Wednesday, April 4, 2012

अपना ही गांव बना 'चक्रव्यूह’

मंुडका,बवाना,कराला और पूठकलां वार्ड में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवार एक ही गांव से
गांव वालों के सामने पैदा हुआ धर्मसंकट, एक का झण्डा उठायें तो बैठे-बिठाये दूसरे से दुश्मनी
जाटों के गढ़ में खुलकर पसंद-नापसंद होती रही है जाहिर, इस बार छायी चुप्पी
रासविहारी मेट्रो संपादक
नई दिल्ली। देहात का कोई बाशिंदा अगर चुनाव लड़नें का मन बनाता है तो सबसे पहले बडे-बुजर्ग एक ही नसीहत देते है 'पहले अपने गांव को साथ करले फिर आगे कदम बढ़ाना’। मतलब साफ होता है कि अपनों के बगैर लड़ाई में कूदना घाटे का सौदा बन जाता है। नगर निगम चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के कई उम्मीदवार अपने पैतृक गांव को खुद के पाले में खड़ा करने के लिए तमाम दांव-पेच आजमा रहे है लेकिन बात बन नहीं पा रही है। वजह एक ही है, भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों का एक ही गांव का निवासी होना। मुंडका(वार्ड-3०), बवाना(वार्ड-28), कराला (वार्ड-29) और पूठकलां (वार्ड-25) में यह रोचक स्थिति गांववालों को खुलकर बोलने से रोक रही है। उम्मीदवारों के गांववालों के लिए तो एमसीडी का चुनाव ग्राम पंचायत का चुनाव बन गया है यानि एक का झण्डा उठायें तो बैठे-बिठाये दूसरे से दुश्मनी।
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह के छोटे भाई मास्टर आजाद सिंह को चुनाव के दौरान अपने पैतृक गांव मंुडका का लगभग एकतरफा समर्थन मिलता रहा है, लेकिन इस बार यहां से कांग्रेस ने उनके ही गांव के नरेश कुमार को मुकाबले में उतारा हुआ है। अब मुंडका गांव के सामने धर्मसंकट बन गया है, एक के पीछे चले तो दूसरा नाराज। आजाद सिंह का स्वागत करें तो नरेश का परिवार खफा और नरेश को फूलों का हार पहनाये तो मास्टर जी पूछें कि मैंने क्या बिगाड़ा है।
बवाना वार्ड में पिछले चुनाव में तीन उम्मीदवार रहे निर्दलीय नारायण सिंह, भाजपा के रामनिवास और कांग्रेस के कटार सिंह एक ही गांव बवाना के निवासी थ्ो। लिहाजा गांव का रूख खमोशी की चादर ओढेè हुआ था। जीत नारायण सिंह की हुई थी। अबकी बार फिर पिछले हालात बने हुए है। नारायण सिंह भाजपा से और देवेन्द्ग सिंह उर्फ पोनी पहलवान कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे है। बीच में पिछली बार भाजपा की टिकट से चुनाव मैदान में उतरे रामनिवास निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर कूदे हुए हैं। तीनों ही बवाना गांव से है। तीनों अपने गांव के ज्यादा से ज्यादा लोगों को खुद के पीछे जोड़ने रात-दिन पसीना बहा रहे हैं लेकिन मन चाही कामयाबी नहीं मिल पा रही है।
कराला वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित है। यहां से कांग्रेस ने मनीषा जसबीर और भाजपा ने सुषमा देवी को टिकट दिया है। दोनों ही कराला गांव की हैं। पिछली बार भी यह वार्ड महिला सामान्य के तौर पर आरक्षित था। भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी और कराला निवासी मंजीत माथुर ने 2००7 का चुनाव जीता था। इसबार उनका टिक ट पार्टी ने काट दिया लेकिन भरोसा कराला गांव पर ही बरकरार रहा और सुषमा देवी को उम्मीदवार बनाया।
पूठकलां वार्ड में कांग्रेस के अजित सोलंकी और भाजपा के देवेन्द्ग सोलंकी दोनों ही पैतृक तौर पूठकलां गांव के रहने वाले है। यहां गांव वालों के सामने यक्ष प्रश्न खड़ा है कि वोट किसे दें! जो भी दरवाजे पर आता है उसी को आशीर्वाद थमा देते है लेकिन खुलकर साथ चलने की बात आती है तो ज्यादातर गांववाले कन्नी काट लेते हैं।
कराला गांव माथुर गोत्र के जाटों का है। यहां ओमप्रकाश माथुर का कहना है कि हमारे लिए तो दोनो ही उम्मीदवार एक जैसे हैं। किसी एक का पक्ष कैसे लें। वोट किसको डालोगे? इसके जवाब में फिर माथुर साहब कूटनीति से भरा उत्तर देते है। अभी सोचा नहीं है। बवाना में सहरावत गोत्र के जाट चौधरी बसते है, तीनों उम्मीदवार भी सहरावत हैं। यहां पर नौजवान सतीश सहरावत बताते है कि तीनों उम्मीदवारों के साथ बवाना के कम जबकि दूसरे गांवों के लोग प्रचार पर ज्यादा संख्या में निकलते हैं। उनका कहना है कि ज्यादातर बवानावासी फिलहाल उम्मीदवारों की रस्साकशी से बचने के मूड में हैं। सभी को गांव में रहना है और कोई भी नहीं चाहता कि नतीजा आने के बाद हारने वाला पक्ष उनके सिर ठिकरा फोड़ें।
पूठकलां गांव के सोलंकी गोत्र के जाट भी अपने ही गांव के दो बेटों को टिकट मिलने के बाद खुश हुए थ्ो कि कोई भी हारे या जीते पार्षद की चौधराहट अपने ही गांव में रहेगी लेकिन अब इनको भी इस सवाल का जवाब देना मुश्किल हो रहा है कि बटन हाथ पर दबेगा या कमल पर।
आज अगर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह जिंदा होते तो वर्तमान स्थिति उनके लिए भी बडी उलझन वाली होती। हर चुनाव में मुंडका में वहीं हुआ जो साहिब सिंह ने कहा। लाकड़ा गोत्र के जाट बाहुल्य इस गांव में इस बार कांग्रेस के उम्मीदवार नरेश कुमार भाजपा के उम्मीदवार मास्टर आजाद के लिए गांव का खुलकर समर्थन मिलने की राह में रोड़ा बन गए हैं। यहां पर राकेश लाकड़ा का कहना है कि गांव में साहिब सिंह की प्रतिष्ठा आज भी बरकार है लेकिन नरेश भी तो म्हारा छोरा है।
नेशनल दुनिया ५ अप्रैल २०१२

