत की गई।

बातचीत के लिए मानक तय नहीं थे। आखिर में लंबी प्रक्रिया के बाद २००८ में एयरक्राफ्ट एयर इंडिया को मिलने शुरू हुए। इससे पहले खराब वित्तीय हालत और घाटे के कारण इंडियन एयरलाइंस का २००७ में एयर इंडिया में विलय हो गया। इस दौरान विमान कंपनियों की लागत बढ़ती रही। हैरानी की बात यह है कि विमान कंपनियों ने एयर इंडिया को ७६० करोड़ की विशेष छूट भी दी। इसके बावजूद ५८४ करोड़ रुपए ज्यादा देने पड़े। ऑडिट रिपोर्ट में पाया गया है कि २०० करोड़ रुपए विमान कंपनियों को ज्यादा दे दिए गए। इसके लिए दिए गए एडवांस को एडजस्ट नहीं किया गया। ऑडिट रिपोर्ट में एयर इंडिया द्वारा लीज पर एयरक्राफ्ट लेने पर सवाल उठाए गए हैं। नए एयरक्राफ्ट खरीदने के साथ ही यह फैसला किया गया था कि लीज पर लिए गए एयरक्राफ्ट वापस कर दिए जाएंगे। २००८ में नए एयरक्राफ्ट आने के बावजूद लीज पर लेने वाले एयरक्राफ्ट की संख्या बढ़ती रही। २००७-०८ में ११ एयरक्राफ्ट एयर इंडिया के बेड़े में नए आए तो सात लीज पर भी लिए गए। २००९-१० में पांच बोइंग ७३७ और दो डोर्नियर एयरक्राफ्ट हटाए गए। एयर इंडिया प्रबंधन के अनुसार इस समय बेड़े में १०७ एयरक्राफ्ट हैं। फिलहाल एयर इंडिया ने लीज पर २९ एयरक्राफ्ट ले रखे हैं। २००६-०७ से अब तक १० एयरक्राफ्ट हटाए भी गए हैं।
खरीद प्रक्रिया के दौरान नागरिक उड्डयन मंत्री
शरद यादव : १९ अक्टूबर १९९९ से १ सितंबर २००१
शाहनवाज हुसैन : १ सितंबर २००१ से २३ मई २००३
राजीव प्रताप रूडी : २४ मई २००३ से २१मई २००४ तक
प्रफुल्ल पटेल : मई २००४ से जनवरी २०११ तक
(राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार)
खरीदारी प्रक्रियाः कब क्या हुआ
खरीद प्रक्रिया के दौरान नागरिक उड्डयन मंत्री
ह अप्रैल, १९९९ : इंडियन एयर लाइंस की इनहाउस कमेटी ने खरीदारी के लिए १५ एयरक्राफ्ट का चयन किया

ह जून, १९९९ : ऑफर मांगे गए लेकिन आम चुनाव के चलते खोले नहीं गए

ह दिसंबर १९९९ : इंडियन एयरलाइंस ने नौ तरह के एयरक्राफ्ट का चयन किया

ह जुलाई, २००० : एयरक्राफ्ट निर्माताओं से ऑफर मांगे गए

ह मार्च, २००१ : इनहाउस कमेटी ने ऑफर्स की रिपोर्ट निदेशक समूह को सोंपी

ह दिसंबर, २००१ : अमेरिका में ९-११ की घटना के बाद इंडियन एयरलाइंस ने रीवाइज्ड फाइनेंसियल बिड मांगी

ह मार्च, २००२ : इंडियन एयर लाइंस ने सीएफएम इंजिन वाले १२२ सीट वाले ए-३१९, १४५ सीट वाले ए-३२०, १७२ सीट वाले ए-३२१. कुल ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने की मंजूरी दी। इनकी आपूर्ति २००२-०३ से २००७-०८ के बीच की जानी थी।

ह अप्रैल, २००२ : केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय को रिपोर्ट सोंपी गई

ह अप्रैल, २००३ : पूरे एक साल प्रोजेक्ट रिपोर्ट पर कोई चर्चा नहीं की गई

ह अप्रैल, २००३ : १५ अप्रैल २००३ को मंत्रिमंडल की बैठक में इंडियन एयरलाइंस को डिसइन्वेस्टमेंट की सूची से बाहर किया गया

ह अप्रैल-जून २००३ : पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड की बैठकें हुईं

ह नवंबर, २००४ : १० नवंबर को पब्लिक इन्वेस्टमेंट बोर्ड ने प्रस्ताव को मंजूरी

ह दिसंबर, २००४ : ६ दिसंबर को कम बोली दाता से खरीद वार्ता हेतु समिति गठित की गई।

ह दिसंबर, २००४ : १४ दिसंबर को खरीद वार्ता समिति के मार्गदर्शन हेतु ओवरसाइट कमेटी गठित की गई।

ह मार्च, २००५ : दिसंबर २००४ से मार्च २००५ के बीच हुई वार्ताओं की रिपोर्ट १२ मार्च को सौंपी गई

ह अगस्त, २००५ : सीसीईए ने खरीद रिपोर्ट पर विचार हेतु वित्त मंत्री के नेतृत्व में मंत्री समूह की समिति का गठन किया गया

ह सितंबर, २००५ : मंत्री समूह ने ६ सितंबर को ९,८८८ करोड़ में ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए एयरबस इंडस्ट्रीज और सीएफएम इंटरनेशनल के साथ अंतिम विचार विमर्श किया

ह सितंबर, २००५ : २९ सितंबर को सरकार ने एयरक्राफ्ट खरीद सौदे की मंजूरी की सूचना इंडियन एयर लाइंस को दी

ह दिसंबर, २००५ : १६ दिसंबर को एयरबस इंडस्ट्रीज और इंडियन एयर लाइंस के बीच ४३ एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर हुए

ह अक्टूबर, २००६ : पहले ए-३१९ एयरक्राफ्ट की आपूर्ति हुई

ह अप्रैल, २०१० : पूरे ४३ एयरक्राफ्ट एयर इंडिया को मिल गए

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