भाजपा के बागियों ने बदला हवा का रुख

पार्टी छोड़ने का सिलसिला जारी
पूर्व मंत्री मुखी के दामाद कांग्रेस में शामिल
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के करीबी रिश्तेदार भी छोड़ सकते हैं पार्टी
5० से ज्यादा बागी उम्मीदवार प्रचार में आगे
रासविहारी
नई दिल्ली। नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ बहती हवा का रुख भारतीय जनता पार्टी के बागी उम्मीदवारों ने बदलना शुरू कर दिया है। तीन निगमों में भाजपा के सौ से ज्यादा बागी उम्मीदवारों ने ताल ठोक रखी है। 5० से ज्यादा बागी उम्मीदवारों ने प्रचार में अपनी बढ़त कायम कर ली है। 28 बागी उम्मीदवारों ने तो अपना नया मोर्चा बनाकर चुनाव की रणनीति तैयार कर ली है। इसके साथ बड़े नेताओं की मनमानी के खिलाफ पार्टी छोड़ने का सिलसिला और तेज हो गया है। पूर्व मंत्री जगदीश मुखी के दामाद सुरेश कुमार भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता के करीबी रिश्तेदार समेत कुछ और नजदीकी नेता पार्टी छोड़ने के संकेत दे रहे हैं।
भाजपा के आला नेता सर्वे के भरोसे जीत की उम्मीद पाले बैठे हैं। इस कारण बागियों को मनाने की कोशिश भी नहीं हो रही है। प्रदेश भाजपा प्रभारी वेंकैया नायडू ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मांगेराम गर्ग को उत्तरी दिल्ली नगर निगम, पूर्व मंत्री जगदीश मुखी को दक्षिण दिल्ली नगर निगम और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन को पूर्वी दिल्ली निगम का चुनाव प्रभारी बनाया है। श्री गर्ग और श्री मुखी को पहले तो प्रदेश की चुनाव समिति में ही नहीं रखा था। अपनी उपेक्षा से दुखी दोनों नेताओं की कोई बागी सुनने को तैयार ही नहीं है। मुखी के तो परिवार में ही बगावत हो गई है। जनकपुरी पश्चिम से उनके दामाद सुरेश कुमार ने पहले आजाद उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल किया था। बाद में उन्होंने नामांकन वापस ले लिया और अब कांग्रेस मेें शामिल हो गए। पूर्वी दिल्ली निगम में तो डॉ. हर्षवर्धन के खिलाफ हर जगह भारी बगावत है। उनके विधानसभा क्षेत्र कृष्णा नगर के चारों वार्डों में बागी उम्मीदवारों ने भाजपा उम्मीदवारों की हालत खराब कर दी है। जिन-जिन लोगों को उन्होंने उम्मीदवार बनवाया था, उन्हें कार्यकर्ताओं ने नकार दिया है। ज्यादातर वार्डों में उम्मीदवारों को कार्यकताã ही नहीं मिल रहे हैं।
भाजपा छोड़कर सात पार्षद बागी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में बने हुए हैं। न्यू अशोक नगर से प्रभा सिंह, रोहिणी से हरीश अवस्थी, रानी बाग से सुदेश भसीन, सागरपुर से प्रवीण राजपूत, लाजपत नगर से बीना अब्रोल, खजूरी खास से रामवीर और मोहन गार्डन से राजेश यादव ने भाजपा के उम्मीदवारों की हालत पतली कर रखी है। इसके अलावा कई पार्षदों की पत्नी में मैदान में हैं। उन्होंने भी प्रचार में अच्छी बढ़त बनाई है। निगम की स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष डॉ. वी के मोंगा का टिकट काटने को लेकर भी कार्यकर्ताओं में भारी नाराजगी है। उनका टिकट डॉ. हर्षवर्धन के कहने पर काटा गया था। बताया जा रहा है कि मोंगा को टिकट देने पर डॉ. हर्षवर्धन ने इस्तीफा देने की धमकी दी थी। मोंगा का टिकट कटने से पंजाबी बिरादरी के वोटर नाराज बताए जा रहे हैं।
नेशनल दुनिया

Friday, March 30, 2012

अब नेशनल दुनिया में

दोस्तों

कल से हमने अपनी पूरी टीम के साथ पत्रकारिता जगत में एक नई शुरूआत की है। जून २००८ में मैंने कई साथियों के साथ बीस साल हिन्दुस्तान में काम करने के बाद नईदुनिया को दिल्ली में लाने की तैयारी शुरू की। अक्टूबर २००८ में नई दुनिया की दिल्ली से शुरूआत की। अपनी खबरों के कारण नईदुनिया ने दिल्ली में अपनी जगह बनाई और एक चर्चित अखबार बना। हमारे प्रधान संपादक श्री आलोक मेहता के नेतृत्व में हमने महज १० दिन के भीतर नया अखबार दिल्ली और एनसीआर के पाठकों के लिए नया अखबार नेशनल दुनिया शुरू किया है। इसका पहला अंक आज आपके सामने है। हमें भी यह एक सपने से कम नहीं लग रहा है। २८ मार्च को हमें नए अखबार का नाम मिला और उसी दिन डेक्लेरशन फाइल किया और अगले दिन से अखबार शुरू हो गया। यह सब आप जैसे शुभचिंतक दोस्तों की शुभकामनाओं के कारण ही संभव हो पाया है। हमारी पूरी टीम अब नेशनल दुनिया में है और उसी तरह निर्भीक और निष्पक्ष तरीके से हम आपको खबरों से भरपूर रखेंगे। आशा है आपका सहयोग पहले की तरह मिलता रहेगा।

Friday, September 23, 2011

ras ki leela.....रास की लीला: मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए ...

ras ki leela.....रास की लीला: मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए ...: मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए पांच साल में १६ बार गए अमेरिका नई दिल्ली। मैं भी सरकारी, मेरा घर भी सरकारी, मेरी कार भी...

मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए पांच साल में १६ बार गए अमेरिका

मोंटेक की विदेश यात्रा का रोजाना खर्च 11354 रुपए
पांच साल में १६ बार गए अमेरिका

नई दिल्ली। मैं भी सरकारी, मेरा घर भी सरकारी, मेरी कार भी सरकारी और मेरी विदेश यात्रा भी सरकारी। खर्च कितना भी हो क्या अंतर पड़ता है। खासतौर पर उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा जो रोजाना शहरी गरीब का घर ३२ रुपए में चला सकते हैं। गांव में गरीब का घर रोजाना २६ रुपए में चलाने की बात करने वाले योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया का विदेश यात्राओं का रोजाना औसतन खर्च है ११,३५४ रुपए। जाहिर है कि उनकी सरकारी विदेश यात्राओं का खर्च सरकार ने ही उठाया है।

योजना आयोग ने महंगाई के बढ़ते बोझ से दबते गरीबों की नई परिभाषा बनाई है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में योजना आयोग ने शहरों में रोजाना ३२ रुपए और गांव में २६ रुपए खर्च करने वालों को गरीब नहीं बताया है। रोजाना औसतन विदेश की यात्रा पर ११,३५४ रुपए खर्च करने वाले योजना आयोग के उपाध्यक्ष अहलुवालिया गरीबों का दर्द भी कैसे समझें। अहलुवालिया साहब का विदेशी यात्राओं का खर्च पत्रकार अरुण कुमार सिंह ने सूचना के अधिकार के तहत हासिल किया है।

योजना आयोग ने एक आरटीआई के जवाब में बताया है कि योजना आयोग के उपाध्यक्ष अहलुवालिया ने पांच साल में विदेश यात्राओं पर २ करोड़, चार लाख ३६ हजार ८२५ रुपए खर्च किए। पिछले पांच साल यानी जुलाई २००६ से जुलाई २०११ तक उन्होंने कुल ३६ बार विदेश की यात्रा की। इनमें ३५ यात्राएं सरकारी खर्चे पर की गईं। केवल एक बार उन्होंने अपनी जेब से विदेश यात्रा का खर्च चुकाया।

मिली जानकारी के अनुसार अहुलवालिया साहब पांच साल में १६ बार अमेरिका की सरकारी यात्रा पर गए। पांच साल के दौरान उन्होंने चार-चार बार ब्रिटेन और सिंगापुर की यात्रा की। इसके साथ ही अहलुवालिया ने दो बार फ्रांस और चीन की यात्रा की। साथ ही कोरिया, स्विटरजरलैंड, ओमान, कनाडा, बहरीन,जापान और सऊदी अरब की यात्रा सरकारी खर्च पर की।
नईदुनिया 23 सितंबर2011

Tuesday, June 7, 2011

अध्यक्षजी ने करवाई मालिश

अध्यक्षजी ने करवाई मालिश
नारे कम गाने ज्यादा
राजघाट पर भाजपा का सत्याग्रह
रासविहारी
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने राजघाट पर सत्याग्रह के दौरान मालिश कराके अपनी थकान मिटाई। मौका था भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे बाबा रामदेव पर पुलिसिया जुल्म के खिलाफ भाजपा के राजघाट के सामने आयोजित २४ घंटे के सत्याग्रह का। सत्याग्रह के दौरान गाने ज्यादा बजे और नारे कम लगे। ज्यादातर नेता तेज गर्मी के कारण कुछ समय ही सत्याग्रह में शामिल हुए।

रविवार की शाम को सात बजे शुरू हुआ धरना सोमवार की शाम को खत्म हुआ। रात को एक बजे के आसपास ज्यादातर नेताओं और कार्यकर्ताओं के रवाना होने के बाद मंच के पीछे सोने के लिए बनाई गई जगह पर शाम से बैठे अध्यक्षजी की थकान पुरानी दिल्ली की मशहूर मालिश से उतारी गई। थकान उतारने के बाद अध्यक्षजी आम कार्यकर्ताओं के साथ ही सत्याग्रह स्थल पर सोने गए। सुबह छह बजे नहाने-धोने के लिए अपने आवास पर गए और जल्दी वापस आ गए। पूर्व उपप्रधानमंत्री और भाजपा संसदीय दल के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी भी सत्याग्रह में ज्यादा समय नहीं बैठे।

सत्याग्रह पर अध्यक्षजी के साथ पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह, धर्मेन्द्र प्रधान, अनंत कुमार और युवा मोर्चा के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर जमे रहे। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने रात को कृष्ण भजन और देशभक्ति के गीतों के जरिए कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया। स्वराज तड़के चार बजे अपने घर गईं तो राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली रात तीन बजे गए। सुषमा स्वराज ने गानों पर ठुमके भी लगाए। ठुमके लगाने में उनका साथ अनुराग ठाकुर ने दिया।

सत्याग्रह स्थल पर गर्मी में पसीना बहाते बैठे नेताओं और कार्यकर्ता नारे कम लगा रहे थे। इस कारण जोश भरने के लिए यह देश है वीर जवानों का और मेरा रंग दे वसंती चोला जैसे गाने ज्यादा बजते रहे। सत्याग्रह में बाबा रामदेव के समर्थक भी शामिल हुए।

सत्याग्रह के दौरान भी सुषमा और जेटली समर्थकों में दूरी बनी रही। रात को सुषमा समर्थक नेता उनके आसपास जमे रहे तो जेटली के खास भी उनके पास बैठे रहे। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता को दोनों के बीच संतुलन बनाने में जरूर मेहनत करनी पड़ी

Sunday, March 27, 2011

दारू की कमाई से भरते सरकारी खजाने

शराब को सेहत और समाज के लिए बेहद खराब मानना कोई नई बात नहीं है । सैद्धांतिक तौर पर हर मंच से इसकी निंदा की जाती रही है और हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने इसकी घोर निंदा की लेकिन विडंबना यह है कि भाजपा शासित या भाजपा के सहयोग से चलने वाली सरकारों ने शराब प्रबंधन से जम कर राजस्व बटोरने पर ध्यान दिया है । ज्यादातर राज्य सरकारों के खजाने में दारू की बिक्री से ज्यादा कर जमा हो रहा है । हाल यह है कि ज्यादातर राज्यों में पांच साल में दारू से कमाई दोगुनी से ज्यादा हो गई है । छत्तीसगढ़ को छोड़कर सभी राज्यों में शराब ठेकों की संख्या या शराब की बिक्री बढ़ रही है


रासविहारी

महंगी हुई शराब कि थोड़ी-थोड़ी पिया करो के सुरीले सुरों का असर पियक्कड़ों पर कोई पड़ता नहीं दिखता है । महंगी होती शराब के बावजूद शराब के दीवाने करोड़ों की शराब गटक जाते हैं। ज्यादातर राज्य सरकारों के खजाने में दारू की बिक्री से ज्यादा कर जमा हो रहा है । हाल यह है कि ज्यादातर राज्यों में पांच साल में दारू से कमाई दोगुनी से ज्यादा हो गई है । छत्तीसगढ़ को छोड़कर सभी राज्यों में शराब ठेकों की संख्या या तो बढ़ रही है या शराब की बिक्री में लगातार बढ़ोतरी हो गई है । छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस साल अप्रैल से दो हजार की आबादी वाले गांवों में देशी-अंग्रेजी शराब के २५० ठेके बंद करने का एलान किया है । इससे राज्य में शराब की बिक्री में कमी आएगी । जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार और असम में शराब की बिक्री से मिलने वाले राजस्व में बढ़ोतरी हो रही है । हिमाचल, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में पियक्कड़ों की तादाद भी तेजी से बढ़ रही है । पंजाब में १८ साल से ज्यादा आयु वालों की शराब पीने की अनुमति है । इसके बावजूद पंजाब में १३ साल तक के बच्चे नशे की गिरफ्त में हैं । पंजाब की महिलाओं में भी नशे की लत बढ़ रही है । जम्मू-कश्मीर में भी अंग्रेजी शराब की बिक्री बढ़ी है । चंडीगढ़ में शराब की बिक्री खूब होती है। आंकड़े बता रहे हैं कि रोजाना १.८० लाख बोतल शराब अकेले चंडीगढ़ में बिक जाती है । कभी केरल में शराब की सालाना बिक्री प्रति व्यक्ति सबस

्‌ीटा्रज्यादा थी । इस समय हरियाणा पियक्कड़ों के लिहाज से अव्वल है । हरियाणा सरकार ने विकास के मद्देनजर आबकारी नीति को उदार बनाया है । देहाती इलाकों के विकास के लिए पंचायतों को आबकारी राजस्व में हिस्सा देने की घोषणा की गई है । एक गैर सरकारी संगठन के अनुसार प्रति व्यक्ति सालाना खपत हरियाणा में २१.४५, दिल्ली में १४.७२, हिमाचल प्रदेश में १२.८० और पंजाब में ११.४५ बोतल है । महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और बिहार में देशी दारू की बिक्री भी ज्यादा हो रही है । पूरे देश में जितनी देशी शराब बिकती है उसका ५० प्रतिशत तो इन सात राज्यों में ही खप जाता है । इन आंकड़ों को तफसील से देखें तो पाएंगे कि देश में देशी दारू की बिक्री का ११ फीसदी उत्तर प्रदेश, नौ फीसदी महाराष्ट्र, आठ फीसदी पश्चिम बंगाल, आठ फीसदी बिहार, पांच फीसदी पंजाब और मध्य प्रदेश तथा चार फीसदी हरियाणा में हिस्सा है । कई राज्यों में देशी दारू की बिक्री पर रोक लगा दी गई है । इसके बावजूद देशी दारू का सालाना कारोबार २५ हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है । देशी दारू की बिक्री में हर साल ढाई फीसदी का इजाफा हो रहा है । अंग्रेजी शराब की बिक्री हर साल १० फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। यही वजह है कि सरकारी खजाने में अन्य मदों में मिलने वाले राजस्व से ज्यादा आबकारी से मिलता है । कई राज्यों में वैट के बाद सरकारों की कमाई शराब की बिक्री से होती है ।

हैरानी की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के राज वाले राज्य भी शराब की बिक्री से लगातार राजस्व बढ़ा रहे हैं । देश में आबकारी से कमाई करने वालों में कर्नाटक अव्वल रहा है । कर्नाटक सरकार ने आगामी वित्त वर्ष के लिए आबकारी वसूली का लक्ष्य ९,२०० करोड़ रुपए तय किया है । चालू वित्त वर्ष में कर्नाटक ने तय लक्ष्य ७,५०० करोड़ रुपए से कहीं बढ़कर ८,२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूले हैं । तमिलनाडु सरकार भी कर्नाटक सरकार की तर्ज पर चल रही है । तमिलनाडु सरकार ने नए वित्त वर्ष में ८,९३५ करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है ।

आबकारी लक्ष्य में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश ने अन्य राज्यों के मुकाबले कम लक्ष्य तय किया है । मध्य प्रदेश में वर्ष ०९-१० में सरकार ने आबकारी के तहत २,४०० करा़ेड रुपए वसूलने का लक्ष्य तय किया और मिले २५ सौ करोड़ रुपए ! २०१०-११ के लिए सरकार ने २,७०० करोड़ मिलने की उम्मीद सरकार ने जताई है । लगता है, कमाई इससे ज्यादा होगी ।

उत्तर प्रदेश सरकार ने तो आबकारी वसूली के लिए अगले दो साल के लिए नई नीति बनाई है । उत्तर प्रदेश में २००९-१० में बीयर और अंग्रेजी शराब की २० करोड़ से ज्यादा बोतलें बिकीं । देशी दारू की २२ करोड़ बोतलें बिकीं । सरकार को इस मद में ५,६६६ करोड़ रुपए मिले । इस साल फरवरी तक आबकारी वसूली में सरकार ने २० प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है । माया सरकार ने आबकारी वसूली के तहत अगले दो साल में तीन हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त वसूली का लक्ष्य तय किया है यानी कि अगले वित्त वर्ष में आबकारी के तहत आठ हजार करोड़ रुपए वसूलने का लक्ष्य रखा गया है ।

ऐसा नहीं है कि अन्य राज्य शराब से कमाई में बहुत पीछे हैं । तेजी से विकास की तरफ बढ़ते छोटे राज्यों में पंजाब ने नए वित्त वर्ष में ३,१९० करोड़, हरियाणा ने २५०० करोड़ और दिल्ली २२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है । उत्तराखंड में भी भाजपा की सरकार ने आबकारी वसूली का लक्ष्य बढ़ाया है । दिल्ली के पियक्कड़ हर महीने ४५ लाख बोतल दारू गटक जाते हैं । सरकार का राजस्व भी लगातार बढ़ रहा है । तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शीला दीक्षित ने पहली बार वित्त विभ ङ"ख११ऋ

्‌ीटा्रज्यादा थी । इस समय हरियाणा पियक्कड़ों के लिहाज से अव्वल है । हरियाणा सरकार ने विकास के मद्देनजर आबकारी नीति को उदार बनाया है । देहाती इलाकों के विकास के लिए पंचायतों को आबकारी राजस्व में हिस्सा देने की घोषणा की गई है । एक गैर सरकारी संगठन के अनुसार प्रति व्यक्ति सालाना खपत हरियाणा में २१.४५, दिल्ली में १४.७२, हिमाचल प्रदेश में १२.८० और पंजाब में ११.४५ बोतल है । महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, पश्चिम बंगाल और बिहार में देशी दारू की बिक्री भी ज्यादा हो रही है । पूरे देश में जितनी देशी शराब बिकती है उसका ५० प्रतिशत तो इन सात राज्यों में ही खप जाता है । इन आंकड़ों को तफसील से देखें तो पाएंगे कि देश में देशी दारू की बिक्री का ११ फीसदी उत्तर प्रदेश, नौ फीसदी महाराष्ट्र, आठ फीसदी पश्चिम बंगाल, आठ फीसदी बिहार, पांच फीसदी पंजाब और मध्य प्रदेश तथा चार फीसदी हरियाणा में हिस्सा है । कई राज्यों में देशी दारू की बिक्री पर रोक लगा दी गई है । इसके बावजूद देशी दारू का सालाना कारोबार २५ हजार करोड़ रुपए से ज्यादा है । देशी दारू की बिक्री में हर साल ढाई फीसदी का इजाफा हो रहा है । अंग्रेजी शराब की बिक्री हर साल १० फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। यही वजह है कि सरकारी खजाने में अन्य मदों में मिलने वाले राजस्व से ज्यादा आबकारी से मिलता है । कई राज्यों में वैट के बाद सरकारों की कमाई शराब की बिक्री से होती है ।

हैरानी की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के राज वाले राज्य भी शराब की बिक्री से लगातार राजस्व बढ़ा रहे हैं । देश में आबकारी से कमाई करने वालों में कर्नाटक अव्वल रहा है । कर्नाटक सरकार ने आगामी वित्त वर्ष के लिए आबकारी वसूली का लक्ष्य ९,२०० करोड़ रुपए तय किया है । चालू वित्त वर्ष में कर्नाटक ने तय लक्ष्य ७,५०० करोड़ रुपए से कहीं बढ़कर ८,२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूले हैं । तमिलनाडु सरकार भी कर्नाटक सरकार की तर्ज पर चल रही है । तमिलनाडु सरकार ने नए वित्त वर्ष में ८,९३५ करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है ।

आबकारी लक्ष्य में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश ने अन्य राज्यों के मुकाबले कम लक्ष्य तय किया है । मध्य प्रदेश में वर्ष ०९-१० में सरकार ने आबकारी के तहत २,४०० करा़ेड रुपए वसूलने का लक्ष्य तय किया और मिले २५ सौ करोड़ रुपए ! २०१०-११ के लिए सरकार ने २,७०० करोड़ मिलने की उम्मीद सरकार ने जताई है । लगता है, कमाई इससे ज्यादा होगी ।

उत्तर प्रदेश सरकार ने तो आबकारी वसूली के लिए अगले दो साल के लिए नई नीति बनाई है । उत्तर प्रदेश में २००९-१० में बीयर और अंग्रेजी शराब की २० करोड़ से ज्यादा बोतलें बिकीं । देशी दारू की २२ करोड़ बोतलें बिकीं । सरकार को इस मद में ५,६६६ करोड़ रुपए मिले । इस साल फरवरी तक आबकारी वसूली में सरकार ने २० प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की है । माया सरकार ने आबकारी वसूली के तहत अगले दो साल में तीन हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त वसूली का लक्ष्य तय किया है यानी कि अगले वित्त वर्ष में आबकारी के तहत आठ हजार करोड़ रुपए वसूलने का लक्ष्य रखा गया है ।

ऐसा नहीं है कि अन्य राज्य शराब से कमाई में बहुत पीछे हैं । तेजी से विकास की तरफ बढ़ते छोटे राज्यों में पंजाब ने नए वित्त वर्ष में ३,१९० करोड़, हरियाणा ने २५०० करोड़ और दिल्ली २२०० करोड़ रुपए आबकारी के तहत वसूलने का लक्ष्य रखा है । उत्तराखंड में भी भाजपा की सरकार ने आबकारी वसूली का लक्ष्य बढ़ाया है । दिल्ली के पियक्कड़ हर महीने ४५ लाख बोतल दारू गटक जाते हैं । सरकार का राजस्व भी लगातार बढ़ रहा है । तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शीला दीक्षित ने पहली बार वित्त विभाग की कमान अपने पास रखी है । मुख्यमंत्री ने साढ़े बारह साल के राज में पहली बार विधानसभा में बजट पेश किया । दिल्ली में आबकारी के तहत लक्ष्य से ज्यादा ही वसूली हो रही है । आसपास के राज्यों के मुकाबले दिल्ली में शराब और बीयर के दाम भी कम हैं ।